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This Article is From Feb 20, 2015

संविधान बड़ा या महादलित का अपमान?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 20, 2015 22:21 pm IST
    • Published On फ़रवरी 20, 2015 21:16 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 20, 2015 22:21 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार। सूरत में सूट 4 करोड़ 31 लाख में नीलाम हो गया मगर पटना में विधायकों की कथित नीलामी नहीं हो सकी। सबको मंत्री बनाने का ऑफर देने के बाद जब विधायक नहीं आए तो जीतन राम मांझी ने सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले इस्तीफा दे दिया। नीतीश कुमार 22 फरवरी को चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। मांझी ने विश्वासमत से पहले क्यों इस्तीफा दे दिया यह उनकी सफाई से भी साफ नहीं हो पा रहा है।

लेकिन उनके इस्तीफे की खबर आते ही बिहार विधानसभा के बाहर राज्यपाल की आगवानी में तैनात किए गए ये गार्ड विश्राम की मुद्रा में ही खड़े रह गए। इन्हें सावधान होकर सलामी देने और राष्ट्रगान पेश करने का मौका ही नहीं मिला। राज्यपाल के अभिभाषण के विरोध में धरने पर बैठे जनता दल युनाइटेड के विधायक भी काली पट्टी उतार गले मिल मिलने लगे। खुद मांझी ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि उनके पास बहुमत था, लेकिन गुप्त मतदान न होने के कारण विधायकों की जान को खतरा हो सकता था। क्या मांझी विधायकों की सुरक्षा का इंतज़ाम भी नहीं कर सकते थे। मांझी ने कहा कि विधायक खुलकर उनके साथ आते तो सदस्यता समाप्त हो सकती थी। साथ ही स्पीकर का आचरण भी संदिग्ध था। तो क्या विधायकों ने अपनी सदस्यता को मांझी के अपमान से ज्यादा महत्व दिया। या  मांझी अपमान के नाम पर उन्हें साथ नहीं ले पाए। एक चर्चा यह थी कि मांझी सदन में भले बहुमत साबित न कर पायें लेकिन विश्वासमत के बहाने शानदार भाषण देकर नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। अब यह किसी को पता नहीं कि मांझी ने यह मौका क्यों गंवा दिया।

इसके बाद पटना में बयानों की बरसात हो गई। यहां प्रेस कांफ्रेंस तो वहां प्रेस कांफ्रेंस। नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी एक्सपोज हो गई है। सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार एक्सपोज़ हो गए हैं। कई बार लगता है कि मांझी ने दोनों को एक्सपोज़ कर दिया। पर मांझी ने बीजेपी पर कुछ भी नहीं बोला है।

सुशील कुमार मोदी के घर के प्रेस रूम में जंगल राज टू का पोस्टर कई दिनों से लगा था। इस तस्वीर में नीतीश लालू के पांव पर हैं और मांझी कुर्सी पर बैठ मौज कर रहे हैं। आमतौर पर नेता अपनी पार्टी का ही पोस्टर लगाते हैं मगर प्रेस कांफ्रेंस रूम में जंगल राज टू का पोस्टर मांझी के समर्थन के एलान से कुछ मिनट पहले हटा लिया गया। आप उसी का वीडियो देख रहे हैं। बीजेपी दफ्तर में जंगल राज टू का एक पोस्टर शुक्रवार को भी लगा मिला। जिसमें लिखा है जंगल राज टू का आगाज़, रिमोट सरकार, सहमा बिहार। 15 नवंबर को बिहार बीजेपी ने जंगल राज टू का एक बुकलेट भी निकाला था जिसके आठ पन्नों में मांझी पर थाना बेचने से लेकर बीडीओ की पोस्टिंग की नीलामी के आरोप लगाए गए हैं। यह समझ पाना मुश्किल है जिस मांझी ने एक इंजीनियरिंग कालेज का नाम बदल कर जगन्नाथ मिश्र के नाम पर रख दिया उनके जातिगत स्वाभिमान की लड़ाई बीजेपी क्यों लड़ रही है। जगन्नाथ मिश्र चारा घोटाले मामले में सज़ायाफ्ता हैं। किसी सजायाफ्ता के नाम पर कालेज होगा इसे बीजेपी ने अपमान के तौर पर क्यों नहीं देखा। पटना स्टेशन पर जेडीयू ने पोस्टर लगाया है जिसमें नीतीश की तारीफ में अटल और आडवाणी के बयान छपे हैं। दिल्ली चुनाव के पांच सवाल वाले पोस्टर पटना भी पहुंच गए हैं। इस पोस्टर में नीतीश के बारे में कहा गया है कि वे जिस जिस के साथ रहे हैं उन्हें धोखा दिया है।

