एक पहाड़ पर दो बाघ नहीं हो सकते.क्या यह चीनी कहावत नरेन्द्र मोदी की हाल ही में शुरू हुई दूसरी पारी की खासियत बनने जा रही है? या फिर मोदी और अमित शाह इसे गलत साबित करेंगे?
यह नहीं हो सकता कि दो बहुत मजबूत व्यक्तित्व देश का नेतृत्व करें. दुनिया के तमाम दिग्गज नेताओं ने इस कहावत का अर्थ जाना है, भले ही वे इसके चीनी मूल से परिचित न हों. शी जिनपिंग, जिनके भाषण चीनी क्लासिक और लोक कथाओं के उद्धरणों से भरे होते हैं, इसे जानते हैं. रूस के व्लादिमीर पुतिन, तुर्की के रेसेप तैयप एर्दोगन और सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान भी जनते हैं. निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी भी यह जानते होंगे. उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल और साउथ ब्लॉक का पहला कार्यकाल इसके लिए पर्याप्त है.
जो भी हो, उनके दूसरे कार्यकाल के पहले पखवाड़े में कुछ अनहोनी हुई है. कल सुबह खबर आई कि प्रधानमंत्री ने दो महत्वपूर्ण कैबिनेट कमेटियां गठित की हैं- एक निवेश और आर्थिक वृद्धि के लिए और दूसरी रोजगार और कौशल विकास के लिए. इस फैसले का सभी ओर स्वागत किया गया. अंतत: इसका मतलब तो यही था कि मोदी सरकार ने कांग्रेस द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान जोरशोर से कही गई वह बात स्वीकार करने में तेजी दिखाई कि - अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है (पिछली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 2019 के पूर्वानुमान से एक प्रतिशत से अधिक नीचे गिरकर 5.8% पर आ गई है) और बेरोजगारी अब तक के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गई है (श्रम मंत्रालय ने आखिरकार स्वीकार किया कि बेरोजगारी पिछले 45 साल में सबसे उच्च स्तर पर है).
हालांकि, इस घोषणा के जरिए दिए गए राजनीतिक संकेत में कुछ असामान्य था. मोदी सरकार के नए गृह मंत्री अमित शाह दोनों कमेटियों में शामिल किए गए, भले ही उनके गृह मंत्रालय के पोर्टफोलियो का अर्थव्यवस्था से जुड़ी दो पैनलों से कोई सीधा संबंध नहीं है. दूसरी तरफ, गृह मंत्रालय से रक्षा मंत्रालय में भेजे गए राजनाथ सिंह का नाम इन दोनों समितियों में गायब था. राजनाथ सिंह के नाम का एक और महत्वपूर्ण समिति में छूटना कहीं अधिक चौंकाने वाला था- राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति, जो कि कैबिनेट की सुरक्षा समिति के बाद सरकार के समग्र कामकाज को लेकर सबसे महत्वपूर्ण है. रक्षा मंत्री के रूप में उन्हें स्वाभाविक रूप से सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति में जगह मिली, प्रचलित व्यवस्था के अनुसार गृह मंत्री भी इसमें हैं. लेकिन नए कैबिनेट पैनलों के स्वरूप से साफ पता चल रहा है कि शाह ने उनसे उनकी 'लाइमलाइट' चुरा ली है. अब शाह का अधिकार मोदी के 'न्यू इंडिया' के राजनीतिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों में दिखाई देगा. यह भी तय है कि बीजेपी अध्यक्ष पद से हटने के बाद भी पार्टी के मामलों में मोदी के बाद दूसरे नंबर पर उनका दबदबा कायम रहेगा.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम पहले सिर्फ दो कैबिनेट समितियों में था, बाद में अन्य कई समितियों में जोड़ा गया.
देश में अचानक राजनीतिक और मीडिया हलकों में अटकलों का दौर शुरू हो गया: क्या इसका यह मतलब है कि मीदी 2.0 में राजनाथ सिंह का डिमोशन हो गया? क्या इसका यह भी अर्थ है कि नई मोदी सरकार में अमित शाह का वास्तव में दो नंबर के रूप में 'अभिषेक' हो गया है, इस तथ्य को भी अनदेखा करते हुए कि 30 मई को राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री के बाद राजनाथ सिंह ने शपथ ली थी?
