विज्ञापन
This Article is From Apr 13, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : नाम बदलने की सियासत कब ख़त्म होगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 13, 2016 22:29 pm IST
    • Published On अप्रैल 13, 2016 21:35 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 13, 2016 22:29 pm IST
गांव जैसा क्या बचा था कि गुड़गांव के गुड़गांव नहीं रहने पर कई लोग भावुक हो रहे हैं। गुड़गांव ही तो गुड़गांव नहीं रहा, वहां के मॉल, सुपर मॉल, होटल, अपार्टमेंट सब तो हैं ही। वहां अगर कुछ नहीं था तो गांव ही नहीं था। मगर गांव के बदले ग्राम आ गया। शहरों पर दावेदारी हमारे गांव इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाले। आप गांवों की ज़मीन लेकर जितनी भी स्मार्ट सिटी बसा लीजिए, कम से कम नामों पर कॉपीराइट तो गांव का ही होना चाहिए। हमारे सहयोगी परिमल ने वहां जाकर देखा कि आज भी लोग गुड़गांव विलेज के नाम से जी रहे हैं। गांव भी और विलेज भी। हिन्दी अंग्रेजी का डबल यूज और सहअस्तित्व कहां मिलेगा आपको। लेकिन अब तो गांव भी गया और विलेज भी। गुड़ तो गया ही। हरियाणा सरकार ने गुड़गांव का नाम गुरुग्राम कर दिया है। किसी हिन्दी अधिकारी को देखना चाहिए कि कहीं ये लोग गुरुग्राम विलेज न लिखने लगें। मुआवज़ा खत्म होने के बाद अपनी पहचान की कसक को समझने के लिए आपको अतिरिक्त रूप से संवेदनशील होना होगा। कुछ भी मिला हो मगर बाप दादों के दौर के नाम और यादें परेशान तो करती ही होंगी। जैसे इन अपार्टमेंट में बसने के नाम पर फंस गए लोगों को अपना गांव तो याद आता ही होगा। परिमल को गुड़गांव विलेज के निवासियों ने बताया कि वे काफी खुश हैं क्योंकि बच्चों को इतिहास का पता रहेगा।

काश कोई इतिहास को बड़ों के लिए भी सुरक्षित रखता, जिनके कारण इतिहास को लेकर इतना झगड़ा होता रहता है। क्या सरकार इस गांव का नाम गुरुग्राम रखकर मनोरंजक विवाद से बच सकती थी। बाकी शहर का नाम गुड़गांव ही रहता। मनोरंजक विवाद इसलिए कहा कि ट्वीटर और फेसबुक पर गुरुग्राम को लेकर खूब हा हा ही ही हो रही है। इस चक्कर में लोग मेवात का नाम नूंह किये जाने को लेकर भूल से गए हैं। ऋषि कपूर को नूंह के साथ हुंह की तुकबंदी का ख़्याल आया है। जो भी है गुड़गांव गुड़गांव नहीं रहा। उसे गुरुग्राम होना ही होगा। गुड़गांव उपायुक्त की साइट पर भी लिखा हुआ है कि ज़िले का नाम गुरु द्रोणाचार्य के नाम से आता है। पांडवों में सबसे बड़े युद्धिष्ठिर ने गुरुदक्षिणा के तौर पर द्रोणाचार्य को एक गांव दान में दिया था। इसलिए इसका नाम गुरु ग्राम पड़ा जो आगे चलकर गुड़गांव हो गया। यह ज़िला महाभारत के समय से मौजूद है। बात हो रही है एक गांव के पहचान की, गजट में लिख दिया गया कि यह ज़िला महाभारत के समय से ही है। क्या उस वक्त ज़िला होता भी था तो लगे हाथ पहले महाभारत काल के कलेक्टर का नाम भी लिख देते। खैर ज़िला के गजट में लिखा है कि रेलवे रोड के पश्चिम तरफ द्रोणाचार्य का एक तालाब था जो आज भी है। गुड़गांव शहर से असली गुड़गांव डेढ़ किमी दूर है जहां शीतला माता का मंदिर है। शीतला माता का मंदिर काफी प्रसिद्ध स्थान है। यहां बिहार से आए बड़ी संख्या में लोग छठ पूजा भी करते हैं।

