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This Article is From Apr 13, 2018

रोज जन्म लेती है निर्भया और तिल-तिल, पल-पल मरती है उसकी अस्मिता...

Anita Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 17, 2018 16:10 pm IST
    • Published On अप्रैल 13, 2018 19:07 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 17, 2018 16:10 pm IST
तेरह साल की बच्ची घेरे वाली फ्रॉक जिद करके ले आई थी और पूरे दो दिन तक उसे पहन कर गांवभर में घूम रही थी. एक-एक राहगीर को दिखा रही थी- 'देखो चाचा मेरी नई फ्रॉक', 'देखो काकी, देखो न...' हर कोई उसकी इस नादानी पर हंस देता और उसे पुचकार कर आगे निकल जाता. खुशी से झूमती उसकी नजर दूर लगे होर्डिंग पर पड़ी. सिनेमा की एक बड़ी ही खूबसूरत अदाकारा वहां से उसे देख मुस्कुरा रही थी, जैसे कह रही हो 'अरे तुम कितनी खूबसूरत हो, मुझसे भी ज्यादा...'  उस नन्हीं सी बच्ची ने आंखें मींच लीं और फ्रॉक के घेर को मुट्ठी में दबा कर घूमने लगी. उसे लग रहा था कि वह भी उस अदाकारा की तरह सुंदर है और जब बड़ी होगी, तो ऐसे ही अखबारों में, होर्डिंग्स पर, टीवी और रेडियो पर उसकी भी तस्वीरें छपेंगी, चर्चा होगी, उसका नाम हर जुबान पर होगा, पापा को उसके नाम से जाना जाएगा... उसकी आंखें भर आईं. अनायास ही मुंह से निकला- 'पापा, पापा के तो आंसू ही बह पड़ेंगे न, इतनी खुशी कहां बरदाश्त होती है उनसे. ओह, पापा भी न...'

ऐसा ही कुछ होता है न नादान सी इस उम्र में. ये उम्र कहां जानती है कि इस देश में सपने हौसलों की उड़ान कम ही भर पाते हैं. उन्हें तो एक लिंग (जेंडर) की कमजोरी और दूसरे की भूख निगल लेती है. कहां जानती थी कि उसके इन रुपहले, रंगीन और हवा के परों पर सवार सपनों को टूट कर गिरने के लिए कहीं दो गज जगह न मिलेगी. उन्हें बेरहमी से कुचला जाएगा.

इस बात को तीन साल ही तो हुए होंगे कि वो सब हुआ जो उसने सोचा था. लेकिन जैसे कार्बन पर हम कितना ही अच्छा लिख लें उसके पीछे अक्षर भद्दे, काले और उल्टे दिखते हैं ठीक वैसा ही उसके साथ हुआ...

पापा को उसके नाम से जाना गया और उनकी आंखों से आंसू भी झलके... बस फर्क ये था कि उसका नाम बदल कर रेप पीड़ि‍ता रखा गया था और पापा का आंसूओं के साथ खून भी बह निकला था... उसी के चलते पापा को तड़प-तड़प कर जान गंवानी पड़ी. मरने से पहले उसके पिता को अपमान की मौत दी गई. जो पुलिस उसकी रक्षा के लिए थी वह उनका मजाक बनाती रही... और उसकी अस्‍म‍िता पर जाने कितने ही लोग रोज उंगलियां उठा रहे हैं.

वह आज दिख तो हर अखबार के पहले पन्ने और हर बड़े टीवी चैनल पर रही है, लेकिन उसने मुंह छि‍पा लिया है. रोते वह बार-बार बेहोश हो जाती है, खाना उसके गले से नहीं उतरता, आंखें शायद सूख कर पथरा गई हैं. मुंह पर लगा दुपट्टा इतना भारी हो चला है कि उसके लिए सांस लेना मुश्क‍िल हो रहा है, तभी तो उसकी सपनों से भरी दो आंखें अब अंधेरे झरोखों सी रोशनी को तलाश रही हैं. वो स्वाभि‍मान से नजरें उठा कर नहीं देखती, उसकी नजरें नीचे कहीं कुछ तलाश रही हैं. मुझे तो लगता है शायद रामायण की सीता की तरह वह भी धरती की गोद में जगह ढूंढ़ रही है, लेकिन नहीं उसका नसीब ऐसा कहां वह 'राम राज्य' में नहीं कलयुग में जो है...

उन्नाव रेप केस मामले की पीड़ि‍त वह साल भर से वह इस मवाद को कलेजे में दबाए इधर से उधर घूम रही है. उसे उम्मीद है कि इस देश का कानून इस दर्द का इलाज जरूर करेगा, लेकिन कब... पौक्‍सो का मामला होने के बाद अभी तक 'वि‍धायक जी' की गरफ्तारी नहीं की गई, यहां तक कि उनसे तो पूछताछ तक नहीं हुई...

उन्नाव के मामले में कौन अपराधी है यह तय करना कानून के दायरे में आने वाला काम है, लेकिन अगर 'विधायक जी' सच्चे हैं, तो कानून के तहत आरोपी होने के चलते गिरफ्तारी क्यों नहीं दे सकते. विधायक की पत्नी क्यों अगल-अलग चैनलों पर पीड़ि‍ता पर और भद्दे आरोप लगाती हैं. हद तो सरकार कर रही है. मामले में यूपी सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अपने विधायक का परोक्ष रूप से बचाव किया. पिता की मौत के बाद जाने किस किस को निलंबित कर दिया गया, लेकिन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर नाम के पीछे एक 'जी' तक नहीं हटा. पूरी कॉन्फ्रेंस में राज्य सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) एक बलात्कार के आरोपी को वि‍धायक 'जी' कहकर पुकारते रहे. कौन सच्चा है और कौन झूठा यह तय करना काननू का काम है और सभी पक्षों और पहलूओं को कानून के सामने लाना पुलिस का. एक कहावत सुनी थी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस'. लगता है इसे समय के साथ बदल कर जिसकी सरकार उसकी पुलिस कर देना चाहिए.

एक निर्भया आई थी, जिसे हम सबने नासूर सा कलेजे में बसा रखा है, लेकिन दूसरी निर्भया न आए इसके लिए क्या किया जाए. आए रोज इस देश में कई निर्भया जन्म लेकर तिल-तिल मरने को मजबूर हैं. कुछ सामने नहीं आती, जो आती हैं उनसे उनका बचाखुचा संसार भी छीन लिया जाता है. केस वापस लेने का दबाव बनाया जाता है. एक बार हुए उस घि‍नौने कांड को उसी के मुंह से बार-बार उसे जीने को मजबूर किया जाता है. क्या हमारी सरकारों का, समाज का और कहीं हमारा खुद का रवैया ही तो इसके लिए जिम्मेदार नहीं. बात सोचने और सवाल उठाने की है और वक्त इससे उठे सवालों के जवाब तलाशने का. क्योंकि अगर अब जवाब नहीं तलाशे गए, तो परिणाम और भी भयानक होंगे...

अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में डेप्‍यूटी न्‍यूज एडिटर हैं

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