भोपाल में आज विश्व हिन्दी सम्मेलन का प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने उद्घाटन किया। 32 साल बाद भारत में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ है। जिसमें 39 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। पहली बार इसका आयोजन नागपुर में 1975 में फिर दोबारा 1983 में दिल्ली में हुआ था और फिर विदेशों में होता रहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भाषा में भी चेतना होती है और हिंदी नहीं आती तो उनका क्या होता पता नहीं। उन्होंने हिन्दी के महत्व पर जोर दिया। 2001 के सेन्सस के अनुसार देश में सिर्फ 41 प्रतिशत लोगों की मातृ भाषा हिन्दी है। हमारे देश में 122 भाषाएं है, 1599 बोलियां हैं, हमारा देश युवा देश कहा जाता है। 66 प्रतिशत लोग 35 साल से कम उम्र के हैं, 80 प्रतिशत के पास मोबाइल फोन है, 35 करोड़ जनता यानी 28 प्रतिशत इंटरनेट का प्रयोग करती है।
बड़ा वर्ग सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर सक्रिय है जो हिन्दी से ज्यादा अंग्रेजी का उपयोग करता है। आज के इस आयोजन पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कहना है कि ये सम्मेलन हिन्दी साहित्य पर नहीं बल्की प्रशासन और सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी के उपयोग के विस्तार पर है। मंत्री वी.के. सिह ने बुधवार को कहा था कि कुछ लोगों को लग रहा होगा कि हम तो जाते थे, कहते थे, दारू पीते थे, आलेख कविता पढ़ते थे, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। हिन्दी सम्मेलन को नया स्वरूप दिया है। बाद में उन्होंने कहा कि ये बयान सन्दर्भ को समझे बिना लिया गया है।
तो इस आयोजन को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विशालकाय आयोजन समिती के 129 सदस्य हैं लेकिन सिर्फ 21 का अन्तराष्ट्रीय पटल पर साहित्य, पत्रकारिता या ललित कला में दर्जा है। बाकी 95 राजनेता या प्रशासनिक अफसर हैं। प्रमुख सुषमा स्वराज हैं, 8 शिक्षक या उपकुलपति और 5 अन्य हैं जिनका वर्णन नहीं है। सवाल उठ रहे हैं कि जानेमाने साहित्यकारों को निमन्त्रण नहीं दिया गया, उनकी अनदेखी हो रही है। एक आयोजक के अनुसार ये आयोजन कवियों की उपल्बधियों पर चर्चा नहीं बल्की इस पर विचार मंथन के लिए है कि हिन्दी को राष्ट्रीय मुख्यधारा में कैसे लाया जाये।
संसद के इस सत्र में याद होगा, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का वो पर्चा जिसमें उन्होंने हिन्दी में अपने भाषण के महत्वपूर्ण बिन्दू लिखे थे, लेकिन रोमन में। हमारा युवा देश तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स में ज्यादातर रोमन का प्रयोग करता है। यहा बता दें कि रोमन में लिखने का इस्तेमाल अंग्रेजी ही नहीं बल्की जर्मन, फ्रेन्च, मीजो स्क्रिप्ट में भी होता है। तो सरकार क्या सिर्फ हिन्दी बोलने पर जोर देना चाह रही है या उसके लिखने पर भी।
सी.वी. रमन के साथ बातचीत में बापू ने कहा कि अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय हम अंग्रेजी सीखने में बिता देते हैं फिर भी हम आश्वस्त नहीं होते कि हम उसे ठीक से बोल रहे हैं कि नही। इससे रचनात्मकता खत्म हो जाती है। तो अंग्रेजी जिसने 200 साल तक हम पर हूकूमत की, आज के दौर में हमारे लिये क्या है, जो एक विश्व भाषा है, जिसं सफलता का मानक माना जाता है संविधान के 8वें अनुसूची में 22 भाषाएं हैं, यानी हर राज्य को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार है। और ये भी भारतवर्ष की आधिकारिक भाषा का दर्जा चाहती है, तो भाषा सम्बन्धी बराबरी का सवाल भी उठता है।
सुषमा स्वराज ने एक जगह कहा है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में 129 वोटों को हासिल करना चाहता है, जिससे हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा का दर्जा मिल सके। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए भारत को 177 वोट मिले थे 193 में से। तो आज अपने कार्यक्रम बड़ी खबर में जानकारों का कहना था कि इस तरह के सम्मेलनों से हिन्दी भाषा को फायदा नहीं होता लेकिन कुछ लोगों के लिए उद्योग बन जाता है।
सरकार पर हिन्दी के कारोबार का आक्षेप लगा। कहा गया कि इस तरह के सम्मेलनों से कुछ लोग अपना फायदा सहेजते हैं, भाषा को फायदा नहीं मिलता। प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों और अफसरों को कह दिया है कि हिन्दी में ट्वीट करें, लेकिन सरकार के खुद के कार्यक्रमों में अंग्रेजी का प्रयोग दिखता है। ये भी सही है कि हिन्दी के इस तरह के कायर्क्रमों से भाषा का प्रसार होता है। नेता और अफसर हिन्दी में लिखने को तव्ज्जो देंगे। अब मोबाइल फोन में इस तरह की सुविधा है जो आसानी से हिन्दी में लिखने में मदद करती है, भूल सुधार करती है। तो जो भी अवसर मिले भाषा को मजबूती मिल ही जाती है।
This Article is From Sep 10, 2015
निधि का नोट : भाषा को मजबूती मिल ही जाती है
Reported By Nidhi Kulpati
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 22, 2016 10:34 am IST
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Published On सितंबर 10, 2015 22:01 pm IST
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Last Updated On सितंबर 22, 2016 10:34 am IST
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