आदित्य की 'हत्या के आरोपी' रॉकी यादव के नाम रवीश कुमार का खुला खत

आदित्य की 'हत्या के आरोपी' रॉकी यादव के नाम रवीश कुमार का खुला खत

प्यारे रॉकी यादव,

अभी अदालत से साबित होना बाक़ी है, इसलिए हत्यारे रॉकी यादव नहीं लिख रहा। अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करूंगा और तब तक कथित लिखूंगा, सो, तुमको तब तक प्यारे लिखूंगा, ताकि तुम जैसे नौजवानों को अहसास हो कि आदित्य भी किसी का प्यारा था।

यह जो तुम टीवी पर बोल रहे हो कि तुम दिल्ली में थे, तुमने गोली नहीं चलाई। इस तरह के बयान तुम्हारे जैसे कथित आरोपी देते रहे हैं। फ़िल्मों में ऐसे संवाद तो आम हैं और इस आधार पर हत्यारे को निर्दोष साबित करने का दावा करने वाले फ़र्ज़ी घाघ वकील भी आम हैं। पुलिस की जांच तुम्हारे बयान से अलग है। पुलिस का कहना है कि तुमने जुर्म कबूल किया है और जिस हथियार से हत्या हुई है, उसे बरामद किया गया है, इसलिए अदालत का फ़ैसला आने तक तुम आरोपी हो, हत्यारे नहीं।

तुम्हारी मां ठीक ही कह रही होंगी कि तुम उस तरह के लड़के नहीं हो। आजकल फ़िल्मों की तरह राजनीति में मांओं की नौटंकी हम लोग रोज़ देख रहे हैं। राजनीति की मांओं को समझना चाहिए कि उनके आंसू जावेद अख़्तर साहब वाली मांओं के आंसू जैसे नहीं हैं, न हो सकते हैं। आजकल कई मंत्री और विधायक हर बात को 'मैं भी एक मां हूं' की नौटंकी से ढंकने लगी हैं। यह सबसे बड़ा झूठ है कि एक मां दूसरी मां को जानती है। सत्य यह है कि रॉकी की मां और आदित्य की मां के दर्द में बहुत फ़र्क है। रोहित वेमुला की मां और किसी मंत्री के मां होने में बहुत अंतर है। तुम्हारी मां जेल से लौट आने की आस लगा सकती है। आदित्य की मां आस नहीं लगा सकती है, इसलिए अपनी मां से कहो कि 'मां मां' बंद करे।

तुम्हारी मां अगर मांओं का दर्द समझतीं तो तुम्हें लाखों रुपये का रिवॉल्वर लेने नहीं देती। मांओं का सपना बेटों को रिवॉल्वर देना नहीं होता है। बंदूक तो बंदूक, तुम्हारा नाम भी मोहल्ले के छलिया जैसा है। ख़ैर, इसका घटना से कोई ताल्लुक़ नहीं है। पुलिस कहती है कि तुम्हारे नाम पर एक करोड़ की कार है। 20 की उम्र में तुम एक करोड़ की कार चलाते हो! ज़ाहिर है तुम्हारी मां न तो तुम्हें एक अच्छा लड़का बना रही थी, न दूसरी माताओं के बारे में सोच रही थी। तुम्हारे संगी-साथी के बारे में जानकारी से भी पता चलेगा कि तुम किनकी सोहबत में उठते-बैठते रहे हो। तुम्हें रिवॉल्वर का लाइसेंस दिलवाने में किसने मदद की। सुना है कि कई दलों के राजनेताओं के पुत्र तुम्हारे मित्र हैं। पैसा है, तो कौन मित्र नहीं होगा तुम्हारा।
 


ज़ाहिर है, तुम्हारी मां ने तुम्हें अच्छा बेटा बनने के लिए एक करोड़ की कार और लाखों की रिवॉल्वर नहीं दी होगी। तुम अच्छे होते तो रिवॉल्वर लेकर ऐसी तस्वीर नहीं खिंचाते। कोशिश तो तुम्हारी ओलिम्पियन जैसे दिखने की है, मगर लग नहीं रहे हो। रॉकी, तुम जिस राज्य के छुटभैया हीरो हो, मैं वहीं से मैट्रिक पास हूं। तुम्हारे जैसे अनेक रॉकी के पापा विधायक हैं, ठेकेदार हैं, पुलिस में हैं। हर दल के ख़ानदानों में तुम जैसे हैं। ऐसे हीरो को हम 'टिनहइया' हीरो कहते हैं - मतलब सड़कछाप।

हमारी राजनीति में ये जो बड़ी गाड़ियां आई हैं, उनसे बहुतों का दिमाग़ ख़राब हुआ है। सड़क पर इन गाड़ियों को बचाने में हर जगह लोग ब्रेक लगाकर लोगों को गरियाते मिल जाते हैं। दिल्ली में तो रोज़ देखता हूं। लोग कार से उतरकर मारपीट करते रहते हैं। शीशा नीचे कर धमकाते रहते हैं। क्या पता तुम भी वैसे ही हो। मैं क़ानूनी फ़ैसला नहीं कर रहा। तुम्हारी हरकतों का सामाजिक विश्लेषण कर रहा हूं।

