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This Article is From Dec 09, 2019

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए भी संदेश छिपा है बी.एस. येदियुरप्पा की जीत में

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 09, 2019 15:47 pm IST
    • Published On दिसंबर 09, 2019 15:47 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 09, 2019 15:47 pm IST

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने सोमवार सुबह उपचुनाव के रूप में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (JDS) के मुकाबले एक बड़ी लड़ाई जीतकर दिखाई है, जिसमें बहुत कुछ दांव पर लगा था. मोटे तौर पर इन्हीं दोनों विपक्षी पार्टियों से आए नेताओं की बदौलत BJP सोमवार दोपहर 12 बजे तक कुल 15 में से 12 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करती नज़र आ रही थी.

बी.एस. येदियुरप्पा इसी साल जुलाई में राजनैतिक कौशल का परिचय देते हुए तत्कालीन सत्तारूढ़ गठबंधन कांग्रेस-JDS से कई नेताओं को अलग किया, और सरकार गिर गई, जिससे बी.एस. येदियुरप्पा को चौथी बार राज्य का मुख्यमंत्री बन जाने का अवसर हासिल हुआ था.

उस समय जिन लोगों ने कांग्रेस और JDS का साथ छोड़ा था, उन्हें कोई चुनावी कीमत नहीं चुकानी पड़ी. बी.एस. येदियुरप्पा को साधारण बहुमत साबित करने के लिए इन 15 में से सिर्फ छह सीटों की ज़रूरत थी, और अब उनके पास छह अतिरिक्त सीटें हैं.

76-वर्षीय अथक बी.एस. येदियुरप्पा इस उपचुनाव का चेहरा भी थे, और प्रचार अभियान का मुद्दा भी. बी.एस. येदियुरप्पा की नीतियां और व्यवहार ही इस उपचुनाव में कसौटी पर कसे जा रहे थे, जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया जाना और नागरिकता (संशोधन) बिल जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे यहां सुनाई भी नहीं दिए.

उपचुनाव की नौबत इसलिए आई थी, क्योंकि जुलाई में 17 विधायकों के बागी हो जाने के चलते कांग्रेस-JDS सरकार गिर गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य करार दिया, लेकिन दोबारा चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी, और फिर पिछले माह वे औपचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गए.

बी.एस. येदियुरप्पा संभवतः देश के सबसे ज़्यादा धार्मिक नेताओं में शुमार किए जा सकते हैं, और पिछले दो दिन से वह क्षेत्र के सभी बड़े मंदिरों में जा रहे थे. इसके अलावा उन्होंने बेंगलुरू स्थित मुख्यमंत्री आवास में भी निर्बाध रिले पूजा आयोजित की थी.

बेहद उतार-चढ़ाव से भरे रहे साल के अंत में आए ये उपचुनाव नतीजे हमें राजनैतिक तापमान के बारे में क्या सिखाते हैं...? पहली सीख यह है कि यदि BJP के विरुद्ध विपक्ष बेहतर प्रदर्शन करना चाहता है, तो उसे हर राज्य में शरद पवार सरीखा एक चेहरा चाहिए. वरिष्ठ कांग्रेस नेता डी.के. शिवकुमार भी वैसा होने के इच्छुक हैं, लेकिन फिलहाल वह पवार के स्तर तक नहीं पहुंचे हैं, जो BJP को उन्हीं के खेल में मात दे सकें.

प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद अक्टूबर में जेल से बाहर निकलने पर भव्य स्वागत हासिल करने वाले डी.के. शिवकुमार ने अतीत में साबित किया है कि कांग्रेस के लिए संघर्ष करने से वह कभी पीछे नहीं हटे - उन्होंने जुलाई में भी पार्टी छोड़कर जाने वालों को रोकने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन उस वक्त बी.एस. येदियुरप्पा निश्चित रूप से उन पर भारी पड़े थे.

बी.एस. येदियुरप्पा भली-भांति जानते थे कि उनके पास 105 सीटों के साथ साधारण बहुमत है, सो उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी और उपचुनाव के लिए अनवरत प्रचार में जुटे रहे. उधर, सरकार के गिर जाने के बाद गठबंधन को खत्म कर देने वाली कांग्रेस और JDS ने सोचा कि वे चुनाव से पहले ही जीत चुके हैं. JDS के एच.डी. देवेगौड़ा और कांग्रेस के शिवकुमार-मल्लिकार्जुन खड़गे गुट ने खुलेआम येदियुरप्पा सरकार को गिराने की बातें करना शुरू कर दिया. JDS से गठबंधन के खिलाफ रहे कांग्रेस नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इस पर कतई चुप्पी साधे रहे. सो, गुटबाजी की शिकार कर्नाटक कांग्रेस ने BJP का काम आसान कर दिया.

