विपक्ष कहाँ है ? यह सवाल बेहद चालाकी भरा है. घोषित और अघोषित गोदी मीडिया को विपक्ष को लेकर कब बेचैन होता है? आप ग़ौर करेंगे तो पता चलेगा जब मैच की ज़रूरत होती है. सरकार से सवाल करने में डर लगता है. तब बहाना बनाया जाता है कि विपक्ष कहाँ है. विपक्ष की खोज उनकी अपनी ज़रूरत के लिए होती है ताकि डिबेट के नाम पर इस घटना बनाम उस घटना का मैच शुरू हो सके. और सरकार से सीधे सवाल पूछने के बजाए विपक्ष के सहारे पूछें जा सके. टीवी पर दिखाने के लिए नहीं बल्कि विपक्ष को कूट कर सरकार को बचाने के लिए.
तीस सितंबर को ट्विटर पर यह सवाल पैदा किया जाने लगा कि विपक्ष कहाँ है. कहाँ तो न्यूज़ संस्थानों को अपने दम पर रिपोर्टिंग के ज़रिए तरह तरह के तथ्य लाए जाने चाहिए थे, मेडिकल रिपोर्ट देखनी थी, पता करना था कि पीड़िता कब तक जनरल वार्ड में रही, आई सी यू में कब गई, महिला रोग विशेषज्ञ ने उसकी जाँच कब की, पुलिस कब गई, उसी गाँव के दूसरी जाति के लोग क्या सोचते हैं? आरोपियों की बस्ती कैसी दिखती है ? उनके परिवार के लोग क्या कहते हैं ? इन सब सवालों को आराम से किनारे लगा दिया गया और ‘विपक्ष कहाँ है' का सवाल खोजा जाने लगा. ताकि जैसे ही विपक्ष हाथरस का नाम लेता तो कहा जाता कि आपकी सरकार में भी हो रहा है. यहाँ गए तो वहाँ नहीं गए. यह नहीं पूछेगा कि विपक्ष के पाँच नेताओं के परिवार से मिलने का इंतज़ाम क्यों नहीं हो सकता? इस तरह मज़ाक़ विपक्ष के सवाल का बनता और बचाव सरकार का होता.
अब जब राहुल गांधी पैदल मार्च पर निकले तो ‘विपक्ष कहाँ है' वालों का हाल देखना चाहिए. वो अब विपक्ष में नौटंकी खोजने लग गए होंगे. विपक्ष में गंभीरता में कमी की माप तौल कर रहे होंगे. इसे एक बार का बता कर मज़ाक़ उड़ा रहे होंगे. ताकि राहुल गांधी के गिरा दिए जाने के सवाल को ग़ायब कर दिया जाए. केवल राहुल ही नहीं गिरे या गिराए गए. दिल्ली महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अमृता धवन के कपड़े फाड़े गए. ये सवाल राहुल के गिरने या गिराए जाने से बड़ा था. ख़ैर.
यह झूठ है कि तीस सितंबर को विपक्ष को नहीं था. सपा के ही कोई नेता पीड़िता के परिवार से मिलने गए थे. नहीं मिलने दिया गया. आम आदमी पार्टी ने भी प्रदर्शन किया था. यूपी के कोई ज़िलों में सपा और कांग्रेस के नेताओं ने प्रदर्शन किया था. लाठियाँ खाईं थीं. हिरासत में लिए गए. राहुल और प्रियंका पर भी प्राथमिकी दर्ज हुई है. बसपा का पता नहीं है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर प्रदर्शन किया या नहीं. लेकिन ऐसा नहीं था कि विपक्ष नहीं था.
विपक्ष को नहीं दिखाया जाता है. आप विपक्ष को भी देखना चाहते हैं. घोषित और अघोषित गोदी मीडिया को पता है कि यह सवाल आपके मन में है. मीडिया की चोरी पकड़ी जाए, इसके पहले वह सवाल पैदा कर देता है कि विपक्ष कहाँ है. जैसे वो तो दिखाने के लिए बैठा है, बस विपक्ष नहीं दिख रहा है.
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