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This Article is From Aug 22, 2017

पांच में से तीन जजों का तीन तलाक पर फैसला - पांच सवाल

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 22, 2017 13:00 pm IST
    • Published On अगस्त 22, 2017 12:57 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 22, 2017 13:00 pm IST
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा 3:2 के बहुमत से दिए गए फैसले पर कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिनका आने वाले समय में सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना होगा.

चीफ जस्टिस अल्पमत में : संवैधानिक बेंच के तीन जज कुरियन जोसफ, यूयू ललित और आरएफ नरीमन ने बहुमत के फैसले से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया. चीफ जस्टिस जेएस खेहर और अब्दुल नजीर ने अल्पमत के फैसले से संसद को इस बारे में कानून बनाने के लिए निर्देश दिया. चीफ जस्टिस कोलेजियम के प्रमुख के तौर पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जजों को नियुक्त करते हैं, पर उनका फैसला अल्पमत का होने से पूरा मामला और दिलचस्प हो गया है. ऐसे ही एक पुराने वाकये में 1991 में डीटीसी के फैसले में पांच जजों की संविधान पीठ में चार जजों के बहुमत के विपरीत चीफ जस्टिस अल्पमत में होकर अकेले पड़ गए थे.

VIDEO: सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 'तीन तलाक' को किया खत्म


असंवैधानिक नहीं तो फिर छह महीने की रोक क्यों : चीफ जस्टिस खेहर ने कहा कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं करता. चीफ जस्टिस के अनुसार तलाक-ए-बिद्दत सुन्नी समुदाय की 1,000 साल से ज्यादा पुरानी परम्पराओं का हिस्सा है. तीन तलाक यदि सही है, तो फिर इस पर छह महीने की रोक लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत चीफ जस्टिस ने आदेश क्यों पारित किया...?

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क्या अब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक को बैन करेगा : सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि 2005 के मॉडल निकाहनामे में तीन तलाक को अस्वीकार किया गया है. रामचन्द्र गुहा ने सवाल किया था कि पसर्नल लॉ को नए जमाने के अनुरूप बदलने के लिए माहौल बनाने में वामपन्थी तथा मुस्लिम प्रगतिशील समुदाय क्यों विफल रहा है...? सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद क्या मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड तीन तलाक पर प्रतिबंध के लिए निर्देश जारी करेगा...?

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संवैधानिक बेंच में पांच धर्मों के जज पर कोई महिला जज नहीं : तीन तलाक का मामला मुस्लिम धर्म की महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है. संवैधानिक बेंच में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म के पांच जज शामिल थे. देश में मुस्लिम महिलाएं कुल आबादी का लगभग आठ फीसदी हैं. यदि सभी धर्मों के जज इस फैसले में शामिल थे, तो संविधान पीठ में महिला जज को भी शामिल क्यों नहीं किया गया...?

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मुस्लिम पसर्नल लॉ पर संसद कब कानून बनाएगी : संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता बनाने के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं, जिस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को आदेश दिए हैं. इस बारे में विधि आयोग ने सरकार के निर्देश पर कार्रवाई भी शुरू कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के मामले समेत अनेक बार यह फैसला दिया है, जिसके अनुसार कानून बनाने का काम संसद का है. इसी वजह से समलैंगिकता मामले पर आईपीसी की धारा 377 को रद्द करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संसद के हवाले कर दिया था. संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय देश का कानून बन जाते हैं. इस फैसले के बाद अभी पुनर्विचार याचिका समेत और बड़ी संविधान पीठ द्वारा मामले की सुनवाई के आवेदन आएंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस विवाद के खात्मे के लिए संसद कब कानून बनाएगी...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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