"अरे आप इतने बड़े रिपोर्टर हैं, आपको बिज़नेस क्लास में चलना चाहिये था " धरती से बहुत दूर रात अंधेरे अनंत आकाश में वो इसी बात से परेशान थी । मुझे देखते ही उसके चेहरे पर जो खुशी पसरी थी वो मेरे इकोनोमी क्लास में जाते ही उतर गई । " मेरी पूरी फ़ैमिली आपकी फैन है । मुझे लगा था कि कभी तो आप मिलोगे ।" " सर, आप क्या रिपोर्टिग करते हैं, कुछ भी चाहिए होगा तो बोलियेगा । "
वो तय नहीं कर पा रही थी कि वो उस बिज़नेस क्लास का क्या करे जिसमें उसका तथाकथित हीरो नहीं चल रहा है । एमिरेट्स एयरलाइन की वो आकाश बाला एयर होस्टेस के दिमाग़ में कहीं अटक गया । बीच रात जब दबे पाँव प्यास लगने पर जूस माँगने गया तो वही मिल गई । जूस के साथ चाकलेट भी दे दिया । चलते चलते फिर कह गई " सर आप इतने बड़े रिपोर्टर हैं आपको बिज़नेस क्लास में चलना चाहिए ।" उस ख़ूबसूरत बाला की आँखों में मुझे देखते ही दो कुर्सियाँ तैरने लगती थी । एक जो इकोनोमी में लगी थी और एक जो बिज़नेस क्लास में । बिज़नेस क्लास की कुर्सी जो उसके टीवी के राजकुमार को हासिल नहीं थी ! आह ! नाइंसाफी की भी हद होती है !
सुना था सितारों की दुनिया धरती से अलग होती है । देख रहा था कि हम वहाँ भी क्लास को लिये उड़ रहे थे । जैसे ही इकोनोमी क्लास में घुसा, पहचानने वालों की निगाहें ऐसे हतप्रभ हो गईं जैसे मैं किसी हवेली से उठाकर झोंपड़ी में फेंक दिया गया हो । जिसने पहचाना सबने मेरा क्लास देखा । जो भी करीब आया पूछ गया कि आप इकोनोमी में चलते हैं । शायद एक दो का हौसला बढ़ गया कि वो भी किसी से कम क्लास में नहीं चलते । पर निगाहें मुझे मारने लगीं । घूरने लगीं । लगा कि उनकी आँखों से लाल लेज़र किरणें निकल रही हैं जो मेरी कमाई और हैसियत को स्कैन कर रही हैं । लगा कि किसी अमीर की महफ़िल में अपने फटे जूते को सबसे बचाकर सोफ़े के नीचे छिपा रहा हूँ ।
एमिरेट्स के जहाज़ बहुत खूबसूरत होते हैं और उसके लोग बेहद अच्छे । जहाज़ का एक राजकुमार जो लीडर जैसा था देखते ही उछल गया । जैसे ही अहसास हुआ कि वो मुझे इकोनोमी क्लास में देख रहा है अपने आप में सिमट गया । अरे सर आप यहाँ ! रूकिये कुछ करता हूँ । मेरी ख़ातिरदारी की ख़ातिर बेचैन हो गया । मैं कह देता कि बिज़नेस क्लास देख लेना तो वहाँ कुर्सियाँ खाली तो थी ही, वो मुझे बिठा ही देता । पर मेरे चुप रह जाने से और मचल गया । सर ट्राई करता हूँ । नहीं मैं यहाँ ठीक हूँ । किनारे की सीट है और लंबी टाँग को शरीर से अलग कर चलने के रास्ते पर रख चुका था । पर वो कई बार आया । " कुछ प्राब्लम तो नहीं है न " । चुपके से एक तोहफ़ा भी दे गया । " सर अगली बार से आप बता देना हम अपग्रेड करवा देंगे " सर हम आपको बहुत चाहते हैं ।
तो रवीश बाबू को अपग्रेड होना बाकी है ! जो लोग बिज़नेस क्लास और इकोनोमी क्लास का फ़र्क नहीं जानते उन्हें बता दूँ कि हवाई जहाज़ में दो तरह की कुर्सियाँ होती हैं । इकोनोमी क्लास की कुर्सी बेंच की मानिंद होती है । बहुत संकुचित और तकलीफ़देह । बिज़नेस क्लास में आप ज़मींदारों के घर के बरामदे में रखी आराम कुर्सी की तरह टाँग पसार कर जा सकते हैं । इकोनोमी क्लास में मैंने लोगो के टेढ़े हो जाने की क्षमता से ग़ज़ब का प्रभावित हुआ हूँ । लोग कम जगह में कैसे लंबे हो सकते हैं इसका किसी को अध्ययन करना चाहिए ।
बहुत साल पहले लंदन गया था । ब्रिटिश हाईकमीशन की तरफ से । हमें ब्रिटिश एयरवेज़ के बिज़नेस क्लास में बिठाया गया । हम तो वैसे ही बैठ गए जैसे इकोनोमी में बैठा जाता है । सीट को लमराना ( भोजपुरी शब्द) यानी खोल कर लंबा करना आया ही नहीं । जब साथ चल रहीं निधि राज़दान ने देखा कि ये क्यों अकड़ कर बैठा है । पास आकर धीरे से पूछा तुम आराम से क्यों नहीं लेट जाते । लेट जाएँ ? मेरी बात पर हंसते हुए निधि कुछ बटन दबा दिये और कुर्सी खुल गई । अपन तो लाज के मारे मर गए । निधि ने कोई जजमेंट पास नहीं किया । शुक्रिया जी ।
