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This Article is From Sep 12, 2018

राफेल डील: क्या पीएम को खुद सौदा तय करने का अधिकार?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 12, 2018 00:33 am IST
    • Published On सितंबर 12, 2018 00:33 am IST
    • Last Updated On सितंबर 12, 2018 00:33 am IST
फ्रांस की कंपनी दास्सो से खरीदे जाने वाले रफाल लड़ाकू विमान को लेकर फिर से अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण ने प्रेस कांफ्रेंस की है. तीनों की यह दूसरी प्रेस कांफ्रेंस है. पहले सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए सौदे का डिटेल नहीं दिया जा सकता है, लेकिन बाद में याद दिलाया गया कि रक्षा राज्य मंत्री तो नवंबर 2016 में ही संसद में रफाल विमान का दाम बता चुके थे. हाल ही में अरुण जेटली ने ब्लॉग लिखकर कांग्रेस को घेरा है. उसके बाद विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने भी लेख लिखा है. हम उन लेख में उठाए गए प्रश्नों और दावों के बारे में संक्षेप में बात करेंगे, लेकिन पहले सुनते हैं कि प्रशांत भूषण ने आज प्रेस कांफ्रेंस क्यों की.

अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण के सवाल पर सरकार से किसी ने भी ब्लॉग नहीं लिखा है. अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में सिर्फ कांग्रेस से पूछा है कि 10 साल तक रफाल की डील पर प्रक्रिया चलती रहती है. क्या इससे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं हुआ. क्या यह देरी बोफोर्स की तरह किसी लेनदेन के मौके की तलाश के कारण हुई. जाहिर है जेटली इस देरी को राष्ट्रीय सुरक्षा से हुए समझौते से जोड़ते हैं तो जेटली को यह भी बताना चाहिए कि जिस वायुसेना को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए 126 रफाल चाहिए थे, उसे अब 36 क्यों चाहिए. जो सवाल प्रशांत भूषण उठा रहे हैं. 

सरकार की तरफ से भी जो दाम बताए गए हैं उसमें समय समय पर अंतर देखा गया है. मगर अरुण जेटली इन अंतरों को छोड़ राहुल गांधी के बयानों में अलग अलग दामों का मुद्दा उठाया है. दूरदर्शन को दिए इंटरव्यू में डील साइन होने के तीन दिन बाद तब के रक्षा मंत्री कहते हैं कि उन्हें जानकारी नहीं है. 10 अप्रैल 2015 को डील साइन होने के दो दिन पहले तब के विदेश सचिव कहते हैं कि हिन्दुस्तान एयरनोटिक्स लिमिटेड डील में शामिल है. दास्सो कंपनी के सी ई ओ का भी बयान छपता है कि एच ए एल प्रक्रिया में शामिल है. लेकिन जब डील साइन होती है तो पहले की सारी प्रक्रिया बदल जाती है. यह सब प्रशांत भूषण ने पहले के प्रेस कांफ्रेंस में बताया था. अब रक्षा मंत्री ने इस पर खुद से कभी जवाब नहीं दिया. उनकी जगह वित्त मंत्री ने ब्लाग लिखा. 15 सवाल कांग्रेस से पूछे. 

ब्लॉग में जेटली बता रहे हैं कि यूपीए के समय 126 एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रक्रिया एक दशक तक चली. फिर वो यह ब्लॉग में नहीं बताते हैं कि 126 से बात 36 पर कैसे आ गई, जो सवाल प्रशांत भूषण पूछ रहे हैं. जेटली अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि 10 अप्रैल 2015 को भारत और फ्रांस की सरकार ने साझा बयान जारी किया था और भारत ने तय किया कि पहले से बेहतर शर्तों पर 36 रफाल खरीदे जाएंगे. 13 मई 2015 को डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल ने मंज़ूरी दे दी और उसके बाद व्यापक प्रक्रिया से गुजरते हुए 23 सितंबर 2016 को डील साइन होती है.