गुड़गांव के गजट में लिखा है कि असली गुड़गांव गुड़गांव शहर से डेढ़ किमी दूर है। फिर पूरे गुड़गांव का नाम क्यों बदला गया। क्या गुड़गांव का विस्तार सिर्फ मूल गुरु ग्राम की ज़मीन पर हुआ या इस गुड़गांव के विस्तार ने कई गांवों की ज़मीन और अस्तित्व को लील लिया। गुड़गांव के भी बच्चों की तरह पुकार के कई नाम हैं। कभी साइबर सिटी तो कभी मिलेनियम सिटी तो कभी गुड़गांव।

आप जिस गुड़गांव ज़िले को जानते हैं उसके लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभाएं आती हैं। पूरे ज़िले में 246 गांव आते हैं। गुड़गांव का ज़्यादातर विस्तार गुड़गांव विधानसभा और बादशाहपुर विधानसभा के गांवों की ज़मीन पर हुआ है। डीएलएफ का एक हिस्सा बादशाहपुर विधानसभा में आता है और एक हिस्सा गुड़गांव विधानसभा में आता है। गुड़गांव विधानसभा में गुड़गांव के अलावा पांच और गांव आते हैं जिनके नाम हैं, वज़ीराबाद, चकरपुर, सुखराली, कनहई सिलोकड़ा। गुड़गांव विधानसभा शहरी माना जाता है, पिछले विधानसभा में यहां का मतदान प्रतिशत था 69.2 प्रतिशत था। तब भी गुड़गांव की सुविधाओं की हालत खस्ता ही नज़र आती है।

आधुनिक भारत में नाम बदलने पर प्राचीन भारत के इतिहास और मिथकों की काफी चलती है। ये इसलिए बताया कि आगरा और दिल्ली वाले गुड़गांव पर दावा न करें जबकि जिला की वेबसाइट पर जानकारी है कि अकबर के समय में यह सूबा दिल्ली और आगरा में आता था। खैर अब तो अकबर भी ग्रेट नहीं रहे तो गुड़गांव क्या रहेगा। लोग इतना इमोशनल क्यों है। पहले भी कितनी बार नाम बदले हैं। कलकत्ता हमारी आंखों के सामने कोलकाता हुआ। बंबई भी हमारी आंखों के सामने मुंबई हो गया। बंगलोर जब बंगलुरु हुआ तो हमने छोटी उ और बड़ी ऊ को लेकर काफी मारामारी की। यूपी में कुछ ज़िले हैं जिनके नाम मायावती के आने पर बदल जाते हैं और जाने पर फिर बदल जाते हैं। जैसे पहले अमेठी को छत्रपतिशाहू जी महाराजनगर रख दिया था फिर वो अमेठी हो गया।

ज़रूरी नहीं कि किसी जगह का प्रचलित नाम बदलने के लिए वहां कोई उस नाम का गांव हो ही या कोई वहां का हो। सत्ता में जो होता है वो कुछ भी कर सकता है। यूपी के शामली को प्रबुद्ध नगर कर दिया गया था। शुरू में नामों के बदलने पर हंगामा होता है लेकिन जल्दी ही लोग सेटल कर जाते हैं। गुड़गांव वाले भी कर ही जाएंगे। जब मिलनेनियम सिटी कहा गया तब तो वे गुड़गांव को लेकर भावुक नहीं होते थे। अब गुरु ग्राम को लेकर क्यों होने लगे हैं। गुरु ग्राम करने का फायदा क्या हुआ। क्या वाकई इससे इतिहास की वापसी हो जाती है। नाम न बदलता तो गुड़गांव को लेकर भी इतने लतीफे रचे जा सकते हैं पता नहीं चलता। हमारी जनता वाकई क्रिएटिव है।

