अगर यह कहा जाए कि हममें से ज्यादातर के भीतर जाति, रंग, नस्ल और भाषा को लेकर एक-दूसरे से नफरत करने की प्रवृत्ति होती है तो हम जल्दी स्वीकार नहीं करेंगे। इस तरह से बातें करने लगते हैं जैसे यह किसी दूसरी दुनिया की समस्या है और हम तो कभी इसके शिकार हो ही नहीं सकते। लेकिन जब मौका आता है, जब हम गुस्से में होते हैं, तब हमारी असलियत बाहर झांकने लगती है। हम खुद ही साबित करने में लग जाते हैं कि हम बिल्कुल जाति, रंग, नस्ल और भाषा को लेकर एक-दूसरे से नफ़रत करते हैं। बल्कि नफ़रत करने वाले दो-चार मिल जाएं तो हम भीड़ में बदलकर एक गलती की सज़ा उसी रंग, जाति नस्ल और भाषा से मिलते-जुलते दूसरे को दे सकते हैं। मार सकते हैं, उसकी कार तोड़ सकते हैं और जला भी सकते हैं।
बेंगलुरु में पढ़ रही तंजानिया की एक छात्रा के साथ जो घटना हुई पहले उसकी ज़ुबानी सुन लेते हैं कि क्या हुआ। पुलिस में दर्ज शिकायत की कापी से यह तर्जुमा है- 'मैं शिकायत दर्ज कराना चाहती हूं कि मेरे साथ 31 जनवरी की शाम साढ़े सात बजे क्या हुआ। हम और चार दोस्त सप्तागिरी से सोमप्रिया की तरफ जा रहे थे तभी भारतीयों की भीड़ ने हमारा पीछा करते हुए कार पर पत्थर मारना शुरू कर दिया। हम भी भागते हुए सप्तागिरी पहुंच गए। उन्होंने हमारा रास्ता रोक लिया। कार से उतरते ही हमारे दो दोस्त भाग गए, लेकिन मैं पुलिस से बात करने लगी, लेकिन पुलिस ने कुछ बताया नहीं। जब पास से गुजर रहे मेरे दोस्त ने देखा तो मेरे पास आकर चलने के लिए कहा। जैसे ही हम वहां से चलने लगे भारतीयों ने मुझे और मेरे दोस्त को मारना शुरू कर दिया। हमारे कपड़े फाड़ दिए। हम बस में चढ़े लेकिन ड्राईवर ने बस को रोके रखा और बस में लोगों ने हमें मारना शुरू किया और धक्का देकर बाहर निकाल दिया। मैं बस की सीढ़ियों पर गिर गई। भारतीयों ने हमें उठाकर मारना शुरू कर दिया। तब हम भागकर एक स्टाप पर पहुंचे और वहां बैठ गए। भीड़ हमारा तब भी पीछा कर रही थी। एक ईरानी आया और उसने हमारी मदद की। हम अपने दोस्त के घर गए और वहां डर के कारण दो दिन तक निकले ही नहीं।'
गणपति नगर में रविवार को सूडान के एक छात्र की कार से स्थानीय महिला की मौत हो गई। 35 साल की महिला का नाम शबीम ताज बताया गया है। एक्सप्रेस अखबार में शबीम ताज लिखा हुआ है और हिन्दू अखबार ने शबाना ताज लिखा है। शबीम अपने पति के साथ वहां टहल रही थीं। इस घटना के बाद वहां जमा लोग भीड़ में बदल गए और भीड़ गुस्सा गई। आरोप है कि 200 से ज़्यादा लोग जमा हो गए। इस घटना के आघे घंटे के बाद तंज़ानिया की लड़की अपने चार दोस्तों के साथ वहां से गुजरी। वे सभी वैगन आर में सवार थे।
जिस कार से कथित रूप से दुर्घटना हुई वह सूडान के छात्र की थी लेकिन जिस पर गुस्सा निकाला गया वह तंज़ानिया की छात्रा थी। दोनों अलग मुल्क के नागरिक हैं और एक-दूसरे को जानते तक नहीं। रंग के आधार पर हम सबको अफ्रीकी या हब्शी कह देते हैं। यह नहीं सोचते कि अपने भीतर हम ऐसे नज़रिये को हवा देकर एक शैतान पाल रहे हैं। वह शैतान किसी और में अपनी शक्ल देखता है तो भीड़ बन जाता है और हम सब भीड़ में बदलकर मारो-मारो करने लगते हैं। भीड़ इतनी हिंसक हो उठी कि लड़की को न सिर्फ मारा बल्कि कपड़े तक फाड़ दिए। पास से गुजर रही बस में सवार लोगों का इस घटना से क्या संबंध था, लेकिन वे भी भीड़ बन गए और तंजानिया की लड़की को मारने लगे और बस से उतार दिया।
धर्म जाति और नस्ल का सवाल आते ही हम इतनी आसानी से भीड़ में बदल जाते हैं। वहशी होने में देर नहीं लगती। बात यहीं तक नहीं रुकी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस घटना को शर्मनाक बताया है और कर्नाटक सरकार से मांग की है कि तुरंत सख्त कार्रवाई की जाए। कर्नाटक सरकार का कहना है कि हिंसा नस्लभेदी नहीं थी। यह रोड रेज का मामला है। रोड रेज, मतलब दुर्घटना से लोग गुस्सा गए और जो भी मिला उसे पीट दिया या सामने वाले को पीटकर अपना गुस्सा शांत कर लिया। वैसे यह भी एक किस्म का मानसिक रोग है जैसे नस्लभेद एक रोग है। हमारे भीतर किसी रूप में हिंसा होती है जो ऐसे मौकों पर बाहर आ जाती है। कई लोग खूनी बन जाते हैं।
