कांग्रेस के शशि थरूर ने भारत में सोशल मीडिया के राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत की थी, जिस पर बाद में BJP ने आधिपत्य जमा लिया. नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्हॉट्सऐप, फेसबुक, गूगल और ट्विटर का जमकर इस्तेमाल हुआ, जिसमें कांग्रेस ने अब फिर बढ़त हासिल कर ली है. राज्यों में चुनाव से पहले सेन्टर फॉर एकाउन्टेबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज (CASC) संस्था ने विस्तृत सुझाव देकर चुनाव आयोग से 2013 के नियमों का पालन सुनिश्चित कराने की अपील की थी. इसके जवाब में चुनाव आयोग ने फेसबुक और ट्विटर को पत्र लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली. केंद्रीय कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी सोशल मीडिया कंपनियों को भारतीय चुनावों में हस्तक्षेप नहीं करने की अनेक चेतावनी दी हैं, परंतु इन सभी चेतावनियों से बेख़बर सोशल मीडिया कंपनियों का भारतीय चुनावों में दखल बढ़ता ही जा रहा है, जो अगले आम चुनाव में संकट का सबब बन सकता है.
फेसबुक द्वारा डाटा बेचने का गोरखधंधा : ब्रिटेन की संसदीय समिति द्वारा जारी 250 पेज के दस्तावेज़ से फेसबुक द्वारा डाटा बेचने के आपराधिक प्रमाण सामने आए हैं. फेसबुक द्वारा अमेरिका के चुनावों को प्रभावित किया गया, जिसे अब बड़े पैमाने पर भारत में दोहराया जा रहा है. केंद्र सरकार की अनेक चेतावनियों के बावजूद फेसबुक का डाटा भारत से अमेरिका जाने का सिलसिला नहीं रुक रहा. चुनाव आयोग के दवाब के बाद फेसबुक ने विज्ञापनों के अनुमोदन के लिए नीति तो बनाई, जिस पर अभी तक अमल नहीं हुआ. 30 करोड़ यूज़रों का सबसे बड़ा बाज़ार होने के बावजूद चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए, फेसबुक ने अभी तक भारत में सार्वजनिक विज्ञापन जारी नहीं किया है. पोस्ट, लाइक और शेयर के आधार पर फेसबुक द्वारा लोगों के राजनीतिक रुझान का अनुमान लगाया जाता है, जिसका कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसी कम्पनियां व्यावसायिक इस्तेमाल करती हैं. इन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के बजाय, जांच को CBI के हवाले कर सरकार द्वारा पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश हो रही है.
व्हॉट्सऐप में चुनावी ग्रुपों का महाजाल : चुनाव जीतने के लिए पन्ना प्रमुख और बूथ कार्यकर्ता के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर बताने में व्हॉट्सऐप ग्रुप के महाजाल को नजरअंदाज़ किया जा रहा है. कर्नाटक में BJP के 20,000 व्हॉट्सऐप ग्रुपों के जवाब में कांग्रेस-JDS के गठबंधन ने 30,000 ग्रुपों के माध्यम से चुनावी सफलता हासिल की. चुनाव आयोग द्वारा जारी 2013 के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्याशियों द्वारा फेसबुक और ट्विटर के खातों की जानकारी देना ज़रूरी है, पर इस नियम को व्हॉट्सऐप पर लागू नहीं किया गया. चुनावों में कांग्रेस द्वारा डिजिटल बढ़त हासिल करने के बाद अब सोशल मीडिया कंपनियों के नियमन की बात शुरू हो गई है. केंद्र सरकार ने सुझाव दिया है कि व्हॉट्सऐप ग्रुप में शामिल करने से पहले एडमिन द्वारा लोगों की सहमति ज़रूरी होनी चाहिए. व्हॉट्सऐप द्वारा अखबारों में बड़े विज्ञापन देकर फेक न्यूज़ को रोकने का दिखावा किया जा रहा है. व्हॉट्सऐप जैसी कंपनियों के हज़ारों करोड़ के कारोबार पर सरकार ने और सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा भारत में शिकायत अधिकारी नहीं नियुक्त करने जैसी गंभीर अनियमितताओं पर चुनाव आयोग की चुप्पी दुर्भाग्यपूर्ण है.
