नमस्कार... मैं रवीश कुमार। जैसे ही खबर आई कि पाकिस्तान की आंतकवाद विरोधी अदालत ने मुंबई हमले के आरोपी लखवी को ज़मानत पर छोड़ दिया है, भारत में हंगामा मच गया और आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के दोहरेपन पर हमला शुरू हो गया।
ऐसा लगा कि भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों में आतंकवाद के खिलाफ बनी साझा समझ फिर टूट गई है। नेता भारत बनाम पाकिस्तान के लहजे में बयान देने लगे। आखिर मुंबई हमले का असर पेशावर से कम तो नहीं है। मुंबई हमलों में 166 लोग मारे गए थे।
इस मामले में 6 अन्य आरोपियों के साथ रावलपिंडी की अडियाला जेल में ज़कीउर्रहमान लखवी पिछले पांच साल से बंद था। ज़मानत के फैसले की रिहाई की खबर उस वक्त आई जब सीमा के इस पार से लोगों ने आतंकवाद से लड़ने में पाकिस्तान के इरादों को भरोसे से देखना शुरू किया था।
लखवी वह शख्स है जिसने मुंबई हमलों की पूरी योजना बनाई। पाकिस्तान में बैठकर सैटेलाइट फोन पर मुंबई में हमला कर रहे आतंकवादियों को निर्देश देने का काम किया। 2009 में उसके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी। पांच साल जेल में रहने के बाद आतंकवाद विरोधी अदालत ने सबूतों की कमी के आधार पर रिहा किया गया है। सरकारी वकील ने ज़मानत का विरोध भी किया।
फेडरल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी के वकील अज़हर चौधरी ने एनडीटीवी से कहा कि वे जमानत मिलने से अचंभे में हैं। उन्होंने कहा, हमने पुरज़ोर तरीके से ज़मानत का विरोध किया। लखवी के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं। हमने सारे सबूत अदालत को दिखाये हैं। जैसे ही हमें ऑर्डर की कॉपी मिलेगी हम इसके खिलाफ अपील करेंगे।'
पिछले पांच साल में पाकिस्तान की अदालत में मुंबई हमले की सुनवाई लगातार टलती रही, क्योंकि कई बार जज बदले, कुछ जजों ने धमकी की वजह से तबादला करवा लिया, कुछ लंबी छुट्टी पर चले गए। कई सरकारी वकीलों ने धमकी के बाद मुकदमा छोड़ दिया। हाफिज़ सईद भी इसी तरह सबूतों की कमी के कारण रिहा हो गया।
आज ही इंडियन एक्सप्रेस में पाकिस्तान की पत्रकार और फिल्म निर्माता बीना सरवर ने अपने लेख में लिखा है कि जब भारत पूछता है कि क्यों पाकिस्तान की अदालतें हाफिज़ सईद जैसों को छोड़ते रहती हैं, तो वे यह भूल जाते हैं कि हमारी अदालतें भी भारत जैसी ही हैं। यहां दोषी को सज़ा दिलवाना आसान नही होता। पाकिस्तान में तो गवाहों की सुरक्षा का कोई कानून या सिस्टम भी नहीं है। साथ ही जांच का तरीका भी पुराना और खराब है जिससे ये आतंकवादी बच जाते हैं। अदालत से तो बच जाते हैं लेकिन हाफिज़ सईद की रैली के लिए वहां की सरकार रेल भी किराये पर दे देती है।
बीना सरवर की तरह अमरीका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी, न्यूज़वीक पाकिस्तान के सलाहकार संपादक खालीद अहमद ने भी इंडियन एक्सप्रेस में पेशावर की घटना के संदर्भ में लिखा है। इन सबने अपने लेख में भारत या अमरीका विरोधी बयान के खोखलेपन को उजागर किया है और कहा है कि पाकिस्तान को समझना होगा कि उसके घर में आग उसकी विदेश नीति के कारण लगी है। विदेश नीति का मतलब भारत विरोधी नीतियों से।
हक्कानी के लेख का एक हिस्सा यह है कि पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान ही नहीं कई आतंकी गुट हैं जो हमले कर रहे हैं। इस्लामी अतिवाद ने पाकिस्तान को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में विकसित नहीं होने दिया है। आईएसआई को भले ही लगता हो कि हक्कानी नेटवर्क, मुल्ला उमर का अफगान तालिबान, लश्कर ए तोएबा, जमात उद दावा, पाकिस्तान के भीतर कार्रवाई नहीं करेंगे, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि ये संगठन सिपाह-ए सहाबा, लश्कर ए जांघवी, पाकिस्तानी तालिबान जैसे क्षेत्रीय ताकतों की मदद नहीं करेंगे, जो पाकिस्तान के भीतर हमले कर सकते हैं।