कर्नाटक सरकार का कहना है कि इस सिलसिले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गृहमंत्री ने कहा है कि पुलिस ने समय रहते कार्रवाई नहीं की। तंजानिया के राजदूत ने भारत से कहा है कि लड़की और उसके दोस्तों पर हमला सिर्फ इसलिए हुए कि वे अश्वेत थे। तंजानिया के राजदूत जॉन किजाज़ी ने लिखा है कि 21 वीं सदी में यह सब नहीं होना चाहिए। जिन लोगों ने छात्रों के साथ भेदभाव किया है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। राहुल गांधी ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया है और रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि हमें नस्ली भेदभाव को लेकर काफी संवेदनशील रहना चाहिए। गृह मंत्रालय राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहा है।
पुलिस का कहना है कि जब हमें सूचना मिली तो पास से गुज़र रही पुलिस वैन ने वहां एक पुलिसकर्मी छोड़ दिया। अब बताइये जहां 200 लोग जमा हुए हों वहां एक सिपाही के भरोसे छोड़ना क्या सही था। टाइम्स आफ इंडिया ने सवाल किया है कि जब भीड़ जमा हुई थी और मारपीट की घटना हुई तो पुलिस ने अपने से मामला दर्ज क्यों नहीं किया। अखबार का कहना है कि घटना के एक घंटे के बाद तक रॉयट पुलिस को तैनात नहीं किया गया। तीन विदेशी छात्रों को एक पुलिस वाले के हवाले घटना स्थल पर छोड़ दिया गया। ज़ाहिर है प्रशासन की लापरवाही हुई है। लड़की ने अपने बयान में कहा है कि जब उसके साथ मारपीट हो रही थी तब पुलिस वाला वहां मौजूद था। ज़ाहिर है पुलिस के बयान में काफी अंतर दिख रहा है। मंत्री ने लड़की का बयान पढ़ते वक्त उसका नाम भी ले लिया जो नहीं लेना चाहिए था। जांच की रिपोर्ट का इंतज़ार हो रहा है। पुलिस प्रमुख ने कहा कि ईरानी छात्र ने लड़की को भीड़ से बचाया। यह और भी शर्मनाक है। हम केवल देवी-देवी ही करते रहते हैं।
मेनका के बयान पर बवाल
अब हम चर्चा करते हैं दूसरे विषय पर। मेनका गांधी के बयान को लेकर। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने जयपुर में क्षेत्रीय संपादकों के सम्मेलन में बताया कि भ्रूण परीक्षण को लेकर हम कब तक लोगों को गिरफ्तार करते रहेंगे। इस देश में अगर कोई किसी अल्ट्रासाउंड वाले के पास जाता है और अपने अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में पूछता है तो कौन न कहने की हिम्मत करेगा। इसलिए, हम कब तक अल्ट्रासाउंड वाले पर ज़िम्मेदारी लादते रहेंगे। हमारी एक राय है, हमने अखबारों में एक ब्लड टेस्ट के बारे में भी पढ़ा है जो आसानी से बच्चे के लिंग के बारे में बता देगा, तो हम कब तक लोगों को क्रिमिनल साबित करते रहेंगे। बेहतर होगा कि हम नीति बदलें और गर्भवती महिला को बता दें कि उसके होने वाले बच्चे का लिंग क्या है और साथ ही उसे रजिस्टर भी कर लें। इसके बाद हम मॉनिटर कर सकेंगे कि महिला ने उस बच्चे को जन्म दिया या नहीं। आप इस दिक्कत को अच्छे से हल कर सकते हैं। आप उसे ज्यादा पौष्टिक आहार उपलब्ध करा पाएंगे। राजस्थान में ऐसे कई प्लान चल रहे हैं जो लड़कियों को पैसे देने से बेहतर काम कर रहे हैं।
मेनका गांधी ने कहा कि भ्रूण परीक्षण से संबंधित कानून है वो उनके मंत्रालय के अधीन नहीं आता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आता है। इस कानून को PC-PNDT Act कहा जाता है. यानी Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 2003। यह कानून इसलिए लाया गया था कि अल्ट्रासाउंड से पता कर लेते थे कि लड़की है और उसे गर्भ में ही मार देते थे। इसका असर यह हुआ कि लड़के और लड़कियों का अनुपात बिगड़ने लगा। अब मेनका ठीक उलट कह रही हैं कि लिंग परीक्षण अनिवार्य कर दिया जाए। माता पिता को लिंग की जानकारी दे दी जाए और एक रजिस्टर के जरिए मॉनिटर किया जाए कि बच्चे का जन्म हुआ या नहीं। इस प्रस्ताव ने लिंग असंतुलन को लेकर काम कर रहे और डॉक्टरों की दुनिया में भारी विवाद खड़ा कर दिया है। हम भी समझने का प्रयास करेंगे कि मेनका की बात में दम है या पुराना कानून ही इस समस्या का दमदार समाधान है।
(रवीश कुमार NDTV इंडिया में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Feb 04, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : बेंगलुरु में सामने आया भीड़ में बसा नस्ली रंगभेद का मानसिक रोग
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:फ़रवरी 04, 2016 21:47 pm IST
-
Published On फ़रवरी 04, 2016 21:37 pm IST
-
Last Updated On फ़रवरी 04, 2016 21:47 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
रेड रेज, नस्ली हिंसा, बेंगलुरु, प्राइम टाइम इंट्रो, तंजानियाई छात्रा, सूडान का छात्र, भीड़ का हमला, Bengluru, Prime Time Intro, Tanzania, Sudan, Ravish Kumar