काफी वक्त हो गया, आप लोगों से अपने शहर के बारे में बातचीत किए हुए... जाने क्या-क्या बदल गया है दिल्ली में, कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों के चलते... नए-नए सब-वे, फ्लाई-ओवर, स्ट्रीट-स्केपिंग आदि-आदि... लंबे अरसे से काम होता भी देख रहे हैं, सुनते भी आ रहे हैं, बहुत खूबसूरत हो जाएगा शहर... अच्छा है... खूबसूरती किसे पसंद नहीं...
लेकिन फिर सोचता हूं, कुछ बातें अब भी नहीं बदली हैं, इस शहर में, क्योंकि वे दिल्ली वालों की सोच से जुड़ी हैं... अगर शहर के बाशिन्दे ही बदलना नहीं चाहेंगे, तो क्योंकर मुमकिन है बदलाव... आज भी दिल्ली की सड़कों से शराब पीकर ड्राइव करने वाले गायब नहीं हुए हैं, आज भी रेडलाइट की परवाह किए बिना दूसरों की (और खुद की भी) जान खतरे में डालने वाले नदारद नहीं हुए हैं, आज भी हमारे शहर में ऐसे लोग लगातार दिखते हैं, जिन्हें कार की सवारी के वक्त सीटबेल्ट लगाना या दोपहिया पर घूमते हुए हेल्मेट पहनना झंझट लगता है...
क्या करेंगे आप इन लोगों का...?
नियम हैं, नियम का पालन न करने पर चालान भी होते हैं... लेकिन फिर भी क्यों नहीं समझते मेरे शहरवाले... शायद इसलिए, क्योंकि वे लोग सड़क के नियमों को सिर्फ कानून और जुर्माने से जोड़कर देखते हैं, अपनी सुरक्षा से नहीं... वरना कोई भी नियम सिर्फ और सिर्फ हमारी सुरक्षा के लिए ही है... अगर मैं हेल्मेट पहनकर स्कूटर या मोटरसाइकिल नहीं चलाऊंगा, तो मुमकिन है, मेरे बाल उड़कर मेरे चेहरे को किसी फिल्मस्टार सरीखी झलक देने लगें, लेकिन कहीं मैं किसी दूसरी गाड़ी से टकरा गया, तो याद रहे, मेरे बाल मुझे उस परिणाम से नहीं बचा पाएंगे, जो मेरे परिवार को कभी नहीं भूलेगा...
बहरहाल, आज एक और बात भी मेरे दिमाग में आ रही है... ऐसा क्यों होता है कि कोई भी नियमों को तोड़ते वक्त न सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोचता, बल्कि निश्चिंत भी रहता है, कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता... इसकी मेरी समझ में आने वाली वजह हमारी पुलिस की छवि है... किसी से भी बात कीजिए, समझाइए कि नियमों का पालन जरूरी है, जवाब मिलता है - क्या बिगड़ेगा, यार... पकड़ा गया तो 100-50 रुपये देकर छूट जाऊंगा... यह नियमों का पालन नहीं करने से भी ज़्यादा खतरनाक स्थिति है, क्योंकि ऐसे हालात में मुझे बेहद आसान लगने लगता है, अपनी लापरवाही से किसी की भी जान को खतरे में डाल देना...
हालांकि आज एक बात आपकी जानकारी में लाना चाह रहा हूं... और किसी को हुआ हो, या न हुआ हो, हमारी पुलिस को इस बात का एहसास हुआ है, और उन्होंने इस स्थिति में सुधार के लिए अब नई पीढ़ी को साथ जोड़कर चलने की जुगत की है... सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उन्होंने एक पेज बनाया है, जिस पर आम आदमी से कहा गया कि आप कानून तोड़ने वालों की तस्वीरें हमें भेजें, हम कार्रवाई करेंगे... 12,000-13,000 के लगभग दिल्लीवाले उनके साथ जुड़ भी चुके हैं, और लगातार तस्वीरें भेज रहे हैं, जिन पर लगातार कार्रवाई भी हो रही है...
इससे जो सबसे बड़ा लाभ होगा, वह यह है कि तस्वीरें खींचने वाले खुद को दिल्ली ट्रैफिक पुलिस से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे, और दूसरी ओर कानून तोड़ने वालों के लिए अब सिर्फ गिने-चुने पुलिस कैमरे ही नहीं, दिल्ली की हर आंख कैमरे का काम करेगी... अब कोई भी इस बात से निश्चिंत नहीं हो सकता कि फलां रेडलाइट पर कैमरा नहीं लगा है, तो मैं वहां से बिना सीटबेल्ट लगाए या रेडलाइट पर बिना रुके निकल सकता हूं...
