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This Article is From Oct 31, 2015

सुशील महापात्रा का ब्लॉग : क्या 'बीफ' और 'बयानबाजी' से बनेगा भारत का भविष्य?

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 01, 2015 00:03 am IST
    • Published On अक्टूबर 31, 2015 14:42 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 01, 2015 00:03 am IST
"हैलो मैं हुसैन बोल रहा हूँ" ...हुसैन , कौन हुसैन? अरे भाई तुम्हारा दोस्त हुसैन? तुम मुझे भूल गए, हम दोनों एक कॉलेज में पढ़ते थे?  तुम जब दिल्ली आए थे, मैं तुम्हारा स्वागत करने रेलवे स्टेशन आया था ? फिर मुझे सब कुछ याद आ गया। जब मैं कटक में पढ़ाई कर रहा था तब हुसैन मेरा अच्छा दोस्त हुआ करता था। जब मैं दिल्ली आया तब हुसैन ही मुझे रिसीव करने के लिए रेलवे स्टेशन आया था। मेरे दिल्ली आने से पहले वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली आ चुका था। उसने कुछ दिन मुझे अपने पास रखा था और मेरी काफी मदद भी की थी।

हालांकि कुछ महीने बाद हुसैन ओडिशा वापस चला गया। फिर धीरे-धीरे उससे मेरा संपर्क टूट गया। दोनों के कान्टैक्ट नंबर बदल जाने से एक दूसरे से सम्पर्क करना बंद हो गया था। अब हुसैन की आवाज़ पहले की तरह बुलंद नहीं लग रही थी और ऐसा लग रहा था कि वह घबराया हुआ है। मैंने उसका हाल चाल पूछा। उसने जवाब दिया वह ठीक है। कई मसले पर बात हुई। उसने कहा कि बीफ के ऊपर हो रही राजनीति से वह डरने लगा है। समाज में बीफ को लेकर हिन्दू और मुस्लिम के बीच चल रहे झगड़े से उसे डर लगने लगा है।

एक पढ़े-लिखे समझदार दोस्त को घबराते हुए देखकर मैं खुद घबरा गया। कुछ देर के बात बातचीत खत्म हुई। हुसैन की बात मेरे दिमाग में घूम रही थी। मुझे अपना गांव याद आ रहा था। मेरे गांव के आसपास कई मुस्लिम बहुल इलाके हैं। मुझे वह मुस्लिम दोस्त याद आ रहे थे जिनके साथ मेरा बचपन गुजरा है, जिनके साथ में क्रिकेट खेला हूं। मैं खुद बीफ नहीं खाता हूं, न मेरे गांव में कोई खाता है।

मेरे इलाके में शायद ही कोई हिन्दू बीफ खाता हो। गांव में गायों की पूजा की जाती है। लेकिन मेरे दिमाग में ऐसी कोई घटना सामने नहीं आ रही है कि कभी बीफ की वजह से हमारे इन इलाकों में हिन्दू और मुसलमानों के बीच झगड़ा हुआ हो। मैंने दोनों समुदायों को एक-दूसरे का सम्मान करते हुए देखा है। एक-दूसरे को अपने सुख और दुःख में शामिल होते हुए देखा है। मिलकर खाना खाते हुए देखा है। लेकिन आज जिस ढंग से बीफ को लेकर राजनीति हो रही है उससे मुझे भी डर लगने लगा है... कहीं यह बीफ की राजनीति मेरे गावों तक न पहुंच जाए।

जहां भी देखो बीफ का मुद्दा छाया हुआ है। न्यूज़ चैनल से लेकर न्यूज़ पेपर तक, चुनावी रैली से लेकर सोशल मीडिया तक...  फेसबुक में एक लाख से ज्यादा पोस्ट बीफ के मामले पर पोस्ट की गई हैं। पूरा फेसबुक इस मुद्दे पर बंटा हुआ है। ऐसा लग रहा है कि दोनों समुदायों के बीच जंग चल रही है। जो फेसबुक दोस्तों को जोड़ने का काम करता है वह अब तोड़ने का काम कर रहा है। ऐसा लगने लगा है कि बीफ ही देश का भविष्य तय करने वाला है।

हमारा समाज जितना आगे बढ़ रहा है उससे ज्यादा पीछे घसीटा जा रहा है। हम अपने आपको पढ़े-लिखे समाज का हिस्सा मानते हैं लेकिन असलियत में हम कई बार ऐसी मूर्खता कर जाते हैं जिसकी वजह से शर्मिंदा होते हुए भी गल्ती छुपाने की कोशिश करते हैं। क्या पहले कभी लोग बीफ नहीं खाते थे... लेकिन आज इस बीफ पर बवाल क्यों मचा हुआ है ? 

हम इतिहास का इम्तिहान ले रहे हैं या इतिहास हमारा। आज़ादी की लड़ाई हिन्दू और मुसलमानों ने एकजुट होकर लड़ी थी। 1857 की क्रांति के दौरान दोनों समुदायों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। हिन्दू और मुस्लिमों के बीच एकता को देखते हुए बहादुर शाह जफर ने अपने वक्त में बीफ बैन की घोषणा भी कर दी थी। महात्मा गांधी खुद बीफ बैन के खिलाफ थे। दोनों समुदाय एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हुए आगे बढ़े हैं। अगर खानपान से हम एक-दूसरे की खामियां निकालेंगे तो इससे खतरनाक हमारे समाज के लिए कुछ हो नहीं सकता।

बीफ के मसले पर लगभग सभी राजनैतिक दल फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ नेता बीफ के भरोसे अपना राजनीतिक भविष्य चमकाने में लगे हुए हैं। भड़काऊ बयान दे रहे हैं। मीडिया को भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ऐसे बयानों को दिखाने से परहेज़ करना पड़ेगा। ज्यादा टीआरपी के लिए मीडिया भी ऐसे मुद्दों पर काफी बहस कराता है।  टीवी चैनलों पर अलग-अलग समुदायों के लोग एक-दूसरे से लड़ते हुए नजर आते हैं जो समाज के लिए  एक गलत संदेश पहुंचाते हैं।

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