(NDTV.in के मनीष कुमार के साथ बातचीत में)
पांच राज्यों के परिणाम (मैं खुद को सिर्फ तीन बड़े हिन्दी-भाषी राज्यों तक नहीं बांध रहा हूं, जहां जनता ने BJP के 15 साल के शासन को कतई खत्म कर दिया, और तेलंगाना और मिज़ोरम में तो गंभीरता से लिया तक नहीं) इस बात के सबूत हैं कि वोटर अब खोखले वादों से ऊब चुके हैं, और जुमलों के पार की सच्चाई देख सकते हैं. BJP के लिए ये हार ऐसे वक्त में आई हैं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और BJP अध्यक्ष अमित शाह जीत के प्रति आश्वस्त थे - और ये परिणाम संकेत हैं कि आगे भी ऐसे ही परिणाम मिलने वाले हैं.मोदी और शाह साफ-साफ इससे परेशान भी हैं. वरना, पेट्रोल और डीज़ल के बुधवार से बढ़ते दामों की कोई क्या सफाई देगा? या अंतिम वोट डाल दिए जाने के बाद से गोरक्षा और मंदिर निर्माण को लेकर जुनून कैसे शांत हो गया है?
मुझे मालूम है कि बहुत-से नेता तथा BJP कार्यकर्ता इस सवाल को लेकर आश्वस्त हैं - मोदी बनाम कौन? उन्हें अब भी लगता है, उनका कोई सानी नहीं है. इसके लिए मेरा जवाब है - पिछला चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के ही बारे में था, लेकिन इस बार जनता का सिर्फ एक सवाल है - 'क्या हुआ तेरा वादा?' उन्होंने गुहार की थी, "आपने दूसरों को 60 साल दिए, कृपया मुझे 60 महीने दीजिए", और लोगों ने खुशी-खुशी उन्हें देश चलाने का मौका दे दिया. अब उन्हें जवाब देना होगा कि वह क्यों अपने वादे - दो करोड़ बेरोज़गार युवकों को नौकरियां जेना, विदेशों में जमा काला धन वापस लेकर आना, किसानों को संकट और तनाव से बचाना - पूरे नहीं कर पाए.
इसके अलावा, मुझे गंगा नदी से पानी का नमूना लेकर यह देखने में भी खुशी महसूस होगी कि वह उनकी सरकार की बदौलत पहले के मुकाबले कितना साफ हो पाया है.
सो, जो लोग यह पूछते हैं - 'मोदी बनाम कौन?', उनके लिए मेरा जवाब है - 'मोदी बनाम उनके वादे'.
(राहुल गांधी तथा कांग्रेस के लिए वर्ष 2014 के बाद ये सबसे अच्छे चुनाव परिणाम रहे)
यहां तक कि उन्हीं की पार्टी के नेता-कार्यकर्ता मानने लगे हैं कि वादे पूरे नहीं कर पाना ही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है. इसके अलावा उनके घमंड और राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को डराने के लिए खुलेआम किए जा रहा ताकत के दुरुपयोग से अविश्वास का माहौल बन गया है. अगर मोदी दोबारा चुने जाते हैं, तो वह संविधान को बदलने की कोशिश करेंगे, जैसे उन्होंने हमारे संस्थानों को तहस-नहस कर डाला है, चाहे वह RBI, CBI या न्यायपालिका हो, या मीडिया हो.
कांग्रेस को उम्मीद है कि ये नतीजे उनके नेता को 2019 के लिए बनने वाले विपक्षी गठबंधन में अच्छी स्थिति में पहुंचा देंगे.
जहां तक हमारी रणनीति का सवाल है, मैं दोहराना चाहूंगा कि मोदी-नीत NDA के खिलाफ राष्ट्रव्यापी गठबंधन काफी उम्मीद जगाने वाला, आश्वस्त करने वाला और प्रोत्साहित करने वाला है. राष्ट्रीय स्वीकार्यता होने तथा विपक्ष का सबसे बड़ा हिस्सा होने के चलते बेशक कांग्रेस ही BJP या NDA के खिलाफ विपक्ष के आक्रमण का नेतृत्व करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है. बहरहाल, कांग्रेस और राहुल जी को अपनी नेतृत्व की भूमिका को बड़े दिल के साथ निभाना होगा, और क्षेत्रीय दलों को उनके एजेंडा के साथ शामिल कर अग्रसक्रिय भूमिका अदा करनी होगी. जिन राज्यों में कांग्रेस का आधार मज़बूत नहीं है, वहां उसे क्षेत्रीय दलों को BJP से मुकाबला करने के लिए आगे आने देना होगा. इसके अलावा, क्षेत्रीय दलों के पास वोटों को पलटने की शानदार काबिलियत होती है. हम जीत की क्षमता पर फोकस कर रहे हैं, सो, गठबंधन पर फैसला राज्यवार, सीटवार करना होगा.
(तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, तथा वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में RJD के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी हैं…)
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