तो ख़ैर । अब न्यूयार्क से दिल्ली लौटने की बारी थी । केनेडी एयरपोर्ट पर लोग इस तरह बात करने लगे जैसे जहाज़ में जाते ही बंदा मिलेगा नहीं । उन्हें यक़ीन था कि बिज़नेस क्लास में जाकर उनसे अलग हो जाएगा । जैसे ही भीतर उनके साथ इकोनोमी क्लास में पहुँचा वही लोग जो बात कर रहे थे झटका खा गए । आप बिज़नेस क्लास में नहीं चल रहे ? अरे आपके साथ चल रहे हैं ये क्या कम है । एक जनाब तो बकायदा एयर इंडिया के सहयोगियों से बात करने लगे कि किसी तरह से मुझे बिज़नेस क्लास मिल जाए । मेरे लिए कुछ न कर पाने का अफ़सोस उनके चेहरे पर तैरने लगा । जहाज़ के सारे सहयोगी मुझे देखकर उत्साहित थे। इकोनोमी क्लास में मुझे देखकर उन्हें भी निराशा हुई होगी।
जहाज़ में एक भी सीट खाली नहीं थी। इस बार अगर वे बिज़नेस क्लास में बिठा देते तो मैं मना नहीं करता। कमर की तकलीफ़ बर्दाश्त नहीं हो रही थी। यही सोच कर यात्रा कर गया कि पहली बार और आख़िरी बार अमरीका जा रहा हूँ क्या फ़र्क पड़ता है। खड़े खड़े चले जाते हैं। रास्ते भर इकोनोमी क्लास की तकलीफ़ भी झेलो और लोगों की निगाहों से घायल भी होते रहो कि ये तो फटीचर निकला। इकोनोमी में चलता है। क्लास की ऐसी भयावह क्रूरता बहुत दिनों बाद झेली है।
एयर इंडिया के एक स्टाफ़ ने कहा कि सर मेरी पूरी फ़ैमिली आपकी फैन है। एक सेल्फी चाहिए। " बिज़नेस क्लास में चलें। "यहाँ बहुत लोग देखेंगे। हमने कहा कि अरे हम जहाँ बैठ गए हैं वहीं क्लास है। जहाँ हम नहीं है वहाँ कोई क्लास नहीं है। शत्रुध्न सिन्हा टाइप संवाद से वो भी शर्मा गए। ख़ैर सेल्फी हो गई। एयर इंडिया के सारे स्टाफ़ अच्छे थे। पायलट ने खूब आदर से हाथ मिलाया और सम्मान दिया।
एयर इंडिया के स्टाफ़ कम सुविधा में भी किसी से कम नहीं हैं। लगा कि हवा में भारत चल रहा है। अमरीका से सामान समेट कर अहमदाबाद जा रहे एक गुजराती भाई की पत्नी ने मेंथी का पराठा भिजवा दिया। दिल से शुक्रिया। अपनी तकलीफ़ से ज़्यादा उनकी गर्भवती पत्नी का ही ख़्याल रहा। एक बिहारी भाई मिले जो मुसलमानों के बारे में पूर्वाग्रह पाल पाल कर पागल हो चुके थे। उनके तर्कों की यही उपलब्धि थी कि चूँकि वो अमरीका में रहते हैं इसलिए उनकी हर बात सही मान ली जाए। मैंने बोल ही दिया कि भाई जी मैं अमरीका को ही भाव नहीं देता, तो आपको अमरीका का नाम लेकर कपार पर कैसे बैठ जाने दूँ।
बातचीत होती रही। हम जाने कितने मुल्कों के ऊपर से उड़ते हुए वही बने रहे जो हैं। गंदगी भी फैलाते रहे। सीट भी तोड़ते रहे। ये समझ कर एयर इंडिया अपने बाप का है। एमिरेट्स में सबको ऐसे बैठे देखा जैसे वे ग्लासगो से ट्रेनिंग लेकर आए हों कि जहाज़ में कैसे बैठा जाता है।
एक बात सोचता रहा। लोगों को मुझे इकोनोमी में देखकर क्यों हैरानी हुई ? कायदे से उन्हें ये पूछना चाहिए था कि पत्रकार भी बिज़नेस क्लास में चलता है? अपना अलग से बिज़नेस करता है या वाक़ई उसकी कमाई इतनी ही है।अव्वल तो लोगों को बिज़नेस क्लास में पत्रकार को देखकर कुछ खटकना चाहिए था उल्टा इकोनोमी क्लास में देखकर मेरी सीट के नीचे अपनी शंकाओं के खटमल बिछा दिए। कुछ पत्रकार बिल्कुल अपनी कमाई से बिज़नेस क्लास में चल सकते हैं लेकिन अगर आप सबसे ये उम्मीद करते हैं तो आप अपना मेंटल क्लास चेक कर लीजिये। घरेलू उड़ानों में क्लास का यह हमला रोज़ झेलता हूँ। लोग कंपनी का मुनाफ़ा और मेरा दरमाहा ( वेतन) पूछने लगते हैं। भाई एक तीसरा क्लास है जिसका नाम रवीश कुमार है। ख़ुश रहिए न कि सफ़र में हम साथ हैं। मेरे कंधे पर सर रखकर सो जाइये या अपने कंधे पर मुझे अपना सर रखने दीजिये!
This Article is From Feb 19, 2016
रवीश जी आप बिज़नेस क्लास में नहीं चलते!
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 19, 2016 09:41 am IST
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Published On फ़रवरी 19, 2016 09:15 am IST
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Last Updated On फ़रवरी 19, 2016 09:41 am IST
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