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This Article is From Jun 27, 2016

काला धन - नाकाफी है 'मन की बात', करें नीतियों में बदलाव

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 27, 2016 14:37 pm IST
    • Published On जून 27, 2016 14:37 pm IST
    • Last Updated On जून 27, 2016 14:37 pm IST
संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक कश्मीरी लाल ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे डॉक्टर हो सकते हैं, परंतु पुरानी दवाओं के इस्तेमाल से अर्थव्यवस्था की हालत कैसे सुधरेगी...? इस बार 'मन की बात' कार्यक्रम में सामाजिक मुद्दों की बजाय काले धन तथा टैक्स चोरी की चर्चा करके पीएम ने अच्छी नीयत को दर्शाया है, परंतु सरकार की नीतियों से तो काले धन की समस्या और अधिक बढ़ रही है...

काले धन की वापसी तथा कठोर दंड पर सरकार की विफलता - सरकार बनाने पर हर देशवासी के खाते में 15 लाख रुपये जमा कराने में विफल होने पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उसे जुमला ही करार दे दिया। काले धन पर सरकार की नई योजना से लगभग 3,770 करोड़ का ही खुलासा हो सका, जिसके अलावा 13,000 करोड़ के काले धन की सूचना मिलने की बात कही जा रही है। वर्ष 2012-13 में 2.87 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किया, जिसमें सिर्फ 1.25 करोड़ लोगों ने टैक्स दिया। देश में सिर्फ 5,430 लोगों ने एक करोड़ रुपये से ज्यादा और उनमें से सिर्फ तीन लोगों ने 100 करोड़ से ऊपर का इनकम टैक्स दिया। प्रधानमंत्री ने इस गड़बड़ी पर इशारा करते हुए कहा कि 125 करोड़ लोगों में सिर्फ डेढ़ लाख लोगों की कर-योग्य आय 50 लाख रुपये से ज्यादा है, जबकि लाखों लोग करोड़ों के बंगले में रह रहे हैं। सवाल यह है कि काले धन वालों को दंडित करने की बजाय, नौ लाख करोड़ खर्च करके सरकार उनके लिए स्मार्ट सिटी क्यों बना रही है...?

राजनेता, उद्योगपति एवं अफसरों के गठजोड़ से उपजा विकृत पूंजीवाद और काला धन - केंद्र और राज्य के चुनावों में सभी दलों द्वारा 10 लाख करोड़ से अधिक काला धन खर्च होता है, जिसकी झलक बसपा के बागी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा टिकट देने में भ्रष्टाचार के बयानों से मिलती है। राजनीतिक दलों द्वारा 20,000 रुपये से अधिक की आमदनी या खर्च को चेक से ही करने की बाध्यता के नियम को मोदी सरकार लागू करके काले धन की व्यवस्था को सुधार सकती है, जिसको करने की बजाय बड़े उद्योगपतियों को 5.32 लाख करोड़ से अधिक की टैक्स छूट दे दी जाती है।

सरकारी बैंकों के पैसे की लूट पर सरकार की चुप्पी - पिछले साल इनकम टैक्स की कुल वसूली लगभग तीन लाख करोड़ की थी, जबकि सिर्फ 44 उद्योगपतियों ने पांच सरकारी बैंकों से 4.87 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल 31 मार्च तक सरकारी बैंकों के कुल फंसे हुए कर्ज का 1/3 हिस्सा केवल 30 कर्जदारों ने हजम कर लिया। डीओपीटी द्वारा जारी नए नियमों के अनुसार सरकारी अनुदान के तौर पर दो करोड़ रुपये से अधिक की राशि लेने वाले एनजीओ के अधिकारियों को लोकसेवक मानते हुए उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत कार्रवाई हो सकेगी, जबकि सरकारी बैंकों के लाखों-करोड़ रुपये हजम करने वाले बड़े उद्योगपति, जो काले धन का प्रमुख कारण हैं, के विरुद्ध कानून बेबस ही रहता है।

'स्मार्ट सिटी' के दौर में भारत भी 'ब्रेक्ज़िट सिंड्रोम' की गिरफ्त में - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुणे में स्मार्ट सिटी योजना का शुभारंभ करते हुए इसे हर मर्ज की दवा बताया। इनमें रहने वाले एक फीसदी बड़े लोगों ने देश के 53 फीसदी से अधिक संसाधनों पर कब्जा किया है। काले धन की व्यवस्था इन लंबरदारों को दंडित करने की बजाय उन्हें बैंकों की ऋण माफी, एफडीआई से सस्ता धन और श्रम-कानूनों में सरकारी रियायत दी जा रही है। ई-कॉमर्स की नई इकोनॉमी से जॉबलेस ग्रोथ हो रही है, जिससे करोड़ों युवा बेरोजगारी की कुंठा और नशे का शिकार हैं। जीडीपी के आंकड़ों में भले ही संदेह हो, लेकिन कृषि क्षेत्र की नकारात्मक विकास दर पर सभी सहमत हैं। गांवों में और आम आदमी के पास काला धन तो नहीं, परंतु अभावों का सूखा है, जो स्मार्ट सिटी के कचरे से दूर नहीं होगा। सरकारी नीतियों की वजह से देश में अमीरों और गरीबों के बीच बहुत बड़ी खाई है, जिसे स्मार्ट सिटी के द्वारा पुख्ता किया जा रहा है, जिससे भारत भी ब्रेक्ज़िट सिंड्रोम की गिरफ्त में आ सकता है। जनता को राहत देने के लिए पीएम को 'मन की बात' के अलावा नीतियों में बदलाव भी करना होगा, वरना बेरोजगारी तथा अभावों से लाचार भारत, काले धन से लबालब स्मार्ट सिटी के दरवाजे पर शरणार्थी के तौर पर दस्तक तो देगा ही...!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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