इसी गुड़गांव में रैपिड मेट्रो रेल लाइन है। इसके स्टेशनों का नाम सुनकर तो यहां के लोगों की जुबान भी लड़खड़ा जाती होगी। क्या ये सारे नाम गुरु ग्राम हो जाने से मिट जाएंगे। फेज थ्री स्टेशन, माइक्रोमैक्स मौलसरी एवेन्यु, इंडस इंड बैंक साइबर सिटी, वोडाफोन बेलवेडियर टावर, फेज़ टू। स्टेशनों के नाम भी दुकान की तरह हो गए हैं। प्रायोजक को भी स्टेशन मिल सकता है। क्या पता कल शहर ही मिल जाए और वोडाफोन गुरु ग्राम हो जाए। फिर लोग कंफ्यूज हो जाएंगे कि गुरु द्रोण का गुरुदक्षिणा में गांव वोडाफोन ने दिया था या पांडवों ने। वैसे मेट्रो की एक और लाइन है जिसे येलो लाइन कहते हैं। जो दिल्ली के जहांगीरपुरी से शुरू होकर गुड़गांव के हुडा सिटी सेंटर तक जाती है। दिल्ली से आप आएंगे तो अर्जन गढ़ के बाद एक स्टेशन पड़ता है जिसका नाम है गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन। यहां पर 1955 से एक कॉलेज भी है जिसका नाम गुरु द्रोणाचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज है। गुरुओं में गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर बने इस कॉलेज का स्थान तो आईआईटी से भी ऊंचा होना चाहिए था। यहां बने द्रोणाचार्य मंदिर से प्रेरणा पाकर इन गुरुओं ने एक से एक अर्जुन पैदा किये होंगे। जो भी है इससे पता चलता है कि स्थानीय परंपरा में इन नामों का वजूद तो है। पर क्या जब पांडवों ने इस गांव को दान में दिया होगा तो गुरु ग्राम ही नाम होगा या कुछ और नाम रहा होगा। अगर मूल में ही जाना है तो जिस नाम का गांव दान में दिया गया था उसी का पता लगाया जाए।

गुरु ग्राम को लेकर ट्वीटर पर तुकबंदिया चल रही हैं। इंस्टाग्राम, टेलिग्राम किलोग्राम मिलीग्राम। रहने की जगह भी ग्राम, तौलने की ईकाई भी ग्राम। मैं तो आज की शाम बहुत कंफ्यूज़ हूं। क्या इंस्टाग्राम बनाने वाला भारतीय गांवों को जानता था, क्या किलोग्राम की मात्रा तय करने वाला किसी प्राचीन गांवों का निवासी था। अब ये सब हम प्राइम टाइम में बताने लगे तो आप तो चैनल बदल लेंगे लेकिन हम कहीं और भर्ती हो जाएंगे इलाज के लिए। वैसे भारतीय संस्कृति वाले अगर बहुत थके न हों तो उन्हें कुछ और नाम बदलने के लिए दे सकता हूं जिन्हें पुकारने में मुझे बड़ी दिक्कत आती है। ये सारे नाम गुड़गांव के अपार्टमेंट के ही हैं।

