भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद से भी बड़ा मसला है बातचीत। इसके होते ही मान लिया जाता था कि यही होना बाकी थी अब बाकी भी हो जाएगा। जब हम बातचीत की बहस से बोर हो जाते हैं तो क्रिकेट पर शिफ्ट हो जाते हैं। फिर क्रिकेट को लेकर बातचीत करने लगते हैं। आप भले ही दुनिया घूम लीजिए लेकिन पाकिस्तान घूम फिर कर आ ही जाता है। लेकिन बिना मिले दोनों मुल्कों के प्रधानमंत्रियों के बीच कुछ तो अच्छा बन रहा है। मीडिया के सामने भले न बन रहा हो मगर कुछ तो दिख ही जाता है।
जब पेरिस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ इस तरह से बैठे बतियाते देखे जाते हैं जैसे घर की कोई बात हो रही हो। भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच इस तरह बतियाना कब भावपूर्ण नहीं था। भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मिलने बतियाने की तमाम तस्वीरें आपने देखी होंगी। सबमें दोनों के नेता तने तने मुस्कुराते मिलेंगे लेकिन इस तरह चुक्का मुक्की टाइप बैठने की यह तस्वीर दोनों देशों के इतिहास में दुर्लभ है।
वैसे दोनों ने बताया नहीं कि क्या बात हुई लेकिन बातचीत के अंदाज़ से ही लग रहा था कि वे बताने के मूड में नहीं हैं। ग्लोबल समिट में मिलते मिलते दोनों एक दूसरे को समझने जानने लगे हैं। मित्र से हो गए हैं। बल्कि मीडिया को यही बताया गया कि इस संक्षिप्त मुलाकात में दोनों ने यही बात की कि हमें बातचीत करनी चाहिए।
इसी मुलाकात के छह दिन बाद जब रविवार शाम ट्वीटर पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने एक तस्वीर ट्वीट की तब मीडिया और सोशल मीडिया दोनों चौंक गया। थाईलैंड की राजधानी बैंकाक से यह तस्वीर आई थी। इस तस्वीर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट नसीर ख़ान जंजुआ हैं। इस एक तस्वीर के दम पर न जाने कितने पुराने लेख पढ़ लिए गए। सभी पुराने बयानों को याद किया गया और याद दिलाया जाने लगा। भारत पाकिस्तान में इस तस्वीर ने सनसनी फैला दी। इस मुलाकात के बाद एक साझा बयान भी जारी हुआ जिसमें कहा गया कि बातचीत खुलकर हुई, सकारात्मक माहौल में हुई।
भारत पाकिस्तान समस्या को बीस बीस साल से रिपोर्ट कर रहे पत्रकारों को भी इस मुलाकात की भनक नहीं लगी। दोनों मुल्कों के सुरक्षा सलाहकारों को मुस्कुराते देख सबकी हंसी ग़ायब हो गई। साझा बयान में कहा गया कि दोनों सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात दोनों नेताओं के विज़न से प्रभावित थी कि दक्षिण भारत में शांति स्थायित्व और समृद्धि कायम हो।
शांति, सुरक्षा, आतंकवाद, जम्मू और कश्मीर और अन्य मुद्दों को लेकर भी बातचीत हुई जिसमें एल ओ सी पर शांति का मसला भी शामिल था। इस बात को लेकर सहमति बनी कि इस तरह की सकारात्मक मुलाकातें जारी रहेंगी। इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया है कि खुलकर बात हुई, आगे भी बात करेंगे। साझा बयान में जम्मू कश्मीर देखकर जानकारों को उफा का साझा बयान याद आ गया। इसी साल जुलाई में रूस के उफा में दोनों प्रधानमंत्रियों की बातचीत हुई थी और जो साझा बयान जारी हुआ था उसमें जम्मू कश्मीर नहीं था।
हम जल्दी से देख लेते हैं कि 10 जुलाई को उफा में जारी हुआ साझा बयान क्या था। यह बयान दोनों मुल्कों के विदेश सचिवों की तरफ से जारी हुआ था। दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि शांति और विकास सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत और पाकिस्तान दोनों की है। इसके लिए दोनों सभी विवादित मसलों पर बातचीत को तैयार हैं... दोनों नेताओं ने हर तरह के आतंकवाद की भर्त्सना की और इस बात पर सहमत हुए कि दक्षिण एशिया से आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए एक दूसरे का सहयोग करेंगे... दोनों के बीच जो सहमति बनी वो इस तरह से है-
- आतंकवाद से जुड़े सभी मुद्दों पर दिल्ली में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच मुलाक़ात हो
- इसके बाद बीएसएफ़ के महानिदेशक और पाकिस्तान रेंजर्स के महानिदेशक के बीच मुलाक़ात हो...
- उसके बाद दोनों देशों के DGMO की मुलाक़ात हो...
