मद्रास हाईकोर्ट के दो जजों ने केंद्र सरकार को टिकटॉक ऐप पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्टे करने से इंकार कर दिया. इसके बावजूद टिकटॉक की वेबसाइट और ऐप पूरे भारत में अब भी उपलब्ध है. सवाल यह है कि हाईकोर्ट की सख्ती के बावजूद केंद्र सरकार आदेश पर अमल क्यों नहीं कर रही है.
6 साल बाद भी बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिए कानून नहीं
केएन गोविन्दाचार्य के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने साइबर जगत में बच्चों की सुरक्षा के लिए अनेक आदेश पारित किए थे. पिछले छह साल में UPA और NDA की सरकारों ने डिजिटल इंडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों को खुली छूट दी, लेकिन बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने में सभी सरकारें विफल रहीं. अमेरिका में बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए 1998 में कानून बनाए, जिसके अनुसार 13 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का हिस्सा नहीं बन सकते. 13 से 18 साल तक की उम्र के बच्चे मां-बाप की सहमति और निगरानी में ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं. सोशल मीडिया कंपनियों के ऑनलाइन एग्रीमेंट में इस कानून का जिक्र होता है, जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में मुहर लगाई थी. मद्रास हाईकोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा के कानून के बारे में केंद्र सरकार से उन्हीं सवालों को दोहराया है.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा टिकटॉक पर बैन क्यों नहीं
मद्रास हाईकोर्ट के जजों ने इसके पहले ब्लू-व्हेल गेम पर भी प्रतिबंध लगाया था, जिस पर केंद्र सरकार ने अमल नहीं किया. केंद्र सरकार के आदेश के बाद गूगल और एपल के स्टोर से नए यूज़र फिलहाल टिकटॉक एप को डाउनलोड नहीं कर पाएंगे. लेकिन जिन लोगों ने पहले से ही यह ऐप अपने फोन में इंस्टॉल कर रखा है, वे लोग बगैर दिक्कत के इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. शेयरइट जैसे ऐप के माध्यम से नए यूज़रों ने भी टिकटॉक को इंस्टॉल करने का रास्ता खोज लिया है. केंद्र सरकार के सभी दावों के बावजूद टिकटॉक की वेबसाइट भी बदस्तूर चल रही है. राष्ट्रवाद के नाम पर चीनी सामान के बहिष्कार की घोषणा होती है, तो फिर टिकटॉक से केंद्र सरकार को इतना लगाव क्यों है. सवाल यह है कि मद्रास हाईकोर्ट के सख्त और स्पष्ट आदेश के बावजूद केंद्र सरकार ने आईटी एक्ट की धारा 69 के तहत टिकटॉक ऐप और वेबसाइट पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया.
भारत टिकटॉक का सबसे बड़ा बाज़ार, परंतु शिकायत अधिकारी का पता नहीं
चीनी कंपनी ने टिकटॉक को सितंबर, 2016 में लॉन्च किया था और अब भारत इसका सबसे बड़ा बाज़ार है. सेंसर टॉवर की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी से लेकर मार्च के तीन महीनों में टिकटॉक ने विश्वभर में 18.8 करोड़ नए यूज़र जोड़े, जिनमें भारत से 8.86 करोड़ यूज़र जोड़े गए. टिकटॉक द्वारा भारत में बड़े पैमाने पर निवेश का दावा किया जा रहा है. टिकटॉक के अनुसार भारत में हर महीने करीब 1.2 करोड़ एक्टिव यूज़र्स हैं, जिनके लिए भारत में 250 कर्मचारी बताए जाते हैं. आईटी कानून के तहत टिकटॉक ने अनुज भाटिया को अपना शिकायत अधिकारी नियुक्त किया है, लेकिन उनका पता और अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है. टिकटॉक ने पिछले साल जुलाई से अभी तक सामुदायिक नियमों के उल्लंघन के आरोप में भारत में 60 लाख से ज्यादा वीडियो हटाने का दावा किया है. मद्रास हाईकोर्ट के आदेश में टिकटॉक की वजह से हो रही अनेक दुःखद घटनाओं का जिक्र है. पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया गेट में टिकटॉक का वीडियो बनाते समय गोली चलने से एक व्यक्ति की मौत भी हो गई. इन सब घटनाओं के बावजूद केंद्र सरकार ने टिकटॉक के शिकायत अधिकारी को ज़रूरी निर्देश देकर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन क्यों नहीं किया...?
बच्चों की सुरक्षा और पॉक्सो कानून
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि टिकटॉक के माध्यम से बच्चों को पोर्नोग्राफिक, अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री परोसी जा रही है. मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार को अदालत के आदेश के बगैर भी बच्चों की सुरक्षा के इंतजाम करने चाहिए. बच्चों से संबंधित आपराधिक मामलों में पुलिस द्वारा आईपीसी और पॉक्सो के तहत कठोर कार्रवाई की जाती है, परंतु विदेशी कंपनियों के रसूख के आगे भारत में पूरा सिस्टम फेल हो जाता है. अमेरिका ने टिकटॉक द्वारा बच्चों की प्राइवेसी भंग करने के आरोप में 5.7 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया गया था. इंडोनेशिया और बांग्लादेश में भी टिकटॉक को बैन करने के आदेश हुए थे. केंद्र सरकार द्वारा समुचित कानून नहीं बनाए जाने और उपलब्ध कानूनों का पालन नहीं करने से भारत विश्व का सबसे बड़ा डाटा उपनिवेश बन रहा है, जहां बच्चों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल है.
टिकटॉक से संघीय व्यवस्था पर गंभीर सवाल
संविधान के अनुसार कानून और व्यवस्था का मामला राज्य सरकार के अंतर्गत आता है. साइबर जगत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संविधान में कोई विशेष प्रावधान नहीं किए गए हैं, तो फिर इन कंपनियों पर कार्रवाई में कोताही क्यों बरती जाती है...? हकीकत यह है कि ब्लू-व्हेल, टिकटॉक, उबर जैसे ऐप के मामलों में कार्रवाई के लिए राज्य सरकारों के पास कोई अधिकार नहीं है. डिजिटल इंडिया में साइबर सुरक्षा के अनेक पहलुओं पर राज्यों की पुलिस को कार्रवाई के लिए आईटी एक्ट में ज़रूरी अधिकार दिए जाने से संघीय व्यवस्था सुदृढ़ होने के साथ बच्चों की भी बेहतर सुरक्षा हो सकेगी. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में इस मामले पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी. उम्मीद है कि बच्चों की सुरक्षा के साथ टिकटॉक जैसी कंपनियों के प्लेटफॉर्म में विज्ञापन से हो रही बड़ी आमदनी और डाटा सुरक्षा के मसलों पर भी अदालत द्वारा ठोस आदेश पारित किए जाएंगे.
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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