दूसरी सीख : इस उपचुनाव नतीजों में सबसे बड़ा नुकसान JDS का हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी (जिनके पिता एच.डी. देवेगौड़ा JDS के मुखिया हैं) ने उम्मीद की थी कि नतीजे त्रिशंकु होंगे, और उनके पास कम से कम एक हथियार बना रहेगा, जिसके ज़रिये वह कांग्रेस और BJP, दोनों से ही 'सौदेबाज़ी' कर सकें. लेकिन अब कुमारस्वामी को अपनी पार्टी का आकार घट जाने की चिंता करनी होगी, क्योंकि अब उनके नेताओं के लिए कांग्रेस और BJP कहीं ज़्यादा आकर्षक विकल्प हैं.

तीसरा, (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और (BJP अध्यक्ष) अमित शाह, जो BJP के इतिहास में पार्टी के सबसे ज़्यादा केंद्रीयकृत स्वरूप का संचालन कर रहे हैं और राज्यों का संचालन नगण्य नेतृत्व के ज़रिये करना चाहते हैं, अब तक ऐसा नहीं कर पाए हैं. बी.एस. येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति से अलग हट जाने के लिए मोदी और शाह की लागू की हुई 75 वर्ष की आयुसीमा को लांघ चुके हैं, और मुख्यमंत्री बनने की उनकी ख्वाहिश को भी केंद्रीय नेतृत्व से ज़्यादा मदद नहीं मिली है. लेकिन वह अपने लिए खुद ही ताकत बने हुए हैं, और उन्हें सक्रिय राजनीति में बने रहने की इच्छा को लेकर कोई अफसोस नहीं है. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कर्नाटक में उनके बिना BJP ढह जाएगी. वर्ष 2012 में गुस्से के दौर में बी.एस. येदियुरप्पा ने BJP को छोड़ भी दिया था, ताकि अपनी पार्टी बना सकें, लेकिन जनवरी, 2014 में वह मूल पार्टी में लौट आए थे, और उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का ज़ोरदार असर रहा था.

दिल्ली में बैठी सरकार द्वारा एक-स्तर से राजनीति किए जाने की भरसक कोशिशों के बावजूद राज्यों में मज़बूती बनी हुई है. पार्टी के क्षेत्रीय क्षत्रपों - जैसे राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान - को किनारे कर देना मोदी और शाह के लिए आसान नहीं होगा. दोनों ही दिल्ली आने से इंकार कर चुके हैं, और पार्टी उपाध्यक्ष बना दिए जाने के बावजूद उन्होंने अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में वापसी करने की महत्वाकांक्षा को तिलांजलि देने से भी इंकार कर दिया है.

डी.के. शिवकुमार ने आज (सोमवार को) कहा, "हम हार कबूल करते हैं..." लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस को लगातार जारी अंदरूनी कलह ने मारा, जो उस पार्टी 'हाईकमान' से संघर्षरत है, जिसे न यह पता है कि क्या करना चाहिए, और न वह पार्टी में अनुशासन बनाए रखने में कामयाब रही.

कांग्रेस को उम्मीद थी कि उन्हें महाराष्ट्र-सरीखी जीत हासिल होगी, जहां वह संघर्ष किए बिना ही सरकार का हिस्सा बनने में कामयाब रही है. बहुत अजीब बात है कि कांग्रेस को यह एहसास होता भी नहीं दिख रहा है कि वह महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी बन गई है, जबकि हाल ही तक वह वहां प्रभावशाली पार्टी रही है, कम से कम विपक्ष में तो प्रभावी थी ही.

महाराष्ट्र में हाल ही में सत्ता में विराजे उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना-कांग्रेस-NCP गठबंधन को BJP नेता येदियुरप्पा-सरीखा कदम उठाने की धमकी देते रहे हैं. यह ध्यान में रखने लायक बात है कि गठबंधन में अभी तक मंत्रालयों को लेकर सहमति नहीं बन पाई है, इसलिए ठाकरे को BJP की ओर से सावधान रहने की बहुत ज़रूरत है.

अंततः अगर इन परिणामों के बाद JDS और भी कमज़ोर होती है, तो कांग्रेस के मुकाबले BJP को ज़्यादा फायदा होगा. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "एक बार जब येदियुरप्पा का युग खत्म हो जाएगा, और यदि वह अपने रहते किसी और BJP नेता को मुख्यमंत्री न बनने दें, तो BJP के लिए विकल्पहीनता की स्थिति बन जाएगी, और तब कांग्रेस को लाभ मिल सकता है..."

अब राष्ट्रीय स्तर की विपक्षी पार्टी को इस तरह की उम्मीदें ज़िन्दा रखे हुए हैं. इसीलिए, कतई हैरानी की बात नहीं कि उनकी जीत इतनी कम हैं, और बहुत जल्द वे खत्म भी हो जाती हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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