'निल बटे सन्नाटा' की टीम का भी था गणित में डब्बा गोल

'निल बटे सन्नाटा' की टीम का भी था गणित में डब्बा गोल

धरीक्षण प्रसाद उच्चांगल विद्यालय - बिहार के गोपालगंज ज़िले के इस स्कूल का नाम कितनों ने सुना होगा। धरीक्षण प्रसाद इलाके के व्यापारी थे और नेपाल में उनकी कई दुकानें थी। उन्होंने अपने गांव में स्कूल खोला जो बाद में सरकारी हो गया। उच्चांगल का मतलब उच्च और आंग्ल यानी अंग्रेज़ी मीडियम हाई स्कूल जिसका नाम हिन्दी मीडियम में हुआ उच्चांगल। यहीं के गणित मास्टर लक्ष्मण जी के छात्र को कई साल बाद मुंबई की एक फिल्म 'निल बटे सन्नाटा' में मास्टर बनने का मौका मिलता है। पंकज त्रिपाठी ने प्रिंसिपल और गणित मास्टर की भूमिका लाजवाब तरीके से निभाई है। पंकज ने बताया कि 'निर्देशक ने मुझ पर छोड़ दिया कि जैसा करना है करो, बस मैं अपने अनुभवों को अपने किरदार में उतारने लगा।' पंकज त्रिपाठी भी गणित में कमज़ोर थे।

फिल्म के एक सीन में पंकज पिंटू का बाल पकड़ कर बोलते हैं - मैं तेरी दुश्मन दुश्मन तू मेरा। यह उनके अनुभव का सीन था। लक्ष्मण माट साहब गणित की कक्षा में बदमाशी या फेल करने वालों के बाल पकड़ कर यही गाते थे। मैं तेरी दुश्मन दुश्मन तू मेरा, मैं नागिन तू सपेरा, चल बता इसका फॉर्मूला। उस वक्त नागिन फिल्म आई थी और काफी हिट हुई थी। लड़के मास्टर साहब को माट साहब कहते थे। मारने के कारण लक्ष्मण माट साहब को मार साहब भी कह देते थे। 'निल बटे सन्नाटा' में पंकज ने शानदार अभिनय किया है। पूरी तरह से सरकारी स्कूल के मास्टर को पर्दे पर उतार दिया है। गणित में पास होने वाले छात्रों को घोड़े और फेल होने वाले को खच्चर में बांट कर श्रीवास्तव जी के किरदार पर्दे पर देखकर राग दरबारी का सीन याद आ जाता है।

ओह, आपने निल बटे सन्नाटा नहीं देखी? हम्म..मैथ्स में आप टॉपर रहे होंगे पर सच सच बताइये, टॉप करने से पहले रातों को जाग जागकर अभ्यास नहीं करते होंगे, रटते नहीं होंगे, कोचिंग सेंटर नहीं जाते होंगे। बहुत कम होंगे जो ऐसा नहीं करते होंगे। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते हुए हुए मैं गणित में फेल होने वाले दर्शकों के दर्द को समझ रहा था और इस फिल्म के कलाकारों, निर्देशकों और गीतकारों के बारे में सोच रहा था कि इनमें से किसका गणित अच्छा था, किसका ख़राब था।

निल बटे सन्नाटा की निर्देशक अश्विनी अय्यर ने काफी रट्टा मार कर गणित का बेड़ा पार किया है। उनके पिता प्रोफेसर और मां स्कूल में भुगोल की टीचर प्रिंसिपल रही हैं। उनके पति नीतेश तिवारी के पिता शिक्षा अधिकारी रहे हैं और उनके साथ साथ नीतेश को मध्य प्रदेश के स्कूलों और शिक्षा व्यवस्था के अनुभवों को बटोरने का मौका मिला है। नीतेश इटारसी के हैं और आई आई टी बॉम्बे के छात्र रहे हैं। ज़ाहिर है वह गणित में तेज़ रहे होंगे। इस फिल्म की टीम का सरकारी स्कूली व्यवस्था से किसी न किसी तरह का नाता रहा है। इसकी कहानी लिखने वालों में से प्रांजल चौधरी इंदौर के रहने वाले हैं और इंजीनियर हैं। नीरज सिंह बिहार के सुपौल के हैं और एम बी ए के छात्र रहे हैं। ये दोनों विज्ञापन जगत में आ गए और अश्विनी के साथ मिलकर एक साल में फिल्म का स्क्रीन प्ले लिखा। वह भी नौकरी करते हुए, शनिवार रविवार की छुट्टियों में।

तभी यह फिल्म गणित के भय और भय के बीच की मस्ती को पकड़ पाती है। इसके किरदार अपेक्षा, स्वीटी और पिंटू गणित के मारे तो हैं लेकिन मर नहीं गए हैं। वे ज़िंदादिल छात्र हैं। मस्ती करते हैं और उनकी मां चंदा सहाय यानी स्वरा भास्कर की मां इर भास्कर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। पिता सी उदय भास्कर मशहूर रक्षा विशेषज्ञ हैं। उदय भास्कर का संबंध हैदराबाद से रहा है। स्वरा ने बताया कि उसका भी मैथ्स में डब्बा गोल था। स्वरा ने भी चंदा सहाय की भूमिका में जान डाल दी है। गीतकार मनोज यादव उत्तर प्रदेश के मऊ के रहने वाले हैं।

फिल्म के टीम की डिटेल बताती है कि कोई गणित में गोल था तो कोई गणित में तीरंदाज़। गणित के भय से सामना करने की जड़ी बूटी की शक्ल में यह फिल्म बन गई है। अश्विनी अय्यर ने बताया कि उनके भीतर भी गणित का डर रहता है इसलिए जब वे बास्केट बॉल के कोर्ट में एक सीन शूट कर रही थीं तो पता ही नहीं चल रहा था कि सीन गणित के हिसाब से सही है या ग़लत। यह वही सीन है जब अप्पू यानी अपेक्षा पूछती है कि मैथ्स इतना डिफिक्लट क्यों है तब अमर एक गोलाई बनाता है और समझाने लगता है। खेल खेल में गणित को आसान बना देता है।

मैं इस फिल्म पर दूसरा लेख लिख रहा हूं। मुझे लगता है कि यह फिल्म मुझ पर बनी है या मेरे जैसों की बात करती है। मेरे जैसै मतलब जो गणित में कमज़ोर हैं, जिन्हें गणित से डर लगता रहा है। बुलंदशहर के एक समाजसेवी त्यागी जी कहते हैं कि गणित का कुछ करो आप। यह गणित का डर समाज में बच्चों को अपराधी बना रहा है। इतना ही नहीं फिल्म में एक प्रार्थना है - इतनी शक्ति हमें दो - यही प्रार्थना तो हम स्कूल में गाते थे। देख लीजिए, पता चला कि सबको लगने लगा कि इस फ़िल्म ने उनके जीवन की कहानी चुरा ली। उनके डर के बारे में सबको बता दिया।

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गणित पर जितनी बात हो, कम है। अच्छी बात है कि यह फिल्म फिल्म की तरह है। तो कई डरपोकों ने मिलकर एक फिल्म बनाई है, निल बटे सन्नाटा ताकि गणित के डर को जीता जा सके। जो फेल होते रहे हैं वह एक और बार ख़ुद को फेल होने के लिए देख सकते हैं, क्या पता इस बार पास होने का भरोसा लिये चले आए। चलो मैथ्स का ही डब्बा गोल करते हैं। कब तक मैथ्स हमारा डब्बा गोल करेगा।