यह ख़बर 18 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

...तो क्या सरकार भी लगा रही है कट्टर सोच पर अपनी मुहर!

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

हो सकता है कि यह बात कुछ लोगों को अहम न लगे, लेकिन मुझे तो अटपटा-सा लगा, जब केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में देश के अल्पसंख्यकों को इस बात के लिए बधाई दी कि ‘उन्होंने आतंकी संगठन आईएसआईएस की जड़ें इस धरती पर जमने नहीं दीं, साथ ही अपने बच्चों को इसको लेकर हतोत्साहित किया’।

अच्छा लगता अगर गृहमंत्री यह बधाई पूरे देशवासियों को देते। सिर्फ एक खास धर्म के लोगों को ही बधाई क्यों? क्या सिर्फ इसी धर्म के लोग आतंकी संगठनों में शामिल होते हैं? दूसरे धर्म के लोग क्या पूरी तरह से पाक-साफ हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि गृहमंत्री देश के बड़े तबके की धारणा को ही मजबूत कर रहे हैं कि आतंक का रिश्ता एक खास मजहब से है? ऐसा भी हो सकता है कि गृहमंत्री की मंशा यह नहीं रही हो पर शब्दों के चयन में तो जरूर उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए।

असम के धुबरी से सासंद बदरुउद्दीन अजमल कहते है कि गृहमंत्री को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। इससे तो साफ लगता है आप इस समुदाय को अलग चश्मे से देख रहे हैं।
 
कहीं न कहीं इस बात से इस मान्यता को भी हवा मिलती है कि आतंकवाद के लिए अल्पसंख्यक ही जिम्मेदार है। यूपीए सरकार की सोच भी कुछ ऐसी ही थी। यह अलग बात है कि एक खास समुदाय को खुश करने चक्कर में उसके नेता कई बार ऐसे बयान और ऐसे काम कर गए कि उनका जिक्र करना भी यहां मुनासिब नहीं है।

मोदी सरकार के आने के बाद जब भी किसी ने अल्पसंख्यकों के कल्याण और विकास के बारे में सरकार से पूछा है तो अक्सर यही जवाब मिलता है कि हमारी सरकार का मूल मंत्र है ‘सबका साथ सबका विकास’। हम किसी के साथ भी धर्म और वर्ग के आधार पर भेदभाव नही करेंगे।

फिर ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी कि गृहमंत्री ने इस लहजे में अल्पसंख्यकों का शुक्रिया अदा करना पड़ा? पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुल्तान अहमद जैसे नेताओं को भी गृहमंत्री का यह बयान हजम नहीं हो रहा है। उनका कहना है कि इस बयान से लगता है अल्पसंख्यक देश के बाकी लोगों से अलग हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकारी स्तर पर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के बीच भेदभाव का यह कोई पहला मामला है। सरकारें पहले भी अपने बयानों, क्रियाकलापों और व्यवहार में इसी तरह का भेदभाव करती रही हैं, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद कभी लव जेहाद, तो कभी धर्मांतरण जैसे विवादों और कभी साध्वियों और साधू वस्त्रधारी नेताओं के तीखे बोल सामने आने से अल्पसंख्यक के मन में डर तो पैदा हो ही गया है। हालांकि पूर्व गृह सचिव और अब सांसद आरके सिंह गृहमंत्री का बचाव करते हुए कहते है कि समाज का यही तबका आईएसआईएस जैसे संगठनों के ज्यादा निशाने पर यही है इसलिए इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही गृहमंत्री ने अपनी बात रखी।

वैसे संविधान के मुताबिक और धार्मिक-सामाजिक समरसता के नाते वक्त का तकाज़ा तो यही कहता है कि कम से कम सरकार के स्तर पर तो इस तरह के विवादस्पद बयानों से बचा जाना चाहिए। अब यदि सरकारें भी कट्टरवादी संगठनों की सोच को हवा देने लगेगी तो इससे अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भय उत्पन्न होना लाजिमी है। खासतौर पर जब प्रधानमंत्री से लेकर कई मंत्रियों तथा सरकार के मार्गदर्शक माने जाने वाले संगठनों का इतिहास इस तरह के भेदभाव को लेकर पाकसाफ नहीं रहा हो तब तो और भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि मसला देश के अन्दरभर का नहीं है, बल्कि कई देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संबधों पर भी इसका परोक्ष या अपरोक्ष रूप से असर पड़ सकता है।  

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अच्छा हो कि सरकार ऐसे बयानों से बचने का प्रयास करे। अल्पसंख्यकों के मन में अलग-थलग पड़ जाने जैसे कोई भाव न आए ऐसी कोशिश सरकार के स्तर से हर हाल में होनी ही चाहिए, वरना छोटी-छोटी घटनाएं दिमाग में ऐसी टीस कर जाती हैं कि वह इससे बाहर नहीं निकल पाते हैं और जाने-अनजाने में समाज और देश विरोधी तत्वों/संगठनों/सोच और गतिविधियों का हिस्सा बन जाते हैं।