भूमिबिल पूंजीपतियों के हित में?

पीएम मोदी की फाइल फोटो

नमस्कार मैं रवीश कुमार। महाराष्ट्र के बीड ज़िले से बोरखेड़ गांव से एक किसान राजे भोंसले ने हमें फोन किया। राजे दो दिनों से प्राइम टाइम पर भूमि अधिग्रहण को लेकर बहस कर रहे थे, लेकिन राजे को लगा कि एक बड़ी कमी रह गई है। भूमि अधिग्रहण बिल की बातों को लेकर आदर्शवादी दावे हो रहे हैं और आलोचना हो रही है, लेकिन ज़मीन पर किसान क्या भुगतता है वो इसका हिस्सा नहीं बन रहा है। हालांकि मंगलवार के प्राइम टाइम में हमने कुछ किसानों के अनुभव शामिल किए थे फिर भी राजे भोंसले का व्यक्तिगत अनुभव बताता है कि किसानों के साथ क्या हो रहा है। तो आपको राजे की आपबीती सुनाता हूं।

2003 में बोरखेड़ स्टोरेज टैंक के लिए राजे भोंसले की 12 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण हुआ। मुआवज़े की राशि तय होने से पहले ही ज़मीन का अधिग्रहण हो गया। राजे तीन साल तक अलग अलग दफ्तरों के चक्कर लगाते रहे। अधिकारियों को अपने खर्चे पर खेत तक ले गए।

तब जाकर 2006 में दो विभागों ने मिलकर उनकी ज़मीन की नाप ली मगर कीमत तय नहीं हो सकी। इस बीच उनकी ज़मीन पर टैंक बनाने का काम 75 फीसदी पूरा हो गया। सात साल बाद यानी 2013 में मुआवज़े की राशि तय हो गई। राजे भोंसले और अन्य किसानों की ज़मीन के लिए मुआवज़ा तय हुआ एक करोड़ 9 लाख रुपये।

लेकिन, पता चला कि प्रोजेक्ट के लिए राशि का आधा हिस्सा तो टैंक बनाने पर खर्च हो चुका है। लिहाज़ा मुआवज़े की राशि के लिए नई फाइल बनी और मंज़ूरी के लिए बीड से औरंगाबाद लघु जलसंसाधन के सर्किल दफ्तर भेजी गई।

वहां पर फाइल आठ महीने से अटकी पड़ी है। अगर औरंगाबाद सर्किल ऑफिस से क्लियर भी हो जाती तो इसे पुणे के डिविज़न आफिस में भेजा जाएगा।

पुणे से फाइल औरंगाबाद के जलसंधारण बोर्ड के पास आएगी और वहां से मुंबई मंत्रालय जाएगी। मुंबई के मंत्रालय से प्रोजेक्ट की राशि क्लियर होकर बीड आएगी तब जाकर राजे भोंसले को मुआवज़ा मिलेगा।

फोन पर बातचीत के कारण कुछ त्रुटियां हो सकती हैं लेकिन आपको बता दें कि बीड से औरंगाबाद की दूरी 135 किमी है। औरंगाबाद से पुणे की दूरी 250 किमी और चूंकि फाइल पुणे से औरंगाबाद होकर मुंबई जाएगी इसलिए ओपको बता दें कि औरंगाबाद से मुंबई की दूरी 550 किमी है। 10 साल में राजे भोंसले की फाइल सिर्फ 135 किमी चल सकी है। अब आते हैं दिल्ली।

प्रधानमंत्री ने भूमि अधिग्रहण पर अपने वरिष्ठ सहयोगियों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में राजनाथ सिंह, सुष्मा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू समेत कई मंत्री थे। अकाली दल और शिवसेना के साथ अलावा सरकार की एक और सहयोगी लोकजनशक्ति पार्टी ने भी विरोध करना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों को अलग अलग बुलाकर बात करने की प्रक्रिया भी शुरू की है। शरद पवार से प्रधानमंत्री की मुलाकात भी हुई है। साफ है कि सरकार अब बिल को उस रूप में नहीं पा पाएगी जिस रूप में चाहती थी पर जो नया बिल आएगा क्या किसान या विपक्षी दल उससे संतुष्ठ हो जाएंगे। इसी के साथ सरकार ने यह भी तय किया कि वह विपक्षी दलों के प्रचार का जवाब देगी।