गूगल ट्रेंड से राजनीतिक रुझानों का अनुमान : भारत में इंटरनेट और मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले अधिकांश लोग गूगल गुरु के आदी हो गए हैं, जिसकी छाप इन चुनावों में दिखी. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वोटिंग से लेकर नतीजों तक गूगल पर BJP से ज्यादा कांग्रेस को सर्च किया गया. राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बराबरी से सर्च किए गए, लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी को ज्यादा तवज्जो मिली. 10 साल पहले ऑपरेशन प्रिज़्म के तहत गूगल समेत नौ इंटरनेट कंपनियों ने भारत के छह अरब से ज्यादा डाटा को अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ गैरकानूनी तौर पर साझा किया था. कानून के अनुसार भारत के चुनावों में विदेशी कंपनियों की दखलअंदाज़ी नहीं हो सकती. गूगल द्वारा लोगों के राजनीतिक रुझानों को यदि प्रभावित करना शुरू कर दिया जाए तो भारतीय लोकतंत्र की कमांड बहुत जल्द अमेरिका के पास आ सकती है.
चुनावों में ट्विटर की बढ़ती चहक : पांच राज्यों के चुनावों के प्रारंभिक दौर से ही ट्विटर में हलचल बढ़ गई. ट्विटर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर के पहले सप्ताह में चुनावों से संबंधित 12 लाख से ज्यादा ट्वीट किए गए. भारत में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति नहीं करने वाली कंपनी ने अब चुनावों के लिए एक विशेष इमोजी भी जारी कर दिया. ट्विटर में बोगस एकाउंट्स के माध्यम से नेताओं द्वारा फेक न्यूज़, हेट न्यूज़ और प्रोपेगैंडा से लोकतंत्र को हाईजैक करने की कोशिश कामयाब होती जा रही है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ट्विटर में आठ से 10 फीसदी यूज़रों डुप्लीकेट और बोगस हैं, परंतु इंडस्ट्री के अनुमानों के अनुसार बोगस यूज़रों की संख्या 30 फीसदी से ऊपर हो सकती है. यूज़रों के बारे में छोटी जानकारियां इकठ्ठा करने वाली ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां, भारी मुनाफे के लिए ऐसे दुरुपयोग को बढ़ावा देती हैं. पिछले आम चुनाव में सभी पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल होने के बावजूद सिर्फ पांच सांसदों ने इस बाबत खर्चों की घोषणा की. नियमों के पालन के लिए इन कंपनियों पर सख्त कार्रवाई करने के बजाय चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं द्वारा कागज़ी खानापूरी करते रहने से, देश में अराजकता की स्थिति बन रही है.
चुनावों में 48 घंटे का साइलेंस पीरियड अब बेमानी : जनता सोच-विचारकर नेताओं को चुने, इसके लिए अनेक नियम और कानून बनाए गए हैं. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 के अनुसार वोटिंग से 48 घंटे पहले प्रत्याशियों और दलों द्वारा चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता. 24 घंटे के TV चैनल और सोशल मीडिया के डिजिटल दौर में अब ये कानून बेमानी हो गए हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने चुनावी कानूनों में सुधार के लिए सरकार को विस्तृत प्रतिवेदन भेजा था, परंतु नगदी और विदेशी चंदे पर कानून को दरकिनार करने वाले राजनीतिक दलों से प्रोपेगैंडा के नियमन की अपेक्षा यह देश कैसे करे...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From Dec 14, 2018
फेसबुक, व्हॉट्सऐप, गूगल और ट्विटर से भारत में चुनावी सफलता
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 14, 2018 09:54 am IST
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Published On दिसंबर 14, 2018 09:54 am IST
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Last Updated On दिसंबर 14, 2018 09:54 am IST
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