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This Article is From Oct 30, 2018

ब्राज़ील में सांबा नहीं तांडव होगा, बोलसोनारो बोलसोनारो होगा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 30, 2018 22:23 pm IST
    • Published On अक्टूबर 30, 2018 22:23 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 30, 2018 22:23 pm IST
ब्राज़ील के नए राष्ट्रपति. ख़ुद को चीली के कुख़्यात तानाशाह अगुस्तो पिनोशे का फ़ैन कहने हैं. वैसे तानाशाह के आगे कुख़्यात लगाने की ज़रूरत नहीं होती. बड़े शान से कहा था कि पिनोशे को और अधिक लोगों को मारना चाहिए था. यह भी चाहते हैं कि अपराधियों को देखते ही पुलिस गोली मार दे. अपने देश में 1964 से 1985 तक सैनिक शासन की तारीफ़ करते हैं. कह चुके हैं कि लोकतंत्र से राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान नहीं होता है.

स्वागत बोलसोनारो. ब्राज़ील में नवउदारवाद के खंडित ख़्वाबों का नाच होगा. नफ़रतों का सांबा डांस. अर्थसंकट के तूफ़ान से गुज़र रहे ब्राज़ील में बेरोज़गारों के ढेर लग गए हैं. मुद्रा का भाव गिरते-गिरते गर्त में जा चुका है. लोगों ने नव उदारवाद की नीतियों को नहीं बल्कि लोकतंत्र को ही ज़िम्मेदार माना है. उन्हें लगता है कि बस भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए तो सब ठीक हो जाएगा और यह काम तथाकथित ईमानदार और मज़बूत नेता ही कर सकेगा. इसलिए लोकतंत्र को ख़त्म करने की बात करने वालों को तालियां मिल रही हैं. नव-उदारवाद अब भी माला पहने तख़्त पर बैठा है. विकास का ख़्वाब विनाश की चाहत में बदल रहा है.

बोलसोनारो के वचन ख़तरनाक हैं. चुनाव प्रचारों में कह चुके हैं कि ब्राज़ील के मूल जनजाति लोग किसी क़ाबिल नहीं. बच्चा पैदा करने की भी अनुमति नहीं होनी चाहिए. यह ग़ुस्सा इसलिए है क्योंकि ब्राज़ील में ही आमेजॉन के घने जंगल हैं. जैसे जंगल हैं भारत के छत्तीसगढ़ में. वैसे ही आमेजॉन के घने जंगलों पर लूट की निगाह गड़ी हुई है. अब जमकर लूटने के लिए संरक्षित जंगल ही बचे हैं. नए राष्ट्रपति इन इलाक़ों में घोर खनन और जंगलों के काटने की अनुमति की बात कर चुके हैं. आमेजॉन के जंगल क़ानून से संरक्षित हैं. देखते हैं कि क़ानून बदलते हैं या मूल बाशिंदों को ही मार देते हैं. उन्हें परजीवी यानी parasite बोल चुके हैं. भारत में भी अमित शाह ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को टरमाइट यानी दीमक कहा था. अब इंसान या तो parasite होगा या termite होगा. दरअसल विकास और सत्ता के रास्ते आदमी कीड़े मकोड़े घोषित कर दिए जाएंगे. ताली बजाने वाले आदमियों की कमी नहीं होगी.

बोलसोनारो को ग़रीबी से भी नफ़रत है. उनकी नसबंदी की बात करते हैं. विदेशी एनजीओ को भगाने की बात करते हैं ताकि पर्यावरण और वन संरक्षण के सवालों के उठने के रास्ते बंद कर दिए जाएं. इसके लिए पेरिस समझौते से निकलने की बात कर चुके हैं जिसके तहत ब्राज़ील पर चालीस प्रतिशत से अधिक कार्बन उत्सर्जन घटाने की शर्त है. दुनिया इस बोलसेनारो से सहमी हुई है. इतना कठोर और घोर दक्षिणपंथी कोई नहीं है. दुनिया को नफ़रतों का नया बादशाह मिला है. इस्तक़बाल!

बोलसोनारो की जीत व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की जीत है. यहां जिसके पास इंटरनेट है उसके पास व्हाट्सएप है. अफ़वाहों, नफ़रतों का बाज़ार गरम है. चुनाव प्रचार का अध्ययन करने वाले बताते हैं कि बोलसोनारो की असली ताक़त व्हाट्सएप है. सोशल मीडिया पर इनके समर्थकों के ख़ूंख़ार चरित्र का अध्ययन हो रहा है. काफ़ी कुछ भारत से मिलता जुलता है. सवाल करने पर गालियां और मार देने की बात होती है. बोलसोनारो ने टेलीविजन को लात मार दिया. अपने चुनावी विज्ञापन का बहुत कम हिस्सा चैनलों पर ख़र्च किया. मात्र आठ फ़ीसदी स्लॉट ही ख़रीदा. जब सितंबर में बोलसोनारो को किसी ने चाक़ू मारा तब वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा रहा. वहीं से फ़ेसबुक पर पोस्ट लिखता रहा. प्रचार करता रहा.

पहले दौर की जीत के बाद बोलसोनारो वही सब बकवास कर रहा है. सब मिल कर रहेंगे. ब्राज़ील सबका है. किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है. शासक को पता है अब सत्ता हाथ में है. बोलने की ज़रूरत नहीं रही. अब करने की जगह है. ख़ून को बहने के लिए शब्द की ज़रूरत नहीं होती है. पहले शब्द ही मरते हैं फिर आदमी मरता है और फिर ख़ून बहता है.

कुछ तो है कि दुनिया भर के लोगों के भीतर ख़ूनी चाहतें जवान हो रही हैं. लोग पिशाच बन रहे हैं और नेता नरपिशाच. उन्माद का बोलबाला है. अर्थव्यवस्थाओं में सिर्फ कुछ होने का भरोसा है. कुछ होने-जाने का दम नहीं बचा है. नया रास्ता मिल नहीं रहा है. लोग पुरानी सड़क को ही खोद रहे हैं. विकास को नया दोस्त चाहिए. दोस्त मिल नहीं रहा इसलिए अब आदमी आदमी का दुश्मन है. कभी माइग्रेंट दुश्मन है, कभी मुसलमान दुश्मन है, कभी यहूदी दुश्मन है. लोगों के लिए अब लोकतंत्र दुश्मन है. तानाशाही दोस्त है. हत्याओं के ख़्वाब देखे जा रहे हैं. बोल बोलसोनारो की जय!

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