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This Article is From May 25, 2016

बैंकों का राजन दिलों का भी राजन है!

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 25, 2016 19:28 pm IST
    • Published On मई 25, 2016 14:01 pm IST
    • Last Updated On मई 25, 2016 19:28 pm IST
उस सभागार में सबकी नज़रों का राजन एक ही था! ख़ुद को देखे और निहारे जाने के असर से उनके कंधे झुके जा रहे थे। जिन्हें देखा जा रहा था उनके चेहरे पर सकुचाहट तैर रही थी और देखने वालों के चेहरे पर अकुलाहट। मंच की उद्घोषिका द्वारा गवर्नर साहब और रघुराम जी राजन जी पुकारे जाने के बीच कौतूहल का बहुवचनीय स्वरूप मुंबई के यशवंत राव सभागार में तैर रहा था। जिस व्यक्ति को अर्थव्यवस्था का खलनायक बताने का प्रयास हो रहा है दरअसल वह अपने कर्मचारियों और सहयोगियों के बीच नायक है।

भारतीय रिजर्व बैंक राजभाषा की स्वर्ण जयंती मना रहा था। देशभर से आए रिज़र्व बैंक और अन्य बैंकों के छह सात सौ अफ़सरों की निगाहें सिर्फ राजन को देखने का मन बनाकर आईं थीं। पुरस्कार मिले तो सिर्फ उनसे और उनके हाथों से। विजेता मंच पर इस तरह खड़े हो रहे थे कि हर फ़्रेम में राजन आते रहें। राजन साहब ने अन्य उप-गवर्नरों को आगे किया कि कुछ पुरस्कार वे भी दें मगर विजेताओं को अच्छा नहीं लगा। जिन्होंने राजन के हाथों से लिया खुशी-खुशी लौटे और जिन्हें नहीं मिला वे मंच पर ऐसे उदास दिखे जैसे निलम्बन पत्र पकड़ाया जा रहा हो। अंत में एक विजेता से रहा नहीं गया। उप-गवर्नर से पुरस्कार लेकर राजन के पास तस्वीर खींचाने चला गया। उनके हाथ में अपना मानपत्र थमा कर मुस्कुराया और अपने नायक के साथ फ्रेमबद्ध होकर लौट आया। काश मैं भी मिल आता!

यह कार्यक्रम 5 बजे से शुरू होना था। मैं 5 बजकर 3 मिनट पर पहुंचा। सभागार के बाहर स्वागत अधिकारी के अलावा इक्का-दुक्का लोग थे। पहुंचते ही लगा कि कहीं सबसे पहले तो नहीं आ गया। स्वागत अधिकारी मित्र अनिल ने बताया कि सारे लोग भीतर हैं। गवर्नर साहब ठीक 5 बजे आ गए और मंच पर बैठ हुए हैं। सुनते ही खुद से कोफ़्त हुई कि ये तीन मिनट की देरी हुई क्यों। मुझे भी देरी से चिढ़ है। हॉल खचाखच भरा था मगर असर ऐसा कि लगा हर सीट पर राजन बैठे हैं। यह भी हो सकता है कि मैं भी उसी कौतूहल से राजन को देख रहा था, जिससे बाक़ी देख रहे थे। उनके जाने के बाद प्रसिद्ध कवि अशोक चक्रधर ने तो साफ कह दिया कि मैं तो उस कुर्सी से उठूंगा नहीं जिस पर गवर्नर राजन बैठे थे।

मैंने किसी संस्थान के चपरासी से लेकर अधिकारी तक में अपने मुखिया के प्रति ऐसा आकर्षण नहीं देखा है। भारतीय रिज़र्व बैंक के भीतर कुछ तो ऐसा घटा है जिसने राजन को वाक़ई राजन बना दिया है। रिज़र्व बैंक की गरिमा हमेशा से रही है, लेकिन राजन का कुछ तो असर हुआ है, जिसके कारण मंझोले स्तर के अधिकारियों का आत्मगौरव छलक रहा था। मैं कानों से सुनने लगा कि लोग राजन के बारे में क्या बात करते हैं। हर आवाज़ में सकारात्मकता थी। बात-बात में जब मैंने कह दिया कि चर्चा तो है कि अगला गवर्नर कोई और हो सकता है तो आसपास के लोगों का मुंह छोटा-सा हो गया ।