Hibiscus luxury apartments, DLF skycourt, M3M golf estate, Malibu towne, Ambience Caitriona, Palm spring plaza, Spaze, Aralias, Hamilton Court, The World Spa, The Laburnum Complex। कुछ नामों को पुकारने के लिए आपको कम से कम अंग्रेज़ी में स्नातक होना होगा और इन सबको बदलने के लिए संस्कृत में स्नातक होना तो अनिवार्य है ही। वाटिका सिटी, निर्वाणा कंट्री, गुड़गांव वन जैसे नाम भी हैं जिन्हें सुनकर लगता है कि हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत का मिश्रण हो गया है। बाकी नाम तो मिश्रण की शर्तों को पूरा किये बिना हम पर फ्रांस और स्पेन से लाकर थोप दिये गए हैं। होंडा सिटी शहर है या कार है। कार का नाम होंडा सिटी क्यों है। फिर हुडा सिटी क्या है। स्मार्ट सिटी के लिए क्या हम संस्कृत और हिन्दी से नाम नहीं चुन सकते थे। पता नहीं हम कैसे इतनी उपेक्षा बर्दाश्त कर रहे हैं। एक बार जरा हम अपार्टमेंट, गांव और शहरों के नाम बदलने से फ्री हो लें तो ज़रूरी है कि हम सब मिलकर कारों के नामों के भारतीयकरण में लग जाएं ताकि किसी को न लगे कि हम ख़ाली बैठना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए बलिनो, स्विफ्ट डिज़यार, रिनो क्विड, क्रेटा, लम्ब्रेटा, एक्सेंट, ब्रियो, पसाट।

क्या आप औरंगज़ेब रोड का नाम बदल कर एपीजे कलाम करने से ज्यादा याद करते हैं, कनाट प्लेस का नाम राजीव चौक करने के बाद आप राजीव चौक पुकारते हैं या कनाट प्लेस। द्रोणाचार्य का नाम जब भी आता है एकलव्य का भी आएगा। उसके साथ की नाइंसाफी भी भारत में एक बड़े तबके को चुभती है। वो अपनी राजनीतिक पहचान की व्याख्या करते वक्त हर दूसरे लेख और गीत में याद करता है दलितों आदिवासियों की प्रतिभा को द्रोणाचार्यों ने किस तरह अंगूठा मांगकर कुचला है पर संस्कृति उसकी होती है जिसकी सरकार होती है। कम से कम नाम बदलने के मामले में तो होती ही है। लेकिन खेलों के कोच को दिया जाने वाला गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड भी तो कम बड़ा नहीं माना जाता। इसलिए नाम बदलने के फैसले को इस रूप में देखिये कि इसके बहाने कितना कुछ आप पलट कर देख सकते हैं। जान सकते हैं। हंसी मज़ाक के अलावा। इसी भगदड़ में कुछ लोग हैं जो धड़ाधड़ा गुरुग्राम नाम से वेबसाइट के लिए डोमेन रजिस्टर करा रहे हैं तो कुछ पहले से कराकर बैठे हैं। चतुर लोगों ने गुरुग्राम नाम से वेबसाइट से लेकर ट्वीटर तक के हैंडल ले लिये हैं।

हू इज वेबसाइट पर आप जाकर डोमेन के बारे में सर्च कर सकते हैं कि फलां वेबसाइट किसके पास है। एक सज्जन ने गुरुग्राम डॉट काम या ओआरजी या नेट, बिज नाम से ट्राई किया तो सारे डोमेन बिक गए। बहुत से डोमेन पहले से रजिस्टर हैं लेकिन गुरुग्राम नाम से कई वेबसाइट 12 अप्रैल की घोषणा के बाद से ही लोगों ने रजिस्टर करा लिए। एक सज्जन ने किसी को बोला कि गुरुग्राम नाम से एक साइट को बेचने के लिए काफी पैसे मांगे। तो एक पक्ष ये भी है। किसी ने गुरुग्राम बीजेपी, गुरुग्राम आप, नाम से भी ट्वीटर हैंडल बना लिये हैं। क्या पता इसके भी दाम लग जाएं। किसी ने बताया कि चुनावों के दौरान ऐसे डोमेन के अच्छे पैसे मिल जाते हैं।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
प्राइम टाइम इंट्रो, गुड़गांव, गुरुग्राम, रवीश कुमार, हरियाणा सरकार, Prime Time Intro, Gurgaon, Gurugram, Ravish Kumar, Haryana Government
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com