अटकलबाजी किसी भी संगठन में एक संक्षारक एजेंट होता है, जो कि सरकार के शीर्ष स्तर पर सबसे अधिक देखने को मिलता है. यह भीतर संदेह, बाहर भ्रम पैदा करता है. रास्ता चलते नए विचारों और कल्पनाओं के जुड़ने पर यह कानाफूसी को जन्म देती है और तेजी से बड़े स्तर पर वायरल हो जाती है. यही कारण है कि कोई भी सर्वोच्च नेता अनुमानों और अफवाहों के जन्म और उनके प्रसार की इजाजत नहीं देता है. मोदी के पहले कार्यकाल के सराहनीय पहलुओं में से एक यह था कि उसमें उनकी शक्ति संरचना के सामंजस्य के बारे में किसी भी तरह की अटकलों को कोई गुंजाइश नहीं दी गई. उनकी एकमात्र आवाज थी जो कि मायने रखती थी. इस बात की चर्चा कभी नहीं हुई कि उनकी सरकार में नंबर दो कौन है, क्योंकि कोई नंबर दो नहीं था.
क्या अब मोदी सरकार के कामकाज की शैली में बदलाव होने वाला है? यह बताना जल्दबाजी होगी. हालांकि, शुरुआती संकेत यही हैं कि कुछ चीजें - शायद, कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण चीजें - अगले पांच वर्षों में बदल सकती हैं. नई टीम मोदी में अमित शाह व्यापक रूप से वाइस कैप्टेन के रूप में नजर आएंगे, जिस तरह वे चुनाव अभियान के दौरान वास्तव में निर्विवाद रूप से मोदी के 'डिप्टी' थे. संघ परिवार के भीतर ही नहीं, बल्कि उनके आलोचकों (जो उनकी आक्रामक सांप्रदायिक राजनीति से घृणा करते हैं) ने भी भाजपा की चुनाव में जीत के लिए शाह के बहुत बड़े योगदान को विनम्रता के साथ स्वीकार किया है.
एनडीटीवी पर एक पैनल डिस्कशन में जनता दल (यूनाइटेड) के एक चतुर नेता पवन वर्मा ने सुझाव दिया कि मोदी को शाह को उप प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करना चाहिए. अटकलें पहले ही शुरू हो गई हैं कि शाह 2024 में मोदी के उत्तराधिकारी बन सकते हैं, कुछ ऐसा ही उनकी शारीरिक भाषा और उनके प्रति मीडिया के रवैये से भी संकेत मिलता है.
राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह में अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह.
असल सवाल यही है कि क्या मोदी और शाह चीन की उस कहावत को मानने से इनकार करते हुए कह सकते हैं कि "वन माउंटेन कैन टू टाइगर्स." हो सकता है कि मोदी खुद जानबूझकर शाह को अपने भरोसेमंद डिप्टी के रूप में तैयार कर रहे हों. यह भी संभव है कि मोदी अपने पुराने विश्वासपात्रों के लिए प्रशासन और राजनीतिक प्रबंधन के दुनियावी पहलुओं को छोड़ना चाहते हों और कुछ रणनीतिक लक्ष्यों पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहते हों.
तथ्यों और विश्वसनीय संकेतों के अभाव में यह अनुमान लगाने का कोई मतलब नहीं है कि मोदी 2.0 कैसे आगे बढ़ेगी. हालांकि, एक तथ्य हमारे सामने है. कुछ पुरानी समितियों के पुनर्गठन के अलावा दो नई कैबिनेट समितियों के गठन को लेकर मोदी सरकार को अस्वाभाविक रूप से झटका लगा है. द इंडियन एक्सप्रेस ने आज अपने बैनर हेडलाइन में इसे अच्छी तरह से व्यक्त किया है - "All in a day's work: Morning order omits Rajnath from key panels, he's in by night". देश को नहीं पता कि सुबह से रात के बीच वास्तव में क्या हुआ, लेकिन सरकार ने अपनी अधिसूचना बदल दी और चार कैबिनेट कमेटियों में रक्षा मंत्री को शामिल कर लिया. इस प्रकार, सुरक्षा और आर्थिक मामलों की समितियों के अलावा राजनाथ सिंह अब राजनीतिक मामलों, संसदीय मामलों, निवेश और विकास, और रोजगार और कौशल विकास की समितियों के सदस्य बन गए हैं.
अब, इससे उलट देखें. अमित शाह, जिनका केंद्र में मंत्रिस्तरीय अनुभव आज (7 जून) से केवल आठ दिन पुराना है, आठ कैबिनेट समितियों में मौजूद हैं. कौन इनकार कर सकता है कि वे राष्ट्रीय राजधानी के पहाड़ पर टाइगर नंबर 2 हैं, जिसे रायसीना हिल कहा जाता है?
लेखक भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सहायक रहे हैं...
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