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This Article is From May 20, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : जिनको दुख मांजता है

Priyadarshan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 20, 2015 23:10 pm IST
    • Published On मई 20, 2015 23:02 pm IST
    • Last Updated On मई 20, 2015 23:10 pm IST
वह दूसरों के घर बर्तन मांजती रही। सीढ़ियों को मेज-कुर्सी बनाकर पढ़ती रही। लेकिन उसकी गरीबी ने, उसके अभाव ने, उसे इस तरह मांजा कि वह 85 फ़ीसदी अंक ले आई। ये बेंगलुरु की शालिनी की कहानी है।

वारंगल के सुरेश की कहानी और मार्मिक है। खराब फ़सल और क़र्ज़ के दबाव में पिता ने बीते साल ख़ुदकुशी कर ली। बेटे-बेटी को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। एनडीटीवी ने ये कहानी दिखाई, सबने मदद की, और परिवार खड़ा हो गया। सुरेश ने दसवीं में 87 फीसदी अंक हासिल किए हैं।

इन कहानियों का सबक क्या है? एक तो जो अज्ञेय बता गए हैं- कि दुख मांजता है, गरीबी और अभाव इंसान को जितना तोड़ते हैं, उससे ज़्यादा कई बार ताक़त दे जाते हैं। दूसरी बात ये कि समाज साथ दे तो टूटे हुए लोग खड़े हो सकते हैं। वे हमारे साथ चल पड़ते हैं।

लेकिन एक तीसरी बात भी है- जो ये कहानियां नहीं बताती हैं। लोगों की ज़िंदगी में इतने अभाव, इतनी गरीबी क्यों है? इस सवाल का हम सामना नहीं करते। इससे आंख मिलाने से बचते हैं। ये हमारी खाती-पीती अघाई हुई दुनिया बस अपनी तसल्ली के लिए संघर्षों के बीच कामयाबी की कुछ कहानियां चुन लेती हैं- बताती हैं कि हालात कैसे भी हों, इंसान आगे बढ़ सकता है।

लेकिन ऐसे हालात बनाता कौन है जिसमें एक बच्ची सीढ़ियों पर पढ़ने को मजबूर होती है और दूसरी लड़की अपने पिता की ख़ुदकुशी के बाद कॉलेज छोड़ देती है? सुरेश और शालिनी जैसे लड़के-लड़कियां, संघर्ष के बीच कुंदन की तरह तपने वाले ये सितारे दरअसल अपनी ज़िंदगी ही नहीं संवारते- हमारी अंतरात्मा का बोझ भी कुछ कम करते हैं- हमें शायद इस बात के लिए भी इनका शुक्रगुजार होना चाहिए।

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