प्रशांत भूषण तो यही पूछ रहे हैं कि क्या एयरफोर्स ने लिखकर दिया कि 126 की जगह हमें 36 चाहिए. क्या इसके लिए जो कमेटियां बनी हैं उनमें फिर से विचार हुआ. जेटली के ब्लॉग से ज़ाहिर होता है कि साझा घोषणा पत्र के एलान के बाद एक महीने बाद डिफेंस एक्विज़शन काउंसिल मंज़ूरी देती है. तो क्या प्रशांत भूषण सही कह रहे हैं कि सबको अंधेरे में रखकर साझा घोषणा पत्र में एलान किया गया. 29 अगस्त के ही ब्लॉग में जेटली लिखते हैं कि क्या राहुल गांधी को पता था कि 2007 में कितना दाम था. क्या उन्हें पता था कि इसकी शर्तों में दाम बढ़ने की बात शामिल थी. जिसके अनुसार 2015 में जब डील साइन किया तो प्रति जहाज़ दाम बढ़ जाते. एनडीए ने 9 प्रतिशत कम दाम पर सौदा किया है.

आप देखेंगे कि जेटली भी अपने ब्लॉग में नहीं बताते कि हैं कि एक जहाज़ की क्या कीमत है. जहाज़ का दाम पूछा जा रहा है तो बिना दाम बताए जेटली कहते हैं कि एनडीए के समय 9 प्रतिशत कम दाम पर रफाल खरीदा गया. क्या उन्हें मालूम था कि 2007 का दाम क्या है, अगर मालूम है तो ब्लॉग में क्यों नहीं लिखा. जबकि वे यही सवाल राहुल गांधी से ब्लॉग में करते हैं कि क्या उन्हें 2007 में तय कीमत का पता है. जेटली इसका जवाब देते हैं कि डील में कोई प्राइवेट कंपनी कैसे आ गई. कहते हैं कि यूपीए के समय ही शर्त बनी थी कि जो मूल निर्माता कंपनी है वो भारत में कलपुर्ज़ों की आपूर्ति या रखरखाव के लिए खुद से भारतीय कंपनी को साझीदार बना सकती है. इसका सरकार से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन इसका जवाब नहीं मिला कि रफाल बनाने वाली डास्सो एविशन कंपनी क्यों एक ऐसी कंपनी को साझीदार बनाएगी, जिसका इस क्षेत्र में अनुभव काफी नया है और आरोप है कि वह कंपनी कुछ ही महीने पहले वजूद में आई है.

जेटली इस पहलू को नहीं छूते हैं. जेटली ने अपने ब्लॉग में इस बात का जवाब दिया है कि डील साइन से पहले 14 महीने तक Price Negotiation Committee और Contract Negotiation Committee ने इस पर विचार-विमर्श किया है. कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी की मंजूरी ली गई. अब आते हैं ऑफसेट कंपनियों के चुनाव की बात पर. रिलायंस ने अपना जो जवाब मीडिया को भेजा था, उसमें लिखा था कि डास्सो एविएशन उसे अकेले 30,000 करोड़ का ठेका नहीं दिया है. कितना काम मिलेगा यह अभी तय नहीं हआ है. डास्सो एविएशन ने 100 से अधिक कंपनियों को काम देने के लिए इशारा किया है. इसमें एचएएल और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड दोनों है.

जेटली के जिस ब्लॉग को आधार बनाकर एमजे अकबर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है उसमें हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड का नाम नहीं है. अकबर लिखते हैं कि तथ्य यह है कि 72 ऐसी कंपनियां हैं जिनमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और डीआरडीओ भी है और प्राइवेट कंपनी टाटा भी है. इन 72 कंपनियों में 30,000 करोड़ का ऑर्डर बंटेगा. क्या राहुल गांधी यह समझते हैं कि 72 कंपनियों को मिलने वाले 30,000 करोड़ के काम से कोई कंपनी 45000 करोड़ का मुनाफा कैसे कमा सकती है.

रिलायंस के जवाब में एचएएल का नाम है. एमजे अकबर के लेख में एचएएल का नाम नहीं है. फिर रिलायंस के जवाब में कंपनियों की संख्या 100 है और सरकार के जवाब में कंपनियों की संख्या 72 है. किसको सही मालूम है यह इस बात पर निर्भर करता है कि सवाल पूछने पर सबसे पहले मानहानि का दावा कौन करता है. हमारे साथ हैं यशवंत सिन्हा जिनसे हम बात करेंगे. 

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