छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता जोगी की आपराधिक मिलीभगत के खिलाफ एफआईआर और गिरफ्तारी न करने वाली पुलिस ने बकरी को जज के सरकारी बंगले की घास खाने के जुर्म में गिरफ्तार करके कार्यकुशलता की नई मिसाल पेश की है। कोरिया जिले के जनकपुर इलाके में आईपीसी की धारा 427 एवं 447 के तहत गिरफ्तार अब्दुल हसन उर्फ 'गणपत' को सोशल मीडिया में व्यापक अपील के बाद रिहा तो कर दिया गया पर यह खबर अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनकर भारत के कानूनों के लिए एक मजाक सा बन गई।
कमजोर-गरीबों पर ही पड़ती है सख्त कानून की मार
आजादी के बाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा अंतिम व्यक्ति की खुशहाली की परिकल्पना के पीछे गांधीजी के आदर्शों का बड़ा प्रभाव था। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के नाम पर पुलिस द्वारा महिलाओं और बच्चों का उत्पीड़न आम है जो अब खबर भी नहीं बनती। दिल्ली या महानगरों में हुए अपराध की घटना जब मीडिया की सनसनी बनती है तब शहरी समाज द्वारा सख्त कानूनों यथा- बलात्कारियों को बधिया करना, जुवेनाइल को वयस्क अपराधी की तरह ट्रीट करना तथा चेन स्नेचिंग के दोषियों के विरुद्ध रासुका लगाने की मांग उठती है। बकरी मामले से यह स्पष्ट है कि सख्त कानूनों की गाज कमजोर और गरीब लोगों पर पड़ती है और रसूखदार लोग कानून की धाराओं से बच ही जाते हैं। बंगाल में ममता सरकार द्वारा मर्डर के अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के बजाय फेसबुक पोस्ट लिखने वाले युवा की गिरफ्तारी पुलिस की निरंकुशता तथा कानून की ऐसी ही मनमाफिक व्याख्या को जताती है।
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निरीह कैदियों की रिहाई में किसी की दिलचस्पी नहीं !
आंकड़ों के अनुसार देश के संसाधनों की लूट नेता, व्यापारी एवं अफसरों के गठजोड़ द्वारा की जा रही है जो कुल आबादी का एक प्रतिशत से भी कम है। छत्तीसगढ़ में चावल घोटाला, मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाला, महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाला, दिल्ली में कॉमनवैल्थ घोटाला, केरल में सोलर एनर्जी घोटाला, राजस्थान में भूमि घोटाला, डीसीसीए तथा क्रिकेट घोटाले के दोषी लोग सत्ता प्रतिष्ठान या विपक्ष में रहकर सरकार का पूरा दोहन कर रहे हैं पर उनके विरूद्ध कोई एफआईआर या गिरफ्तारी नहीं होती। बुन्देलखण्ड तथा विदर्भ में कुछ हजार रुपये के लोन न चुकाने पर कुर्की से पीड़ित किसान आत्महत्या के लिए विवश हैं पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद रिजर्व बैंक द्वारा पांच लाख करोड़ से अधिक बैंकों के कर्जदार उद्योगपतियों के नाम भी उजागर नहीं किये जाते हैं। दूसरी तरफ देश की जेलों में तीन लाख से अधिक कैदी हैं जिनमें 90 फीसदी से अधिक गरीब और अशिक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन बेनुगाह कैदियों की रिहाई के लिए फिर से राज्यों को आदेश दिये गये हैं जिसका पालन कर निरीह कैदियों की रिहाई में शायद ही किसी सरकार की दिलचस्पी हो !
तोता, कबूतर की गिरफ्तारी से देश के कानून का बना मजाक
आज़ाद भारत में कानूनों के ऐसे दुरुपयोग से गुलाम भारत की पुलिस अभिजात्यता भी पीछे छूट गयी है। पुलिस डायरी के अनुसार बकरी को जज साहब के बंगले की घास चरने के विरुद्ध कई बार चेतावनी दी गई थी और न मानने पर उसे गिरफ्तार किया गया। यादव सिंह के हजारों करोड़ के घोटाले के विरुद्ध कार्यवाही न करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री आजम खान की भैंसों की चोरी के लिए पूरा प्रशासन सक्रिय होकर पांच लोगों को गिरफ्तार भी कर लेता है। महाराष्ट्र में चन्द्रपुर में पुलिस द्वारा गालीबाज तोता तथा पंजाब में पाकिस्तानी जासूस होने के आरोप में कबूतर की गिरफ्तारी से कानून और संविधान का मजाक बन गया है जो अविलम्ब पुलिस सुधार की जरूरत को भी दर्शाता है। वरना आर्थिक उदारवाद के दौर में हजारों करोड़ की सरकारी सम्पत्ति को चरने वाले लोग आजाद घूमते रहेंगे और मूक बकरी ही जेल जाकर सपेरों के देश की अन्तर्राष्ट्रीय खबर बनेंगी।
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From Feb 10, 2016
सरकारी 'घास' : कैद में बकरी और चरने वाले आजाद
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 10, 2016 15:07 pm IST
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Published On फ़रवरी 10, 2016 14:06 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 10, 2016 15:07 pm IST
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