यूपी चुनाव : स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करके और निखरे अखिलेश

यूपी चुनाव : स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करके और निखरे अखिलेश

अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दाल का सपा में विलय का मुखर विरोध करना आखिरकार यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए रंग लाया। शुक्रवार को लखनऊ में हुई पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में इस विलय को रद्द कर दिया गया। यह केवल युवा अखिलेश यादव की अपने चाचा शिवपाल पर जीत नहीं है बल्कि यह जीत उस मुख्यमंत्री की है जो अपने परिवार, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और जनता में स्वीकार्यता के लिए बीते सवा चार सालों से संघर्ष करता आया है।

संसदीय बोर्ड की बैठक में अखिलेश ने अपना पक्ष  बेहद मजबूती से रखा। उन्होंने बैठक में मौजूद सभी वरिष्ठ नेताओं से यह साफ कह दिया कि गुंडों व बाहुबलियों से हाथ मिलाने से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचेगा। मुख्यमंत्री ने सभी को यह भी भरोसा दिलाया की उनकी सरकार के विकास कार्य ही काफी हैं चुनाव लड़ने के लिए और वह खुद जनता के बीच जाकर सरकार की उपलब्धियों को गिनाएंगे। बैठक में मौजूद सपा प्रमुख मुलायम सिंह समेत अधिकतर वरिष्ठ नेता अखिलेश की बात से सहमत दिखे जिसके बाद संसदीय बोर्ड ने यह भी निर्णय लिया कि अगले साल की शुरुआत से ही अखिलेश यादव पूरे प्रदेश में विकास रथ निकालकर अपनी सरकार के विकास कार्यों का गुणगान करेंगे।

अखिलेश यादव कल मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे। 60 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में फ़िलहाल 4 रिक्त स्थान हैं। माना यह जा रहा है की अखिलेश यादव के बेहद क़रीबी सुनील सिंह साजन का मंत्री बनना तय है जिन्हें बीते साल शिवपाल के कहने पर पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि तब भी अखिलेश के कड़े विरोध के बाद सुनील सिंह को पार्टी में दोबारा शामिल कर लिया गया था। इसके अलावा कुछ मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा जो पार्टी की छवि को खराब कर रहे हैं और उनकी जगह युवा चेहरों को शामिल किया जाएगा जो अखिलेश के करीबी हैं। खबरों की मानें तो अखिलेश ने मुलायम से कई बार मिलकर पार्टी के 40 उन विधायकों की टिकट काटने की सिफारिश की है जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी करने की शिकायतें मिली हैं। इन सबसे मतलब साफ है अखिलेश विकास का मुद्दा व पार्टी की साफ छवि को लेकर ही चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं।   

अखिलेश जब 2012 में मुख्यमंत्री बने तो उन्हें विरासत में अपने परिवार की बगावत के साथ-साथ वे मंत्री व अफसर मिले जो केवल मुलायम सिंह को अपना सर्वे सर्वा मानते थे। चाचा शिवपाल और कई ऐसे वरिष्ठ नेता कैबिनेट मंत्री बने जो अखिलेश की ताजपोशी से नाखुश थे। शुरुआत में अखिलेश पिता के करीबी मंत्री व अफसरों के खिलाफ कार्यवाही करने से बचते रहे जो अपने मनमाफ़िक ही कामकाज़ करते थे।  इस कारण न केवल प्रदेश की कानून व्यवस्था बिगड़ती गई बल्कि सरकार के कई कमजोर फैसलों से अखिलेश की किरकिरी भी हुई। मुलायम ने भी कई बार अखिलेश को सावर्जनिक स्थानों पर कमजोर मुख्यमंत्री बताकर फटकार भी लगाई है। इसका खामियाजा सपा को 2014 लोक सभा चुनाव में भुगतना पड़ा जहां पार्टी की सीटें 23 से घटकर महज़ 5 रह गईं। चुनाव में मिली हार के बाद से अखिलेश की कार्यशैली में बेहद परिवर्तन आया है।

इन दो सालों में अखिलेश ने प्रदेश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाईं और तेजा से उस पर काम भी किया। अखिलेश सरकार में आज यूपी गन्ना उत्पादन में नंबर 1 पर है।  पर्यटन , आईटी , स्किल डेवलपमेंट , सड़क , ऊर्जा व चिकित्सा के क्षेत्र में भी यूपी ने ज़बरदस्त काम किया है । सूखे की मार झेल रहे बुन्देलखण्ड में भी अखिलेश कई बार गए और पानी की किल्लत को खत्म करने के लिए हो रहे कार्यों का खुद जायज़ा लिया। अखिलेश सरकार की इन कोशिशों के चलते प्रदेश की जीडीपी भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। लखनऊ मेट्रो का काम भी तेज़ी से चल रहा है। उम्मीद यह है कि इस साल के अंत तक लखनऊ में मेट्रो शुरू भी हो जाएगी। यूपी में न केवल देश का सबसे बड़ा एक्सप्रेस वे बन रहा है बल्कि सभी ज़िला मुख्यालयों को फोर लेन से जोड़ने का काम भी तेज़ी से चल रहा है। अब चाहे पिता मुलायम हों या चाचा शिवपाल मुख्यमंत्री पार्टी के किसी भी खराब फैसले का कड़ाई से विरोध करते हैं और उन नेताओं और अफसरों पर भी कार्यवाही करते हैं जिनकी वजह से सरकार की छवि खराब होती है । हालांकि कानून व्यवस्था को सुधरने में वो फिलहाल नाकाम ही रहे हैं।

यूपी चुनाव से जुड़े सभी ओपिनियन पोल के मुताबिक भले ही सपा के हाथों से सत्ता जा रही हो लेकिन इन सर्वे में यह भी बताया गया है कि लोग अखिलेश यादव से नाखुश नहीं है बल्कि साफ छवि और सरल स्वभाव के युवा अखिलेश की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। अखिलेश को भी भरोसा है कि 2012 की तरह अगले साल भी वह विकास रथ लेकर यूपी के जनमानस को मथेंगे। अखिलेश सपा को फिर से जीत दिलाने में कामयाब होंगे या नहीं इसका फैसला हम जनता पर छोड़ते हैं लेकिन हमें इस बात को श्रेय यूपी सीएम को ज़रूर देना चाहिए कि परिवार व पार्टी में स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करते करते वह एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभर कर आए हैं और पार्टी सिर्फ उन्हीं को चेहरा बनाकर यूपी चुनाव लड़ेगी।

नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...

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