रेलमंत्री सुरेश प्रभु के बजट भाषण से पहले जो सबसे बड़ा सवाल लोगों के ज़ेहन में था, वो ये कि कितनी नई ट्रेनों का ऐलान होगा। किस राज्य को ज़्यादा और किसे कम ट्रेनें मिलेंगी। दरअसल रेल बजट को देखने का ये पैमाना पिछले कई सालों से बना हुआ था। हर बार बजट के बाद विपक्ष के नेता अगर सरकार पर किसी बात को लेकर सबसे ज़्यादा निशाना साधते तो वो कि ट्रेनें देने में न्याय नहीं किया गया।
सियासत में क्षेत्रीय दलों का कद बढ़ा है और वो अपने राज्यों को ट्रेनें नहीं मिलने से नाराज़गी दिखाते थे, लेकिन इस बार ये मुद्दा सरकार ने विपक्ष से छीन लिया। वहीं टिकटों की कीमत अलग न बढ़ी, न घटी, तो ये मुद्दा भी नहीं उठा। सुरेश प्रभु के बजट में बदलाव पर ज़ोर दिखता है, लेकिन ये पहला रेल बजट नहीं है, जिसमें बदलाव पर ज़ोर हो।
साफ़-सफ़ाई के दावे हर रेल बजट में होते हैं। मैं रेल में सफ़र करता हूं और मुझे इन दावों के अब तक हक़ीकत बनने का इंतज़ार ही है। जनवरी महीने में पटना से दिल्ली आ रहा था। ट्रेन करीब आठ घंटे लेट थी। बाथरूम का बुरा हाल था। साफ़-सफ़ाई को लेकर एक नंबर ज़रूर लगा दिया गया है, लेकिन उसपर फ़ोन करने का कोई फ़ायदा नहीं। ट्रेनें और ज़्यादातर रेलवे स्टेशन आज भी गंदे हैं, और इसे काग़ज़ों पर नहीं, ज़मीन पर साफ़ करने की ज़रूरत हैं। अगर सुरेश प्रभु ऐसा कर सके, तो ये सबसे बड़ी सफ़लता होगी।
वहीं, टिकटों का रिज़र्वेशन अब चार महीने पहले होगा, इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि दलालों पर लगाम लगेगी। अभी ये सीमा दो महीने है और उससे पहले तीन महीने थी। तीन महीने से दो महीने करने के पीछे तर्क दिया गया था कि दलालों पर लगाम लगेगी, क्या लगाम लगी? दरअसल रिज़र्वेशन के महीने कम या ज़्यादा करने से दलालों पर लगाम नहीं लगेगी। इसके लिए सिस्टम को बदलना होगा। अब सुरेश प्रभु ने जिस तरह बजट को बदला है उससे उम्मीद करनी चाहिए कि रेलवे भी बदलेगा।
This Article is From Feb 27, 2015
रेल बजट का अंदाज़ बदला, क्या रेलवे बदलेगा?
Mihir Gautam, Rajeev Mishra
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Updated:फ़रवरी 27, 2015 00:05 am IST
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Published On फ़रवरी 27, 2015 00:02 am IST
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Last Updated On फ़रवरी 27, 2015 00:05 am IST
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