मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के सोनीपुरा गांव के कैलाश सहरिया की मौत टीबी से हुई. कुछ दिन बाद टीबी की बीमारी ने उसके पिता और फिर मां की जान भी ले ली. कैलाश के छोटे भाई रामकिशन ने बताया कि ‘टीबी ने तो हमें बर्बाद कर दिया. परिवार के सभी लोगों के इलाज पर डेढ़ लाख रुपये खर्च हो गए. सात बीघा जमीन बेचनी पड़ी.‘ बकौल रामकिशन ‘जब इस बीमारी का पता चला तो कैलाश ने सरकारी अस्पताल में मिलने वाली डॉट्स की दवा ली थी, लेकिन इससे उन्हें घबराहट होने लगी और दवा बंद कर दी. फिर निजी डॉक्टर को दिखाया, लेकिन वहां भी फायदा नहीं मिला, भाई चल बसा.‘
ऐसी सच्ची कहानियां टीबी प्रभावित वाले क्षेत्र के गांव-गांव में मौजूद हैं. इसका प्रभाव केवल एक शरीर पर नहीं पूरे परिवार और आजीविका पर पड़ता है. यह हालात तब हैं जबकि देश में टीबी का एक भरोसेमंद और मु्फ्त इलाज मौजूद है. तकरीबन 55 साल से एक बड़ा कार्यक्रम इस देश में चलाया जा रहा है. वक्त के हिसाब से उसमें तमाम संशोधन भी किए जा चुके हैं. फिर भी आखिर क्या वजह है कि करोड़ों रुपयों के कार्यक्रम और अब तो स्वास्थ्य बीमा के बावजूद लोगों को कर्ज लेकर टीबी का इलाज करवाना पड़ रहा है. उन्हें अपनी जमीन-जायदाद तक बेचनी पड़ रही है, जबकि खासकर टीबी के इलाज के मामले में तो ऐसा बिलकुल भी नहीं होना चाहिए. इस दौर में तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि सरकार ने टीबी के खात्मे के लिए 2025 तक का संकल्प लिया है. पर बड़ा सवाल यह है कि जिस तरह से परिस्थितियां सामने आ रही हैं, क्या ऐसा संभव हो पाएगा?
देश में टीबी के मरीजों की नोटिफिकेशन रिपोर्ट
साल सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थाएं गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाएं कुल योग
2013 14,34,986 60,989 14,95,975
2014 14,27,271 1,39,710 15,66,981
2015 14,27,271 1,39,710 15,66,981
2016 14,56,819 2,26,155 16,33,767
2017 14,69,150 3,95,838 18,64,986
Source : RNTCP
पिछले कुछ सालों में भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण बहुत तेजी से बढ़ा है. टीबी पर भी स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की बीमारी ने घेर लिया है. रिवाइज्ड नेशनल टयूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत टीबी के नोटिफिकेशन का प्रावधान किया गया है. इसकी वेबसाइट पर आप देख सकते हैं कि साल दर साल टीबी के कितने मरीजों को सरकारी और गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं में सूचित किया गया है. इसमें सबसे चौंकाने वाला मामला यह है कि पिछले पांच सालों में ही निजी अस्पतालों में जाने वाले मरीजों का आंकड़ा 60 हजार से बढ़कर 3,95,838 पर पहुंच गया है, जबकि दूसरी ओर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सूचित होने वाले मरीजों की संख्या में महज 35 हजार मरीजों की ही और बढ़त हुई है. गंभीर बात यह है कि इससे एक साल पहले निजी अस्पतालों में केवल सात हजार मरीज अधिसूचित किए गए. यह क्या बताता है, इसे समझने की कोशिश कीजिए. यदि मरीजों की संख्या में बढ़त होनी थी तो वह समानांतर रूप से दोनों ही क्षेत्रों में होनी चाहिए थी. इसका मतलब यह है कि टीबी के इलाज के लिए सरकारी संस्थाओं पर लोगों का भरोसा तेजी से कम हुआ है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों के मोहभंग होने का या दूसरे शब्दों में किए जाने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या मिल सकता है? टीबी का सरकारी और गैर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में बिलकुल एक जैसा इलाज होने पर हमारे टीबी कंट्रोल के प्रोग्राम जमीन पर क्यों लोगों का भरोसा जीत पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. आखिर यह भी तय किया जाना चाहिए कि यदि 2025 तक देश से टीबी खत्म हो रहा है तो क्या उसे इस तेज गति से अपना दायरा फैला रहीं और लोगों को गरीबी में धकेल रहीं निजी स्वास्थ्य सेवाएं ले जाएंगी, या इसका रास्ता स्वास्थ्य बीमा के जरिए खोजा जाएगा, जिसका एक विश्लेषण यह भी कहता है कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए घातक ही साबित होगा.
यदि कैलाश के परिवार तक यह संदेश पहुंच गया होता कि निजी अस्पताल में भी वही दवा मिलती है, जो वह अभी खा रहा है, या वह दवा ही पर्याप्त है, तो शायद उसकी जमीन बिकने से बच गई होती. उसका परिवार टूटने से बच गया होता. सोनीपुरा के इसी मोहल्ले में जहां उसका घर है, पान की एक गुमठी है, जिस पर इंटरनेट प्लान, डेटा पैक, चिप्स, गुटखे और चमकती पन्नियों में पच्चीसों प्रकार की अनावश्यक वस्तुएं मौजूद हैं, लेकिन भरोसे का एक संदेश जो इस इलाके के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, गायब है.
दरअसल दवा के साथ जो सबसे जरूरी चीज संदेश है, वह जमीन तक पहुंच पाना क्या इस डिजिटल युग में और कठिन हो रहा है. क्या सोशल मीडिया की क्रांति जरूरी चीजों के लिए भी हो पाएगी, या व्हाट्सऐप के कारखानों से केवल कचरे का उत्पादन ही होता रहेगा. जब तक दवा के साथ भरोसे का संदेश मरीजों तक नहीं पहुंच पाएगा, तब तक आखिर लोग भी कैसे समझ पाएंगे कि उनके लिए सरकार कितनी चिंतित है.
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...
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This Article is From Mar 26, 2018
टीबी को घेर लिया है 'निजीकरण की बीमारी' ने
Rakesh Kumar Malviya
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 27, 2018 10:58 am IST
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Published On मार्च 26, 2018 23:02 pm IST
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Last Updated On मार्च 27, 2018 10:58 am IST
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