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This Article is From Oct 12, 2016

सेना की 'रणनीति' के कारण लंबा चला पंपोर ऑपरेशन

Rajeev Ranjan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 12, 2016 20:41 pm IST
    • Published On अक्टूबर 12, 2016 20:03 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 12, 2016 20:41 pm IST
पंपोर में तीन आतंकियों के खात्मे में सेना को तीन दिन लग गए. इस ऑपरेशन में सेना का एक जवान मामूली तौर पर घायल हुआ. इसके अलावा सेना को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. ऐसे में कई लोग सवाल उठाने लगे है कि आखिर सेना की क्षमता या फिर ताकत इतनी कम हो गई जो उसे चंद आतंकियों को मार गिराने इतना वक्त लग गया! दरअसल, मसला सेना की ताकत कम होने का नहीं है, बल्कि ऑपरेशन पूरा होने में देरी की एक नहीं कई वजहें हैं. पहली बात तो ये कि आतंकी जिस ईडीआई बिल्डिंग पर कब्जा जमाकर बैठे थे, उसमें एक नहीं 120 से ज्यादा कमरें हैं. ऑपरेशन खत्म करने से पहले जरूरी था कि हर कमरे की जांच की जाए. ऐसी भी आशंका थी कि आतंकियों ने किसी कमरे में विस्फोटक लगा दिया हो और फिर उसे उड़ा दें.

सुरक्षाबलों को ये भी पता नहीं था कि आतंकी किस कमरे में छिपे हैं. सेना कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी. सेना सीधे बिल्डिंग में दाखिल होने से बचना चाहती थी ताकि कहीं छिपकर/ घात लगाकर बैठे आतंकी सेना पर हमला न कर दें. वो एहतियात और पूरी सुरक्षा के साथ ऑपरेशन करना चाहती थी, जिससे उसका खुद का कोई नुकसान न हो. इसी साल फरवरी महीने में इसी बिल्डिंग पर आतंकियों ने हमला किया था तो सेना और सुरक्षाबलों को खासा नुकसान हुआ था. सेना के तीन लोग उस वक्त हमले में शहीद हुए थे और ऑपरेशन भी लंबा चला था. हालांकि तब भी सेना ने हमले में शामिल तीनों आतंकियों को मार गिराया था.

आतंकियों की रणनीति ये भी थी कि ऑपरेशन को लंबा खींचे, ताकि वे पूरी दुनिया का ध्यान खींच सकें. वैसे अगर सेना चाहती तो एक मिनट में पूरी बिल्डिंग को उड़ा सकती थी और आतंकियों के परखच्चे उड़ जाते, लेकिन सेना के पास सीमित विकल्प होते हैं. भारतीय सेना खासतौर पर कम से कम नुकसान होने देने की रणनीति पर काम करती है, इसलिए तुरंत बिल्डिंग उड़ाकर आनन-फानन में इस ऑपरेशन को ख़त्म करने का रास्ता उसने नहीं चुना. आतंकियों को थकाने, उनका साजो-सामान और खाने पीने का सामान खत्म होने के इंतजार में सेना अपनी ओर से ऑपरेशन चलाती रही. वैसे सेना ने पूरी बिल्डिंग को घेर रखा था, जिससे आतंकियों के बच निकलने की संभावना न के बराबर थी. यहां या तो वे पकड़े जाते या फिर मारे जाते. लिहाजा, सेना ने यहां रात के ऑपरेशन से भी परहेज किया.

वैसे भी ये सरकारी इमारत है. नई बिल्डिंग है और यहां से ट्रेनिंग लेकर हर साल सैकड़ों कश्मीरी युवक नौकरी पाते हैं. शुक्र मनाइए, जिस वक्त आतंकियों ने हमला किया उस वक्त ये ट्रेनिंग बंद थी, क्योंकि पिछले तीन महीने से यहां प्रशिक्षण का काम बंद पड़ा हुआ था. लिहाजा, कोई छात्र बिल्डिंग में नहीं था.. नही तो पता नहीं क्या होता?  कहा जा रहा है कि आतंकियों ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस बिल्डिंग पर कब्जा जमाया. पहले तो उनका इरादा सैन्य काफिले पर घात लगाकर हमला करने का था, लेकिन जब ये रणनीति विफल हो गई तो आतंकियों ने बिल्डिंग में चटाई और फर्नीचर में आग लगा दी और जैसे ही बाग बुझाने वाली गाड़ी पहुंची, आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी. लेकिन इस सबके बाद भी सेना ने सब्र से काम किया और ऑपरेशन के लिए बनाई गई रणनीति पर अमल करते हुए आतंकियों को थकाकर ठिकाने लगाया.

राजीव रंजन एनडीटीवी में एसोसिएट एडिटर हैं.

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