ज़ाहिर है पाकिस्तान से आ रही इन आवाज़ों को पहचानने की ज़रूरत है। जो भारत के लोग कह रहे हैं वह वहां की जनता भी कह रही है और मीडिया भी ऐसी आवाज़ को खूब जगह दे रहा है।
बीना सरवर और खालिद ने भी लिखा है कि अखबारों और टीवी में कई लोग भारत विरोधी बयान के नाम पर अपनी करनी पर पर्दा डाल लेते हैं, इतना ही नहीं कई नेताओं ने डर और गठजोड़ के कारण नाम लेकर तहरीक-ए-तालिबान के ख़ात्मे की मांग नहीं की है। सब शोक जताकर किनारा करते रहे।
2013 में जब आतंकवादियों ने एक चर्च पर हमला कर दिया था उसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 54 बच्चे अनाथ हो गए थे। पाकिस्तान ने उस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की। इस मामले में सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ साहसिक कदम उठा रहे हैं, लेकिन यही सेना भी तो तालिबान से मिली हुई थी। पाकिस्तान भले ही जिहादी गुटों को ज़रूरी बताता रहे लेकिन इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
यह भी समझना चाहिए कि पाकिस्तान का सिस्टम एक दिन में बदलने वाला नहीं है। फिर भी वहां के लोगों की राय तेज़ी से बदली है तभी लखवी की रिहाई पर वहां से ट्वीटर पर हैशटैग होने लगा कि लखवी के ज़मानत का विरोध करते हैं और पाकिस्तान भारत के साथ है। लोगों से आ रही इस आवाज़ को थाम लीजिए। जैसे मंगलवार को भारत के कई लोगों ने ट्वीट किया था कि भारत पाकिस्तान के साथ है।
फिर भी लखवी की रिहाई की खबर आते ही मीडिया हमारे नेताओं पर टूट पड़ा। वे भी पिछले दो दिनों की समझदारी छोड़ पाकिस्तान के दोहरेपन पर हमला करने लगे। एक हद तक सही भी है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए कहीं न कहीं नई बातों पर टिकना भी ज़रूरी है। भले ही जोखिम बड़ा हो।
तमाम दलों के नेता पाकिस्तान के खिलाफ आग उगलने लगे। पाकिस्तान के चैनलों में इस खबर को कम तवज्जो दी गई है। वहां अभी भी लोग आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को लेकर नेताओं सेना से सवाल कर रहे हैं।
पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी की नेता शेरी रहमान ने कहा है कि अगर कोई भी नरम रवैया रखेगा उसे भी आतंकवादी समझा जाएगा। पाकिस्तान के आर्मी चीफ अफगानिस्तान गए तो वहां से मदद का भरोसा मिला लेकिन यह जवाब भी कि आतंकवादी पाकिस्तान के ही थे।
पाकिस्तान की जेलों में फिर से फांसी घरों की सफाई हो रही है। वहां 2008 के बाद से फांसी की सज़ा पर अघोषित रूप से रोक लगा दी गई थी। लेकिन अब वहां की जेलों में बंद सज़ायाफ्ता आतंकवादियों को फांसी देने के लिए टारगेट और टाइम दोनों दे दिया गया है।
अभी तक यह साफ नहीं है कि ये आतंकवादी तालिबान से ताल्लुक रखते हैं या छोटे मोटे आतंकी संगठनों से। दूसरी तरफ जेल से बाहर जो आतंकवाद सिस्टम से लेकर समाज में शरण पा रहा है उससे कैसे लड़ेगा पाकिस्तान। क्या सेना ईमानदारी से लड़ पाएगी, सेना लड़ेगी तो क्या सियासी दल साथ देंगे, सियासी दल साथ देंगे तो क्या मज़हबी संगठन भी आगे आएंगे। इन सबका जवाब मिलना बाकी है।
इसीलिए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि लखवी मुंबई हमले का मुख्य आरोपी है, संयुक्त राष्ट्र ने भी उसे आतंकवादी माना है उसे ज़मानत पर कैसे छोड़ा जा सकता है।
लखवी की ज़मानत से आतंकवादियों को ही बल मिलेगा। भारत पाकिस्तान से मांग करता है कि इस फैसले को पलटे। तालिबान से लड़ेंगे मगर हाफिज़ सईद और लखवी को खुला छोड़ देंगे।
This Article is From Dec 18, 2014
लखवी पर क्यों नहीं हो रही सख्ती?
Ravish Kumar
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Updated:दिसंबर 18, 2014 21:32 pm IST
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Published On दिसंबर 18, 2014 21:26 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 18, 2014 21:32 pm IST
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