मैं बिल्कुल समझता हूं कि रोड रेज एक गंभीर मनोरोग है। कई घटनाएं दर्ज हैं, जिनमें हत्या भी हुई है। तुम्हें दिल्ली में डाक्टर नारंग की हत्या का मामला याद ही होगा। कई लोगों की तरह तुम्हें भी ग़ुस्सा आया होगा। तुम बर्दाश्त नहीं कर सके होगे कि पांच लाख की स्विफ्ट कार एक करोड़ की रेंज रोवर कार को कैसे ओवरटेक कर सकती है। बेटा रॉकी, कार चलाना एक हुनर भी है। मोपेड वाला भी मात दे सकता है। इतना समझते तो ओवरटेक के सदमे को बर्दाश्त कर लेते और आदित्य को जाने देते। मगर तुम्हें 'रेज' आया, यानी ग़ुस्सा आया।

तुम्हें रोड रेज जैसे मनोरोग की छूट नहीं मिलनी चाहिए। तुम एक राजनीतिक ख़ानदान से आते हो। पिता आरजेडी के नेता हैं और माता जेडीयू की विधायक। सुना है, पिता बाहुबली कहलाने की योग्यता भी रखते हैं, इसलिए तुम्हें लगता होगा कि घर में ही लालू यादव और नीतीश कुमार हैं। तुम्हीं नहीं, बिहार में तमाम दलों के कई विधायक पुत्रों का यही हाल हो सकता है। कुछ पुत्र लोग सज्जन भी होते हैं, मगर ज़्यादातर रॉकी और विकी की मानसिकता से आगे निकल नहीं पाते। मेरा ही एक क्लासमेट है, जिसके पिता कई साल मंत्री रहे। शायद अब भी होंगे, मगर वह कभी बताता ही नहीं था कि पिता मंत्री हैं। साइकिल से कॉलेज आ जाता था। तो रॉकी, तुम्हारे भीतर सत्ता का ग़ुरूर भी आया होगा। उसी के नशे में तुमने कार रोकी और झगड़ा किया। तुम्हारा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर गया होगा और तुमने कथित रूप से गोली मार दी, इसलिए तुम्हारा मामला अलग है।

बिहार के मुख्यमंत्री से अपील करता हूं कि दो महीने के अंदर इस मामले को अंजाम पर पहुंचाकर दिखाएं। तुम्हारी एक करोड़ की कार कबाड़ में बेचकर उसके पैसे से किसी गांव में कुआं खुदवा दें। जिस राजनीति के कारण तुम्हारा हौसला बढ़ गया था, आज वही राजनीति यह देखेगी कि तुम्हारे मामले में जल्दी फ़ैसला आए। ऐसा होने से बिहार में नेताओं के बहुत से रॉकी बच जाएंगे, वे रास्ते पर आ जाएंगे। आदित्य की हत्या का तुम्हारे जेल जाने से ज़्यादा बड़ा इंसाफ़ यह होगा। तुम्हारी माता की सदस्यता रद्द कर किसी ढंग के युवा को एमएलसी बनाएं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या बिहार विधानसभा के स्पीकर को सभी दलों के विधायकों और उनके निकटतम परिवारों के लिए दो-दिवसीय सम्मेलन बुलाना चाहिए, जहां सदस्य से लेकर ड्राइवर तक का सामाजिक प्रशिक्षण दिया जाए। बताने के लिए कि विधायक और परिवार के बीच किस तरह के संबंध होने चाहिए। किस तरह विधायक का सार्वजनिक आचरण परिवार को बदनाम कर सकता है और किस तरह परिवार का आचरण विधायक को। सदस्यों से बड़ी गाड़ियों की तमाम जानकारी मांगी जाए और पूछा जाए कि आपके अलावा परिवार के कितने सदस्यों के पास ऐसी गाड़ी है। सदस्यों को बताया जाए कि कार जब किसी आम नागरिक की कार से टकरा जाए या कोई ओवरटेक कर ले तो कैसे बर्ताव करना है। मंत्री या विधायक की पंजीकृत कार के भीतर एक संदेश चिपकाया जाना चाहिए कि यह विधायक की कार है। कार विधायक नहीं है। ड्राइवर और परिवार के सदस्य औकात में रहें।

गया पुलिस की एसएसपी को बधाई, लेकिन एक मामले में गिरफ़्तारी से कुछ नहीं होने वाला। नौजवान एसएसपी को भी ऐसे गाड़ीवानों का शिविर लगाकर बताना चाहिए कि यह कार, जो आपने ख़रीदी है, वह देखने में बड़ी है, मगर इसमें बैठकर आप कानून से बड़े नहीं हो जाते। छोटी कारों, साइकिल सवारों, रिक्शा वालों और पैदल यात्रियों का सम्मान करना सीखें।

तुम्हारे राज्य का एक नागरिक

रवीश कुमार

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