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के इस पेज पर जो दूसरी दिल को भाने वाली बात है, वह यह है कि जनता सड़कों पर यातायात की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव भी दे रही है... ऐसे वाहन, जो 50 सीसी से कम क्षमता के हैं, उनके लिए भी रजिस्ट्रेशन ज़रूरी होना चाहिए, या ऐसे वाहनों पर भी हेल्मेट लगाना अनिवार्य होना चाहिए, यह मांग इस पेज पर की गई... शहर में जिन इलाकों में गलत तरीके से पार्किंग की जाती है, वहीं की तस्वीरें अपलोड किए जाने के बाद कार्रवाई की भी गई है...
एक और बात, जो इस पेज पर नज़र आई, वह है पुलिसवालों द्वारा ही नियम तोड़कर ड्राइव करने के विरुद्ध लोगों की मांग... बहुत-से शहरियों ने पुलिस वालों के फोटो अपलोड किए हैं, जिनमें बिना हेल्मेट दोपहिया चलाना, बिना सीटबेल्ट कार चलाना, और गलत तरीके से पुलिस का दोरंगा लोगो अपनी नंबर प्लेट पर लगाना... दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने इनमें से कुछ पर कार्रवाई भी की है, लेकिन उन्हें इस पर ज्यादा चौकन्ना रहना होगा, क्योंकि एक आम आदमी को नियम तोड़ने पर बिना दंडित किए छोड़ देने से उनकी जितनी बदनामी हो सकती है, उससे कहीं ज़्यादा बदनामी अपने लोगों को छूट देने से होगी, और छवि को सुधारने में जो लाभ उन्हें इस पेज के बनाने से मिला है, वह कहीं धुल जाएगा... कहते हैं न, बदनाम व्यक्ति को सुधरने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है...
खैर, एक ज़रूरी बात और... दिल्ली की सड़कों पर चलते हुए दोपहिया देखकर मेरे दिल में हमेशा एक बात ज़रूर कौंधती है... दो पुरुष बैठे हैं, दोनों ने हेल्मेट पहना है... लेकिन जब कोई महिला किसी दोपहिये पर पीछे की सीट पर बैठी हो, तो हेल्मेट क्यों नहीं पहनती... इसलिए, क्योंकि नियमों ने उन्हें इस बात की छूट दे रखी है... अब कोई उनसे पूछे, भगवान न करे, किसी वक्त आपके साथ कोई हादसा हो गया, तो आप 'यमदूत' को भी यही कहकर खाली हाथ लौटा पाएंगी, कि मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है, सो, मुझे मत लेकर जाओ... देवियों, आपका सिर भी उसी हड्डी-मांस का बना है, जिससे आपके पिता, भाई या पति का... स्टेनलेस स्टील के सिर बनाना परमात्मा ने अभी शुरू नहीं किया है, जो आपको नहीं फटने की गारंटी दे सकेगा...
एक प्रार्थना आप सब महिलाओं से... हमारे बीच हमारी मांओं, बहनों, बेटियों, पत्नियों का रहना बेहद ज़रूरी है, इसलिए खुद ऐसे हालात पैदा मत कीजिए, कि हम आपको खो दें... शहर की सुंदरता का आपके साथ ही आनंद उठा पाएंगे हम...
याद रखें, कोई शहर कितना भी सुंदर हो, सड़क पर हादसों में मरते हुए लोग उसे वीभत्स और डरावना बना देते हैं, दोस्तों...
विवेक रस्तोगी Khabar.NDTV.com के संपादक हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Jul 12, 2010
आइए, दिल्ली को सुंदर बनाएं...
Vivek Rastogi
- ब्लॉग,
-
Updated:मार्च 20, 2018 14:59 pm IST
-
Published On जुलाई 12, 2010 15:56 pm IST
-
Last Updated On मार्च 20, 2018 14:59 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
ड्राइवर, थ्रिल, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस, दिल्ली में ट्रैफिक की समस्या, नियम, यातायात की समस्या, विवेक रस्तोगी, सड़क, स्पीड, Traffic Rules Violation, Vivek Rastogi