नमस्कार... मैं रवीश कुमार। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ट्वीटर पर भिड़ गए हैं। अभी तक ट्वीटर पर नेताओं के बयान के बाद उनके समर्थक या भक्त मोर्चा संभाल लेते थे लेकिन स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के हैंडल पर जाकर सीधे चुनौती दे दी है। कोई वाया मीडिया नहीं। पहले आफिस ऑफ आरजी के हैंडल से ट्वीट आता है कि...
@OfficeofRG आई आई टी स्टुडेंट ग्रुप को मोदी सरकार की आलोचना के लिए बैन किया गया है। अब और क्या करेंगे।
फिर दूसरा ट्वीट आता है।
@OfficeofRG मुक्त अभिव्यक्ति हमारा अधिकार है। असहमति और बहस को दबाने के किसी भी प्रयास के ख़िलाफ़ हम लड़ेंगे।
इसके बाद स्मृति ईरानी उन्हीं के हैंडल पर पलट कर जवाब देती हैं।
@OfficeofRG कल आपने NSUI से कहा कि जहां आर्डर है वहां डिसॉर्डर कर दें। आज आपके गुंडे मेरे घर तब आए जब मैं काम से बाहर थी।
@OfficeofRG अपने लोगों से कहिये कि अमेठी में ऐसी कोशिश हुई लेकिन वे मुझे डरा नहीं पाए। वे अब भी नहीं डरा पाएंगे।
@OfficeofRG मुझे समय और जगह बताइये मैं शिक्षा से लेकर गर्वनेंस पर बहस के लिए तैयार हूं।
@OfficeofRG अगली बार से अपनी लड़ाई खुद लड़िये। NSU1 के पीछे छिपकर नहीं। वैसे मैं जल्दी ही अमेठी लौट रही हूं।
वैसे दिल्ली चुनाव के वक्त किरण बेदी ने बहस करने की चुनौती को स्वीकार नहीं किया था जब केजरीवाल ने चुनौती दी थी। किसी के घर जाकर प्रदर्शन करने का रिकॉर्ड निकालेंगे तो आपको हर पार्टी का नाम मिलेगा। क्या एक केंद्रीय मंत्री को इस तरह से चुनौती दी जानी चाहिए थी। क्या अब बीजेपी के कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे तो ये चुनौती दी जाएगी कि नेता को बोलो सामने आए लेकिन क्या कीजिएगा ट्वीटर की भाषा पर्सनल हो जाती है। जिस तरह से स्मृति ईरानी ने राहुल को खुलकर सामने आने की चुनौती दी है, ऐसा होने लगा तो पार्टियों के नेता अब अखाड़े में ही मिला करेंगे और उनके समर्थक या संगठनों के कार्यकर्ता टिकट कटा कर मुकाबले का आनंद लेंगे। राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को जवाब नहीं दिया है, हो सकता है सदमा लग गया हो।
हुआ यह कि आईआईटी मद्रास को 15 मई के दिन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की एक चिट्ठी जाती है कि वहां अंबेडकर पेरियार स्टुडेंट सर्किल के छात्र मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं और नफरत फैला रहे हैं। 24 मई को आईआईटी मद्रास के डीन शिवकुमार एम श्रीनिवासन ने अंबेडकर पेरियार स्टुडेंट सर्किल को ईमेल भेज कर कहा कि उनके फोरम की मान्यता रद्द की जाती है। मानव संसाधन मंत्रालय के अंडर सेक्रेट्री ने एक पैम्फलेट भी नत्थी किया गया था जिसमें मोदी सरकार की कॉरपोरेट परस्त नीतियों पर सवाल उठाये गए थे। ये पैम्फलेट किसी अज्ञात ने मंत्रालय को भेजे थे।
एपीएससी के सदस्य इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि दक्षिणपंथी समूह की अज्ञात शिकायत पर ऐसा किया गया है और उनसे उनका पक्ष भी नहीं सुना गया। ग्रुप ने पूछा कि किसी अज्ञात की चिट्ठी आईआईटी मद्रास के बहुमत छात्रों का नज़रिया कैसे हो सकता है। इन छात्रों ने अंबेडकर पेरियार की विचारधारा के प्रसार के लिए यह ग्रुप बनाया था।
डीन ने कहा है कि ये छात्र आईआईटी के नाम का इस्तेमाल कर अपनी गतिविधियां चला रहे थे लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जांच के बाद पाया गया कि उनकी गतिविधियां उचित नहीं थीं। एनएसयूआई के सदस्यों ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के घर पर प्रदर्शन किया। पहले स्मृति ईरानी ने खुद को इस विवाद से दूर करते हुए कहा कि आईआईटी एक स्वायत्त संस्था है, मंत्रालय को क्यों घसीटा जा रहा है।