"हमारे साहब बहुत अच्छे हैं"। दफ्तर में बैठकर काम करते हैं। उनके काम करने से सारा रिज़र्व बैंक काम करता है। फ़ाइलें चलती रहती हैं। सबसे बात बहुत अच्छे से करते हैं। ख़ुद को पीछे रखते हैं। हम लोगों को आगे कर देते हैं। प्रतिभा तो है ही, आदमी बहुत अच्छे हैं। गवर्नर साहब हर चीज़ पर नज़र रखते हैं। उनकी चिंता होती है कि हर किसी को दो वक्त की रोटी मिले। किसी के साथ धोखाधड़ी न हो। ये चंद आवाजें हैं, जो मैंने अलग-अलग लोगों से रघुराम राजन के बारे में सुनीं।

मैंने किसी से पूछ दिया कि राजन को हिन्दी आती है। मुझे बताया गया एक बहुत ही जूनियर अधिकारी के साथ समय निकाल कर हिन्दी में चर्चा करते हैं। वह भी बैंकिंग विषयों पर। एक पत्रकार को जब उन्होंने राजकोषीय घाटा कह दिया तो उसे लगा कि ग़लत तो नहीं सुन लिया। जब दूसरे वक्ता बोल रहे थे तब मंच पर रघुराम राजन अपने भाषण का अभ्यास कर रहे थे। शब्दों पर निशान लगा रहे थे। भाषण की कॉपी वहीं मेज़ पर छूट गई। मुझे लगा कि राजन ने रोमन में लिखी हिन्दी पढ़ी है मगर उनके भाषण की कॉपी देवनागरी में थी। ऐसे पदों पर लोग हिन्दी के नाम पर चकमा दे जाते हैं। शायद चकमा देना राजन की फ़ितरत ही नहीं है।

राजन ने कहा, "राजभाषा का काम सजावटी साहित्य या कला को प्रोत्साहन देना नहीं है। इसका मुख्य कार्य है उस संस्था के आंतरिक और बाहरी संचार को बेहतर बनाना। एलन ग्रीनस्पैन के विपरीत, रिज़र्व बैंक का गवर्नर पहेलियों में बात नहीं कर सकता। बल्कि, हमारा काम तो जनता को यह समझाना होता है कि क्यों मुद्रास्फीति को कम करने के लिए या बैंकों में एनपीए घटाने के लिए आर्थिक ढांचे में सुधार की जरूरत है। इसीलिए, हम विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों की तरह सिर्फ कुछ लोगों को समझ में आने वाली तकनीकी भाषा में बात नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा कि "अर्थशास्त्र वैसे ही एक कठिन विषय है। राजभाषा विभाग के पास यह कठिन काम है कि उसे न सिर्फ हमारी नीतियों के पीछे का अर्थशास्त्र लोगों तक पहुंचाना है, बल्कि यह काम ऐसी सरल भाषा में करना है कि आपको इसे समझने के लिए डबल पीएच.डी होने की जरूरत न पड़े - एक अर्थशास्त्र में और एक हिन्दी में।"

कभी ख़ुद पर तो कभी हालात पर हंसते हुए गवर्नर राजन कभी कभार लड़खड़ाते भी रहे, बहुत मुश्किल से प्रतिबद्धता बोल पाए लेकिन कई वाक्यों को सहजता से कह गए। राजन के बचपन के बारे में जानकारी नहीं है मगर किसी ने बताया कि जीवन के बेहद आरंभिक वर्ष भोपाल में गुज़रे हैं। आख़िरी पैरों पर पहुंच कर ऐसे मुस्कुराए जैसे कह रहे हों कि देखा मैंने भी हिन्दी में भाषण दे दिया। दक्षिण भारतीय हिन्दी बोलता है तो वैसे ही मन में अतिरिक्त श्रद्धा उमड़ आती है। भारतीय रिज़र्व बैंक के पहले राजभाषा अधिकारी पी जयरमन दक्षिण भारतीय ही थे। तमिल संस्कृत और हिन्दी के विद्वान जयरमन को पद्म श्री भी मिल चुका है।

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