संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव होते रहते हैं, हर टकराव का एक लाभ यह होता है कि पुरानी परिपाटी के हिसाब से सीमाएं स्पष्ट हो जाती हैं और कुछ नए अधिकार क्षेत्र भी उभर कर सामने आ जाते हैं।
राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के टकराव को लेकर अदालतों की खूब सारी व्याख्याएं हैं और नई-नई मर्यादाएं भी लेकिन क्या दिल्ली के मामले में ऐसा हो रहा है। क्या दिल्ली में इस लड़ाई से संवैधानिक दायित्वों और अधिकारों की तस्वीर साफ होती नज़र आ रही है।
ताज़ा विवाद के बाद मंगलवार को पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उप राज्यपाल से मुलाकात की। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में हाई कोर्ट के आदेश पर चर्चा हुई। दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश 21 मई के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को भी कठघरे में खड़ा करता है जिसमें कि दिल्ली का एंटी करप्शन ब्यूरो केद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों या जनसाधारण के किसी भी सदस्य के विरुद्ध अपराधों का कोई संज्ञान नहीं लेगा। इसी के आधार पर रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी लेकिन अदालत ने ज़मानत याचिका खारिज कर दी।
केंद्र सरकार ने पिछले साल जुलाई में भी एंटी करप्शन ब्यूरो के बारे में नोटिफिकेशन जारी किया था। जस्टिस विपिन संघी ने दोनों ही नोटिफिकेशन को संदिग्ध बताते हुए कहा कि यह कर्मचारी दिल्ली की जनता की सेवा में ही लगा हुआ है। दिल्ली पुलिस का जो काम है वो पर्याप्त और अनिवार्य रूप से दिल्ली राज्य से संबंधित है इसलिए मेरी नज़र में राज्य सरकार के एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वो ऐसे लोगों के खिलाफ जांच करे और गिरफ्तार करे। अदालत ने यह भी माना कि आपराधिक कानून और प्रक्रिया समवर्ती सूची में आते हैं इसलिए दिल्ली विधानसभा को इन मामले में कानून बनाने का अधिकार भी हासिल है। उप राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की मदद और राय के आधार पर ही कार्य करना चाहिए। राष्ट्रपति उप राज्यपाल के ज़रिये दिल्ली पर प्रशासन नहीं कर सकते हैं जिनमें दिल्ली की विधायिका को कानून बनाने का अधिकार हासिल है।
दिल्ली सरकार ने केंद्र के नोटिफिकेशन को अदालत में चुनौती तो नहीं दी लेकिन हेड कांस्टेबल की हार मुख्यमंत्री की जीत में बदल गई। अभी साफ नहीं है कि अपने नोटिफिकेशन के बचाव में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी या नहीं। इस फैसले से दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के रिश्तों की एक नई व्याख्या की भी संभावना पैदा होती है।
तात्कालिक सवाल ये है कि क्या केंद्र का नोटिफिकेशन रद्द हो गया है। क्या तभी हाई कोर्ट के फैसले से उत्साहित होकर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने मंगलवार को 15 अधिकारियों के तबादले कर दिये। इनमें से 9 आईएएस अफ़सर भी शामिल हैं। इस आदेश पर प्रिंसिपल सेक्रेट्री सर्विसेज़ के राजेंद्र कुमार के ही दस्तख़त हैं, उपराज्यपाल ने राजेंद्र कुमार की तैनाती को रद्द कर अनिन्दो मजूमदार को तैनात किया था लेकिन इस आदेश के मुताबिक अनिन्दो मजूमदार प्रिंसिपल सेक्रेट्री नहीं हैं।
इस बार उप राज्यपाल ने भी अपने अधिकार जताने के लिए मुख्यमंत्री के आदेश को निरस्त नहीं किया है। केंद्र सरकार के अनुसार दिल्ली के सुपर बॉस उप राज्यपाल के आदेश की कॉपी के बाद भी अनिन्दो मजूमदार चार्ज नहीं ले सके हैं। केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया कि उप राज्यपाल ज़मीन, कानून व्यवस्था और पुलिस के बाद सेवाओं के मामले में भी दिल्ली का बॉस हैं लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल अड़े हुए हैं कि दिल्ली का बॉस तो चुना हुआ प्रतिनिधि ही है। इसलिए दिल्ली सरकार ने दो दिनों का विधानसभा का आपातकालीन सत्र बुलाया है। विधायक सोमनाथ भारती ने प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पेश किया कि केंद्र के नोटिफिकेशन को अंसैवाधिनक घोषित किया जाए।