लेकिन मीडिया में उनके ही मंत्रालय की वो चिट्ठी चलने लगी जिसके आधार पर इन छात्रों के चर्चा समूह की मान्यता रद्द कर दी गई। आईआईटी मद्रास ने कहा है कि वो छात्रों की अभिव्यक्ति को सीमित नहीं करता है। उनसे उम्मीद की जाती है कि गाइडलाइन्स का अनुकरण करें। यह साफ नहीं है कि आईआईटी मद्रास किसी पैम्फलेट में मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना को क्यों मानता है कि इससे कैम्पस में सरकार के प्रति नफरत की भावना फैल रही थी।
अब आते हैं दिल्ली सरकार बनाम केंद्र के विवाद पर। शुक्रवार को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों जगहों पर अलग-अलग संदर्भों में बहस हुई। केंद्र सरकार ने 25 मई के हाई कोर्ट के फैसले की उस टिप्पणी को चुनौती दी थी जिसमें नोटिफिकेशन को संदिग्ध बताते हुए कहा गया था कि एंटी करप्शन ब्रांच केंद्र के अधिकारियों को गिरफ्तार कर सकता है। केंद्र का कहना था कि इस टिप्पणी के वक्त उनका पक्ष नहीं सुना गया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि दिल्ली हाई कोर्ट दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करते वक्त अपने 25 मई के आदेश के अंदर की गई उस टिप्पणी को अलग रखे जिसमें नोटिफिकेशन को संदिग्ध बताया गया था।
दिल्ली हाई कोर्ट को दिल्ली सरकार की नोटिफिकेशन रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करनी थी, जिसे 28 मई को दायर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की उस टिप्पणी पर स्टे भी नहीं लगाया जिसे केंद्र ने चुनौती दी थी लेकिन अलग रखने के लिए भी कह दिया। सुप्रीम कोर्ट को इस पर फैसला देना है कि एंटी करप्शन ब्यूरो का दायरा क्या हो। अदालत ने दिल्ली सरकार से तीन हफ्ते में एंटी करप्शन ब्यूरे के अधिकार पर उसकी राय मांगी है।
25 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि एंटी करप्शन ब्रांच केंद्र के अधिकारियों को गिरफ्तार कर सकता है। केंद्र का कहना है कि नहीं कर सकता है। इसी से उत्साहित होकर केजरीवाल सरकार ने विधानसभा का सत्र बुलाकर नोटिफिकेशन के खिलाफ प्रस्ताव पास किया और 28 मई को नोटिफिकेशन रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई यह साफ नहीं। 11 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट में फिर सुनवाई होगी लेकिन शुक्रवार को अदालत ने अपने अंतरिम फैसले में गृहमंत्रालय के नोटिफिकेशन पर स्टे नहीं लगाया है। दिल्ली सरकार से कहा कि पिछले दिनों हुए ट्रांसफर पोस्टिंग के आदेशों को उप-राज्यपाल के पास भेजा जाए। उप-राज्यपाल इस पर चर्चा कर सकते हैं, अगर आपत्ति हुई तो वापस राज्य सरकार को भेज सकते हैं। केंद्र से हलफमाना मांगा है कि दिल्ली और बाकी केंद्र शासित प्रदेशों में किस तरह से काम होता रहा है।
अब आप इसे हार और जीत के लिहाज़ से देखना चाहते हैं कि किस कोर्ट में कौन जीता या इस लिहाज़ से देखना चाहते हैं कि यह मामला किस दिशा में बढ़ रहा हैं। दोनों ही अदालतों ने अपने अंतरिम आदेशों में किसी पक्ष की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है। न तो एंटी करप्शन ब्रांच के अधिकार को सीमित माना गया और न ही केंद्र का नोटिफिकेशन रद्द हुआ। क्या दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले से कुछ समझ बनती है कि दिल्ली सरकार अपने फैसलों को उप राज्यपाल के पास भेजे। अगर नोटिफिकेशन रद्द नहीं हुआ है तो क्या माना जाए कि अंतिम फैसला आने तक उप राज्यपाल ही सुपर बॉस होंगे।
This Article is From May 29, 2015
ट्विटर पर भिड़े राहुल गांधी और स्मृति ईरानी
Ravish Kumar
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Updated:मई 29, 2015 21:20 pm IST
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Published On मई 29, 2015 21:17 pm IST
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Last Updated On मई 29, 2015 21:20 pm IST
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