पूर्वी दिल्ली के बेहद पॉश इलाके मयूर विहार से गुज़रते समय रास्ते में चिल्ला नाम का एक गांव पड़ता है। पूर्वी दिल्ली के करीब 300 साल पुराने इस गांव की अलग से अपनी कोई खास पहचान नहीं है, लेकिन गांव 300 साल पुराना है। पड़ोस में थ्री स्टार होटल, ऊंचे अपार्टमेंट की चौतरफा घेराबंदी, जहां कोई फ्लैट करोड़ से नीचे का नहीं है और इन सबके बीच बसा है चिल्ला गांव।
गांव में घुसते समय बाहर ही आपको बोर्ड लगा मिलेगा, जिसमें इस गांव को गोद लेने के लिए पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी को धन्यवाद किया जा रहा है। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव को आदर्श बनाने के लिए गोद लिया गया है।
वैसे तो गांव के बाहर से ही बड़े और ऊंचे मकानों को देखकर गांव अंदाज़ा हो रहा था। लेकिन फिर भी जब सांसद ने गोद लिया है तो मैं यह मानकर चल रहा था कि गांव पिछड़ा होगा। करीब 5,000 की आबादी वाले इस गांव में थोड़ा घूमने पर दो बातें मैने महसूस किया कि गांव ज़्यादातर संपन्न लोगों का है और ये यहां बने बड़े-बड़े घरों को देखकर पता चल रहा था। यहां की सारी गलियां पक्की हैं और सीमेंट की हैं।
पीढ़ियों से गांव में रह रहे बुज़ुर्ग तोताराम से मैने पूछा कि गांव में प्रधान कौन है, तो जवाब मिला कि गांव में कोई प्रधान नहीं हैं, क्योंकि दिल्ली में गांव शहरीकृत हैं और सालों पहले ग्राम पंचायत का सिस्टम खत्म कर दिया गया है।
तभी मेरे मन में सवाल आया कि अगर गांव में पंचायत नहीं हैं तो ये योजना लागू कैसे होगी, क्योंकि सांसद आदर्श ग्राम योजना के दिशा-निर्देश मैंने पढ़े थे और उसमें ये साफ-साफ लिखा था कि ग्राम पंचायत बुनियादी इकाई होगी, यानि सांसदों को असल में गांव नहीं ग्राम पंचायत का चयन करना था।
इसके साथ ही दिशा-निर्देश में ये साफ लिखा हैं कि जिस शहरी निर्वाचन क्षेत्र में कोई ग्राम पंचायत नहीं है, सांसद वहां अपने आसपास के किसी दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में ग्राम पंचायत का निर्धारण करेंगे।
अब दिल्ली में 360 गांव हैं, जिनमें ना तो ग्राम पंचायत और दिल्ली में होने के कारण उनकी स्थिति बेहतर हैं, यानि कि अगर दिल्ली में असल कोई पिछड़ा गांव नहीं मिल रहा तो सांसद यूपी के भी किसी गांव को गोद ले सकते हैं। लेकिन सांसदों ने ऐसा किया नहीं और दिल्ली में ही गोंव गोद ले लिए।
पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी ने बताया कि जब उनके इलाके में ही विकास करने के लिए गांव हैं तो दूसरे के इलाके के गांव में क्यों जाए। उन्होंने बताया कि उन्होंने तत्कालीन ग्रामीण विकासमंत्री नितिन गड़करी से बात कर ली है और उन्होंने इसकी मंजूरी दे दी है।
महेश गिरी के मुताबिक गांव में बहुत समस्या है तो जो हमने वहां देखा और लोगों ने बताया वह आपको बता देता हूं। गांव में साफ-सफाई की थोड़ी समस्या है जो पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद बनी हुई है। पीने के पानी की समस्या सबसे ज़्यादा है। साथ ही डिस्पेंसरी, और बच्चों के खेलने के लिए पार्क और नगर निगम के पांचवी तक के स्कूल को दसवीं तक करने की ज़रूरत भी लोगों ने बताई। लेकिन इस सबके बावजूद गांव ऐसे पिछड़ा नहीं लगा कि इसको सगोद लेकर इसका विकास करना पड़े।
कुछ ऐसे काम भी मिले जिसके बारे में दिशा-निर्देश में कहा गया लेकिन उसके होने पर सवाल है जैसे कि ग्रीन वाकवेज़ बनाने के लिए कहा गया है। लेकिन इसके लिए ज़मीन दिखती नहीं, क्योंकि ज़मीन पर या तो मकान बन चुके हैं या सड़क। पशुपालन और बागवानी को बढ़ावा देने की बात कही गई है, जबकि दिल्ली में चरागाह और खेती योग्य भूमि अब नाम मात्र की रह गई हैं। मनरेगा के तहत रोज़गार देने की बात कही गई जो दिल्ली में लागू नहीं होता।
कुछ और काम करने की बात भी कही गई जैसे कि नशा, धुम्रपान और गाली-गलौज की आदत को कम करना, रोज़ाना दांत साफ करना, नहाना या महिला सभा और बाल सभा सभा का आयोजन करना जिसकी ज़रूरत गांव वालों ने महसूस की।
फिर भी लगभग 24 घंटे बिजली पाने वाले, मेट्रो स्टेशन से 500 मीटर की दूरी वाले और पचास हज़ार से डेढ़ लाख रुपये गज वाले गांव को देखकर ऐसा नहीं नहीं लगता कि ऐसे गांव को आदर्श बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की। क्योंकि आदर्श तो वह होता है, जो फर्श से अर्श तक पहुंचता है।