इसके लिए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पत्रकारों के बीच अध्यादेश की कापी लेकर आ गए और बताने लगे। वैसे यह काम केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह को करना चाहिए था जिनके मंत्रालय का यह बिल है। हम पत्रकारों की आदत ही हो गई है हर बात में कमी निकालने की लेकिन जो सरकार की तरफ से नितिन गडकरी ने कहा उसके कुछ बिंदु इस प्रकार हैं। यूपीए सरकार ने ही 13 एक्ट में सामाजिक असर के अध्ययन को नहीं रखा था। इससे हमारा कुछ लेना देना नहीं है।

गडकरी ने कहा कि कानून की चौथी अनुसूची में इस अध्ययन को यूपीए ने हटाया, एनडीए ने नहीं। लेकिन वित्तमंत्री ने तो ब्लॉग में लिखा था कि सामाजिक असर के अध्ययन जैसे प्रावधानों से कई प्रोजेक्ट को पूरे होने में वर्षों लग जाएंगे। इससे विकास की रफ्तार कम हो जाएगी। तब ये भी तो लिख सकते थे कि यूपीए ने हटाया था हमने नहीं। पर खैर। सरकार बार-बार ज़ोर दे रही है कि उसने मुआवज़े और पुनर्वास को लेकर कोई समझौता नहीं किया है। नितिन गडकरी ने अध्यादेश के 10-ए को पढ़कर बताया कि ज़मीन राज्य और केंद्र दोनों की सूची में आती है। गडकरी जी ने कहा कि सहमति का जहां तक प्रश्न है वो राज्य सरकार की मर्जी पर निर्भर है।

हमने यह सुझाया है कि सीमावर्ती इलाके में, रक्षा उत्पादन जैसे प्रोजेक्ट के लिए सहमति और सामाजिक असर के अध्ययन की शर्त की ज़रूरत नहीं होगी। गांव में बिजली, सड़क बनाने के लिए भी सहमति और सामाजिक असर के अध्ययन की ज़रूरत नहीं रहेगी।

नितिन गडकरी ने एक उदाहरण से समझाने का प्रयास किया कि इस देश में 80 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण सिंचाई योजनाओं के लिए होता है। 2000 एकड़ का प्रोजेक्ट होता है लेकिन सिंचाई परियोजना से 3 लाख एकड़ तक किसानों को फायदा होता है। अगर हम 80 फीसदी सहमति के बाद 2000 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण करेंगे तो देश के गरीब किसानों को पानी देने के लिए कोई प्रोजेक्ट कैसे बना सकते हैं।

राजे भोंसले की व्यथा कथा जो पहले सुनाई उसे भी याद रखियेगा। खैर शाम तक अखिलेश शर्मा ने खबर दी कि सरकार कुछ बदलाव के लिए तैयार हो गई है, उनके सूत्रों के मुताबिक बिल के विवादास्पद प्रावधानों में संशोधन किए जाएंगे।

विवादास्पद प्रावधानों की भाषा बदली जाएगी। पीपीपी मॉडल के तहत ज़मीन पर मालिकाना हक़ सरकार का होगा। इंडस्ट्रियल कोरिडोर में सड़क से एक-दो किलोमीटर ज़मीन का ही अधिग्रहण होगा। सामाजिक ढांचे के तहत सिर्फ़ सरकारी स्कूल, अस्पताल ही बनेंगे निजी स्कूल, अस्पताल वगैरह नहीं। सहमति और सामाजिक प्रभाव अध्ययन यानी Social Impact Assessment के प्रावधान और स्पष्ट किए जाएंगे। संशोधनों के लिए आरएसएस, सहयोगी दलों, किसान संगठनों और विपक्षी दलों से बातचीत जारी है...

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प्राइम टाइम में आज सिर्फ दो ही मेहमान हैं ताकि विस्तार से बात हो सके। आम आदमी पार्टी से योगेंद्र यादव और बीजेपी से सुधांशु त्रिवेदी।