ज़ाहिर है बिहार की राजनीति में अभी कादो कीचड़ होना बाकी है। प्रेस कांफ्रेंस कर नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी बार-बार महादलित महादलित बोलकर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की जातिगत पहचान कर रही है जो ठीक नहीं है। लेकिन मांझी को मुख्यमंत्री बनाते वक्त क्या जेडीयू ने उनकी हर खूबी से ज्यादा इस खूबी का प्रचार नहीं किया था कि मांझी मुसहर जाति से आते हैं।

नीतीश ने कहा कि बीजेपी जिस स्पीकर पर हमले कर रही है वो भी महादलित वर्ग से आते हैं। एक निष्पक्ष स्पीकर पर हमले करना क्या महादलित का सम्मान है। बीजेपी उनकी पार्टी तोड़कर अपना खेल चल रही थी जिसमें फेल हो गई है। जो भी महादलित के स्वाभिमान के नाम पर बीजेपी और मांझी नीतीश को मात नहीं दे सके। नीतीश ने कहा कि मांझी को पार्टी के फैसले का सम्मान करना चाहिए था। नीतीश ने कहा कि बीजेपी पहले धर्म के आधार पर लोगों के मन में तीखापन लाती रही अब समाज में जातीयता का भाव करने के लिए कास्ट का कार्ड खेल रही है।

पर क्या नीतीश के पास कास्ट का कोई कार्ड नहीं। सुशील कुमार मोदी ने कहा कि मुख्यमंत्री मांझी ने ही दावा किया था कि मेरे पास बहुमत है, केवल सिद्ध करना है। हम लोग तो...एक महादलित के अपमान का बदला लेने के लिए महादलित के बगल में खड़े थे। क्या बीजेपी की यह सफाई पर्याप्त है या मांझी ने बीजेपी को भी फंसा दिया। क्या बहुमत होने के सिर्फ ज़ुबानी दावे के आधार पर बीजेपी मांझी पर भरोसा कर बैठी। संविधान का सवाल बड़ा था या महादलित के अपमान का।

सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के आरोपों का खंडन किया कि बिहार की स्क्रीप्ट बीजेपी ने नहीं लिखी है। नरेंद्र मोदी ने नहीं लिखी है। मांझी के दिल्ली जाने से पहले शरद यादव, नीतीश कुमार और मांझी की समझौता वार्ता फेल हो गई थी। बीजेपी ने भी मांझी का समर्थन किया है कि अगर विधायक हमारे लिए मतदान करते तो उनकी सदस्यता जाने का खतरा था। क्या बीजेपी खुद अपनी पार्टी के विधायक को बिना व्हीप के वोट करने की इजाज़त देगी। अगर बीजेपी का कोई विधायक नीतीश के समर्थन में वोट कर दे तो बीजेपी क्या करेगी। व्हीप के उल्लंघन में सदस्यता समाप्त करने की कार्रवाई करेगी या उक्त विधायक के लोकतांत्रिक अधिकार का सम्मान करेगी।

दोनों तरफ से चलने वाली दलीलें दुधारी तलवार की तरह हैं। जितना दूसरों को नहीं काटती उससे कहीं ज्यादा ख़ुद को काट देती हैं। बिहार में जो कुछ हो रहा है क्या वो जात-पात टू की वापसी के संकेत है। या बिहार में पिक्चर अभी बाकी है दर्शकों। प्राइम टाइम

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