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This Article is From Mar 12, 2015

राजीव रंजन की कलम से : मुफ्ती न रुकेंगे और न झुकेंगें

Rajeev Ranjan, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    मार्च 12, 2015 22:55 pm IST
    • Published On मार्च 12, 2015 22:51 pm IST
    • Last Updated On मार्च 12, 2015 22:55 pm IST

कहने को हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता मसर्रत आलम की रिहाई को लेकर उठा विवाद कुछ पलों के लिए भले ही थम गया हो, पर खबर है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद के अलगवावादियों और आतंकियों के रिहाई के लिए बढ़े कदम रुकेंगे नहीं। इस पर संसद से लेकर जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के साथ-साथ विपक्षी पार्टियां ने भी मुफ्ती को घेरने की कोशिश की पर वे जरा भी घबराये नहीं।

वजह है, इस पर पीडीपी को कश्मीर में मिला लोगों का भरपूर समर्थन, जिससे घाटी में उसकी ज़ड़ें और मजबूत हुई है। बीजेपी को भी पहली बार रियासत में सरकार बनाने का मौका मिला है लिहाजा वह भी सरकार को गिराने से पहले सौ बार सोचेगी।
      
आज जो कुछ भी मुफ्ती कर रहे हैं, ठीक 2002 में भी वैसा ही कर चुके हैं। फर्क बस इतना ही है उस वक्त पीडीपी के साथ कांग्रेस थी और आज बीजेपी है। तब पहले कांग्रेस ने आंखें दिखाई थी और बाद में हथियार डाल दिए थे। पीडीपी को साफ लग रहा है, इतिहास फिर वैसा ही दोहराया जाएगा। तभी तो अपनी सोची समझी रणनीति के तहत अब आतंकियों और राजनीतिक कैदियों के रिहाई का मसला जांच समिति के हवाले कर दिया गया है। हालांकि गृह मंत्रालय तो मुफ्ती ने पिछले बार की तरह अपने पास ही रखा है ताकि अपने मन मुताबिक फैसले ले सके। जांच समिति कुछ भी फैसला करे रिहाई पर अंतिम मुहर तो गृह मंत्रालय ही लगाता है। मुफ्ती ये भी तय कर चुके हैं कि वो कश्मीरियों को ये संदेश देना चाहते हैं कि वे लोगों के हित में कुछ भी फैसला ले सकते हैं चाहे उनकी सरकार क्यों न चली जाए।         

वैसे कश्मीर में 1990 से लेकर 2001 तक आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि 12 सालों में 52 हजार आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। इन 52 हजार आतंकियों में से 25 हजार को तो शुरुआती जांच के बाद ही रिहा कर दिया गया। बाकी बचे 27 हजार को टाडा और दूसरे अन्य कानूनों के मुताबिक गिरफ्तार किया गया था उनमें से करीब पांच हजार को तो धारा 169 के तहत रिहा कर दिया गया। लगभग इतनी ही तदाद में आतंकियों को जमानत पर छोड़ दिया गया। 10 हजार से अधिक आतंकियों  को कई जांच समितियों और राज्य सरकार ने छोड़ दिया।

ये सच है मुफ्ती को छोड़कर नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकाल के दौरान भी ऐसे आतंकी और अलगाववादी छोड़े जाते रहे हैं, लेकिन मुफ्ती सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान हीलिंग टच के नाम पर जिस तरह राजनीतिक बंदियों के नाम पर आतंकियों को छोड़ा गया है, उससे लोगों को यकीन कर पाना मुश्किल है कि बीजेपी के मना करने पर मुफ्ती शांत पड़ गए हैं।

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