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This Article is From Feb 26, 2020

धर्म साबित करने के लिए 'रुद्राक्ष' दिखाया, जान बचाने के लिए गिड़गिड़ाया - अब ऐसी हो गई है दिल्ली

Saurabh Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 26, 2020 12:26 pm IST
    • Published On फ़रवरी 26, 2020 11:49 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 26, 2020 12:26 pm IST

ख़बरों की कवरेज के लिहाज़ से बिल्कुल आम दिन की तरह शुरू हुआ था मंगलवार, लेकिन खत्म होते-होते मेरी ज़िन्दगी का सबसे डरावना दिन बन गया...

मैं रविवार से ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जारी हिंसा को कवर कर रहा था. मंगलवार सुबह 7 बजे मैं लाइव रिपोर्टिंग के लिए संसद भवन से लगभग 15 किलोमीटर दूर मौजपुर पहुंचा.

जो हमने देखा, वह भयावह था. गुस्साई भीड़ लोगों को लूट रही थी, पत्थर फेंक रही थी और दुकानों को तोड़फोड़ रही थी. माहौल बेहद तनावपूर्ण था, गोलियां चलने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं. दिल्ली अलग ही दिख रही थी, अलग ही महसूस हो रही थी.

मौजपुर में हालात को कवर करने के बाद दोपहर लगभग 12 बजे मेरे सहयोगी अरविंद गुणशेखर और मैं करावल नगर और गोकुलपुरी की तरफ बढ़े, जो काफी संवेदनशील इलाके हैं. हमने तय किया कि NDTV का माइक इस्तेमाल नहीं करेंगे, क्योंकि दंगाई मीडिया को लेकर बहुत ज़्यादा गुस्से में थे. हमने अपने आसपास हो रही हिंसा को कवर करने के लिए अपने मोबाइल फोनों का सहारा लिया.

जल्द ही, हिंसा बड़ी सड़कों से संकरी गलियों में पहुंच गई. हमने घरों को जलते हुए देखा, धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ की जाती देखी, और भीड़ का गुस्सा हर पल बढ़ता नज़र आ रहा था. 'शिकार करने' के लिए घूमती इस भीड़ में शामिल युवक नशे में थे. पुलिस कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी.

अब तक 1 बज चुका था. हमने सुना कि सीलमपुर के निकट एक धार्मिक स्थल को निशाना बनाया जा रहा है. जब हम वहां पहुंचे, हमने लगभग 200 लोगों की भीड़ को तोड़फोड़ करते देखा. हमने फ्लाईओवर के ऊपर रहकर रिकॉर्डिंग शुरू कर दी. CNN न्यूज़ 18 की रुनझुन शर्मा भी हमारे साथ थीं. आसपास बहुत कम पुलिसकर्मी थे - वे कुछ नहीं कर रहे थे.

मैं अरविंद से लगभग 50 मीटर दूर था, जब उन्हें एक दंगाई ने दबोच लिया. इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, लगभग 50-60 दंगाइयों की भीड़ ने अरविंद को पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि वह अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई सारी फुटेज डिलीट कर दें. अरविंद ज़मीन पर गिरे हुए थे, उनके मुंह से खून बह रहा था. उनके तीन दांत टूट गए थे. मैं उनकी मदद के लिए भागकर पहुंचा और मेरी पीठ पर भी लाठियां पड़ीं, जो अरविंद के सिर को निशाना बनाकर चलाई गई थीं. मैं अरविंद को बचाने के लिए उनसे लिपट गया, तो भीड़ ने मुझे पेट और पीठ में घूंसे मारे, और मेरे कंधों पर भी लाठियां बरसाते रहे.

मैं किसी तरह उठा और भीड़ को एक विदेशी संवाददाता का प्रेस क्लब का कार्ड दिखाया. मैंने उन्हें बताया कि हम किसी भारतीय टेलीविज़न चैनल के लिए नहीं, एक विदेशी एजेंसी के लिए काम कर रहे हैं.

उन लोगों ने मेरा सरनेम पढ़ लिया - शुक्ला. उन्हीं में से एक ने अपने साथियों को बताचा कि मैं एक ब्राह्मण हूं. मैंने भी अपने गले में पहना 'रुद्राक्ष' उन्हें दिखाया, ताकि अपना धर्म साबित कर सकूं. मेरे लिए यही सबसे ज़्यादा पीड़ादायक था - अपनी जान बचाने के लिए अपना धर्म साबित करना. दंगाइयों ने मुझसे कहा कि जब मैं उन्हीं के समुदाय का हूं, तो मैं वीडियो क्यों शूट कर रहा था (जो उनकी सुनाई और बताई कहानी के खिलाफ जा सकता है). उन्होंने मुझे फटकारा, और फिर पीटा. हमने हाथ जोड़कर उनसे हमें जाने देने की गुहार की. मैंने उन्हें बताया कि अरविंद तमिलनाडु से है, और हिन्दी नहीं जानता. रुनझुन भी हमारे साथ थीं, और वह भी हम सभी को जाने देने के लिए गिड़गिड़ाती रहीं.

उन्होंने हमारे मोबाइल फोन ले लिए, और फोटो तथा वीडियो डिलीट करने लगे. उन्हें मालूम था कि iPhone कैसे इस्तेमाल करते हैं. वे किसी भी 'गड़बड़' फुटेज की तलाश में फोन में मौजूद सभी फोल्डरों में गए. उसके बाद उन्होंने हमें धार्मिक नारे लगाने के लिए मजबूर किया, और धमकाया कि अगर हम उन्हें दोबारा दिखाई दिए, तो वे हमें जान से मार डालेंगे.

उसके बाद हम फर्स्ट-एड हासिल करने के लिए अस्पताल गए, और ऑफिस लौट आए. जब हम लौट रहे थे, मैं सोच रहा था कि दिल्ली किस तरह देशभर के लिए शर्मिन्दगी का बायस बन गई है. यह शहर अब वैसा बिल्कुल नहीं रहा है, जैसा यह 2011 में मेरे दिल्ली आने के वक्त था.

दिल्ली के नाम में 'दिल' है... वह कहां है...?

सौरभ शुक्ला NDTV इंडिया में वरिष्ठ संवाददाता हैं...

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