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा कि पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और ज़मीन के मामलों को छोड़ सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन केंद्र सरकार ने सेवाओं को भी इसमें जोड़कर दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है। दिल्ली में स्टेट सर्विसेज नहीं है, स्टेट सर्विस कमीशन नहीं है इसलिए सेवाएं दिल्ली विधानसभा के अधीन नहीं आएंगी। इस दलील से तो कल केंद्र सरकार यह भी कह सकती है कि दिल्ली में कोयला खदान नहीं है तो वह बिजली घर नहीं लगा सकती है।
विधानसभा में उप राज्यपाल को खूब निशाना बनाया गया। आदर्श शास्त्री ने महाभियोग चलाने की मांग की तो विधायक अलका लांबा ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उप राज्यपाल के ज़रिये मोटी कमाई करती है तो इस बात के विरोध में बीजेपी के विधायक ओम प्रकाश शर्मा ने हंगामा कर दिया और अपनी आपत्ति जताई। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने विधानसभा के आपात सत्र को क्रमश: सर्कस और तमाशा कहा है।
जब नोटिफिकेशन आया था तब एक दो दिन बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उसका बचाव करते हुए कहा कि कंफ्यूज़न को दूर करने के लिए लाया गया है। चुनी हुई सरकार के पास काम करने के पर्याप्त अधिकर हैं। मंगलवार को पत्रकारों ने जब बीजेपी के राषट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से इस बारे में पूछा तो उनका जवाब ये रहा कि यह टकराव का मामला नहीं है। संविधान की व्याख्या का मामला है। यह मामला अदालत में जाएगा और वहीं सुलझ जाएगा।
ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार या बीजेपी अब उप राज्यपाल की सर्वोच्चता को लेकर उनती क्लियर नहीं है जितनी पहले थी। आप जानते हैं कि इस विषय को लेकर कानून के जानकार भी खूब बहस कर रहे हैं। अखबारों में जितने भी लेख आ रहे हैं ज़्यादातर में मुख्यमंत्री के अधिकार का समर्थन किया गया है और केंद्र के नोटिफिकेशन को अंसवैधानिक बताया गया है। मंगलवार के इंडियन एक्सप्रेस में विवेक के तंखा ने ऑल इंडिया सर्विस एक्ट 1951 और राज्यों की परिभाषा के संदर्भ में इसे देखने का प्रयास किया है।
All India Administrative Service Cadre Rule, 1954 को भी इस बहस में लाना चाहिए। इसमें संविधान की प्रथम अनुसूची में परिभाति राज्य में केंद्र शासित प्रदेश को भी शामिल किया गया है। इसके अनुसार राज्य कैडर की क्षणता, संख्या और काम का बंटवारा करेगा। इस मामले में राज्य की जगह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भी पढ़ा जा सकता है।
सिविल सर्विज कानून में राज्य की परिभाषा में केंद्र शासित प्रदेश को भी शामिल किया गया है। इस मामले में केद्र नोटिफिकेशन के ज़रिये राज्यों के मामले में कार्यकारी शक्ति हासिल करना चाहता है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बिजनेस स्टैंडर्ड में अदिति फडणविस से कहा है कि परिभाषा के हिसाब से केंद्र शासित प्रदेश केंद्र से शासित होता है। राष्ट्रपति उप राज्यपाल के ज़रिये शासन करते हैं। दिल्ली में जो मंत्रिपरिषद है उसका काम सिर्फ उप राज्यपाल की मदद करना और सलाह देना भर है। दिल्ली विधानसभा उप राज्यपाल की सहमति के बिना कानून नहीं बना सकती है।
केजरीवाल सरकार ने इस लड़ाई में विधानसभा को भी मोर्चा बना दिया है ताकि लड़ाई हो ही रही है तो ठीक से हो लेकिन एक सदन के भीतर उप राज्यपाल पर तोहमतें लगाईं जा रही हैं, इसे भी विधायी परंपराओं के लिहाज़ से देखा जाना चाहिए। हो सकता है कि यह भी होता ही आया हो। क्या विधानसभा नोटिफिकेशन को रद्द कर सकती है, क्या हाई कोर्ट के आदेश के बाद नोटिफिकेशन रद्द नहीं हो गया है?
This Article is From May 26, 2015
केंद्र के नोटिफिकेशन पर चर्चा : दिल्ली सरकार का हक कहां तक?
Ravish Kumar
- Blogs,
-
Updated:मई 26, 2015 22:10 pm IST
-
Published On मई 26, 2015 21:36 pm IST
-
Last Updated On मई 26, 2015 22:10 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
दिल्ली सरकार, अरविंद केजरीवाल, उपराज्यपाल, नजीब जंग, केंद्र सरकार का नोटिफिकेशन, Arvind Kejirwal, Najeeb Jung, Delhi Governement, रवीश कुमार, Ravish Kumar