- एक दूसरे के कब्ज़े में मछुआरों को नाव समेत 15 दिन के अंदर छोड़ने का फ़ैसला किया गया
- धार्मिक पर्यटन को बेहतर करने के तरीके बनाया जाए.
- दोनों पक्ष मुंबई आतंकी हमलों की सुनवाई तेज़ किए जाने के रास्तों पर बातचीत के लिए सहमत हुए...
जम्मू कश्मीर नहीं था। जम्मू कश्मीर आ गया है। उफा में ही प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री मोदी को 2016 में होने वाले सार्क सम्मेलन के लिए पाकिस्तान आने का न्योता दोहराया... प्रधानमंत्री मोदी ने इस न्योते को स्वीकार कर लिया है। तो क्या प्रधानमंत्री पाकिस्तान यात्रा की तैयारी कर रहे हैं लेकिन सार्कसम्मेलन तो नवंबर 2016 में होना है। तब तक क्या क्या हो जाएगा कोई नहीं जानता। दस साल के अपने कार्यकाल में यूपीए के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान नहीं जा सके। लेकिन पाकिस्तान को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को बुला लिया। यह अपने आप में बड़ी घटना थी।
पूरी दुनिया इस मुलाकात को हैरत से देखने लगी। किसी ने नहीं सोचा होगा कि मोदी अपना पहला दिन पाकिस्तान की मेज़बानी से शुरू करेंगे। जानकारों ने लिखा कि मोदी ने पहले ही दिन इरादा ज़ाहिर कर दिया है कि वे दक्षिण एशिया में कोई बड़ी पहल करने वाले हैं। वे अपने भाषणों में एशिया की सदी का बार बार ज़िक्र करते भी है। शिवसेना को पाकिस्तान से आपत्ति थी और एम डी एम के को श्रीलंका से लेकिन मोदी ने अपना पहला कदम चल दिया था।
प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने एन डी टी वी से कहा भी था कि हमने और वाजपेयी ने जहां से छोड़ा था वहां से शुरू करने का इरादा है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों सरकारों के पास मज़बूत बहुमत है। इसके दम पर हम अपने संबंधों में नई तारीख जोड़ सकते हैं। यह एक महान लम्हा और महान मौका है। 2008 के मुंबई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत बंद हो गई थी। 2014 के चुनाव के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हो गई थी।
दोनों मिलते रहे। इस मुलाकात को भारत पाकिस्तान की ज़मीन पर औपचारिक रूप देने की तमाम कोशिशें अलग अलग कारणों से पटरी से उतरती रहीं लेकिन दुनिया के कई देशों की यात्राओं के बीच पाकिस्तान को लेकर भी कुछ गंभीर प्रयास हो रहा है यह मीडिया वालों को पता नहीं चला। उन्हें इस बात का अफसोस भी है कि सरकार ने उन्हें भी भनक नहीं लगने दी। कुछ न्यूज़ एंकर क्रिकेट मैच को लेकर राष्ट्रवादी हुए जा रहे थे। सरकार को घेरने में लगे थे कि मैच कैसे हो सकता है जब सीमा पर गोली चल रही हो। मैच कैसे हो सकता है जब सीमा पर जवान शहीद हो रहे हों। मुझे उम्मीद है वो आज की रात इस पहल का स्वागत कर रहे होंगे।
खैर उनके पास अपनी भड़ास निकालने का एक मौका अब भी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 9 तारीख को पाकिस्तान जा रही हैं। अफगानिस्तान पर हार्ट आप एशिया कांफ्रेंस में वो हिस्सा लेने जा रही हैं। वहां वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से भी मुलाकात करेंगी। यह भी कहा जा रहा है कि दोनों पक्ष इस बार मीडिया से दूर ही रहने का प्रयास करेंगे ताकि घरेलु दबाव को टाला जा सके। सुषमा स्वराज लौट कर संसद में बयान भी देने वाली हैं।
अभी तक भारत कहता रहता था कि पाकिस्तान में असली सत्ता सेना के हाथ में हैं। आतंकवाद को राज्य शह देता है। अब इस सवाल पर भारत की क्या सोच बदली है साफ नहीं है क्योंकि मीडिया को दूर रखा जा रहा है इसलिए हम बहुत ज़्यादा नज़दीक नहीं जा रहे हैं। पहले के उठाये सवालों को उठाकर छोड़ दे रहे हैं। बैंकाक की मुलाकात की तस्वीर ने विपक्ष को सक्रिय कर दिया है। तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आईं हैं।
पाकिस्तानी मीडिया में भी दोनों मुल्कों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों को लेकर उत्साह दिखा है। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार है डान। सबसे पुराना अख़बार भी है। डान की रिपोर्ट है कि ब्रिटेन और अमरीका ने दोनों नेताओं से कहा था कि विवादित मुद्दों पर बातचीत फिर से शुरू होनी चाहिए। बैंकाक में दोनों देशों के विदेश सचिवों की भी मुलाकात हुई। जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल जंजुआ का होना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें सेना का करीबी माना जाता है। पहले यह मुलाकात सिंगापुर में होनी थी लेकिन बाद में बैंकाक को चुना गया। निजी बातचीत में इस्लामाबाद में राजनयिक बहुत उत्साहित नहीं हैं। वे किसी बड़े नतीजे को लेकर सतर्क हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने डान को बताया है कि बातचीत के लिए बातचीत है।
तो क्या ये बातचीत के लिए बातचीत है। वैसे भी बातचीत शुरू तो हो तभी अंजाम के बारे में अच्छा बुरा कहा जाए। The Nation अखबार ने भी इस मुलाकात का समर्थन किया है। The Express Tribune की हेडलाइन है।
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच चली चार घंटे की बातचीत को लेकर कुछ दूसरे सवाल किये हैं। ओमर ने ट्वीट किया है कि-
उमर का ट्विटर हैंडल -
- अगर पाकिस्तान को आतंक पर बात करने के लिए कहा गया तो क्या भारत को भी कश्मीर पर बात करने के लिए कहा गया, क्योंकि उफा में जम्मू कश्मीर का ज़िक्र नहीं था।
- स्पष्ट है कि पेरिस की मुलाकात शिष्टाचार से ज़्यादा की मुलाकात थी। भारत पाकिस्तान के बीच संवाद की प्रक्रिया शुरू होते देख अच्छा लगा है।
- शायद एक दूसरे की राजधानियो और मीडिया की बनाई उम्मीदों से दूर चुपचाप आगे बढ़ने का बेहतर तरीका हो।
- अब चुनौती यह है कि जानबूझ कर पटरी से उतारने की कोशिशों के बाद भी भारत पाक बातचीत की प्रक्रिया चलती रहे।
अब आपको याद दिला देते हैं कि 2013 के साल में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के बारे में क्या बोल रहे थे। 11 अगस्त 2013 को हैदराबाद की रैली में उन्होंने कहा था कि अब जब इस हफ्ते पाकिस्तान की सेना ने हमारे जवानों को मारा है, मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने तो वादा किया था कि ऐसी चीज़ों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। क्या कारण है कि 125 करोड़ का देश चुपचाप बर्दाश्त कर रहा है जबकि पाकिस्तान रोज़ अपने वादे तोड़ रहा है।
सोमवार को श्रीनगर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। छह जवान घायल हो गए। लेकिन अभी चुनाव नहीं है। जब चुनाव थे तब रैलियों में पाकिस्तान को ललकारते ही जोश आ जाता था लेकिन सत्ता में आते ही दायित्व बदल जाता है। उन बयानों को दोहराया जा सकता है लेकिन पड़ोसी देश के साथ संबंधों को सुधारने के प्रयास चुनावी मजबूरियों की भेंट न ही चढ़ें तो अच्छा है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सभी प्रधानमंत्री को पाकिस्तान के मामले में जनमत के दबाव से गुज़रना पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी को भी इस इम्तहान से गुज़रना होगा। एशिया के इलाके में उनकी नीतियों की परीक्षा पाकिस्तान के संदर्भ में भी की जाएगी।
मोदी सरकार के आने से पहले ही कई नेताओं ने बात बात में पाकिस्तान भेज देने की हुंकार भरी थी। पाकिस्तान को लेकर इतने बयान आए थे। बिहार में बीजेपी हारी तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे से लेकर बिहार में बीजेपी हारेगी तो चीन और पाकिस्तान खुश होंगे। अब उन लोगों को कुछ दिन सोशल मीडिया से दूर रहना चाहिए। बल्कि पाकिस्तान भेजने की ट्रैवल एजेंसी बंद कर देनी चाहिए। उन्हें भेजने के लिए कोई और मुल्क खोज लेना चाहिए। क्योंकि अब पाकिस्तान जाने का मतलब है भारत पाकिस्तान संबंधों को बेहतर करना।
- मंत्री गिरिराज सिंह जी अब क्या करेंगे। पाकिस्तान की जगह विरोधियों को बैंकाक भेजेंगे या इस पहल का समर्थन करेंगे।
- मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी भी बीफ खाने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कर रहे थे।
- मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी बीफ खाने वालों को पाकिस्तान भेज रहे थे।
- योगी आदित्यनाथ ने शाहरूख ख़ान को कहा था कि वे पाकिस्तान ही चले जाएं।
आप सबको बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि न तो आप पाकिस्तान जा रहे हैं न आपके विरोधी जा रहे हैं
बल्कि जा रही हैं भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज। यही होता है जिसकी किस्मत में जहां जाना होता है वहीं जाता है। किसी के भेजने से कोई पाकिस्तान नहीं चला जाता। उम्मीद है सुषमा स्वराज की इस यात्रा के बाद भारत में पाकिस्तान की कुछ प्रतिष्ठा बढ़ेगी। वहां जाना इतना बुरा नहीं माना जाएगा।
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