टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार जालंधर का ये विधवा आश्रम बैंक आफ बड़ौदा के पास गिरवी रखा हुआ है। अगर सरकार ने समय पर 250 करोड़ का लोन नहीं चुकाया तो बैंक इस आश्रम को नीलाम कर सकता है। इसी तरह जालंधर जेल की प्रस्तावित ज़मीन, पुराना डिविज़नल कमिश्नर और एसएसपी का ऑफ़िस,अमृतसर में एक मेंटल हॉस्पिटल, पटियाला में पीडब्ल्यू डी का ऑफ़िस और राजपुरा कॉलोनी, लुधियाना में PUDA एन्क्लेव, ग्रीन पार्क एन्क्लेव, पुराना डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और कैनाल कॉलोनी। इन सबकी ज़मीनों को गिरवी रखकर सरकार पिछले दो साल में 2100 करोड़ उगाहे थे।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उसके पास पंजाब अर्बन डेवलपमेंट बैंक और पांच राष्ट्रीय बैंकों से हुए करार के दस्तावेज़ भी मौजूद हैं। पंजाब अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी के चेयरमैन राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हैं। इस खबर के अगले ही दिन राज्य सरकार ने खंडन कर दिया कि कोई संकट नहीं है। सरकार अपने संसाधनों से पर्याप्त पैसे जुटा रही है। कोई संपत्ति गिरवी नहीं रखी गई है। बैंकों ने अपनी तरफ से कोई खंडन नहीं किया है कि टाइम्स आफ इंडिया ने जो दावा किया है वो सही है या नहीं है। 2013 के साल में भी आर्थिक संकट की खूब रिपोर्टिंग हुई थी तब पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने बकायदा प्रेस कांफ्रेस कर ऐलान किया था कि पंजाब नहीं यूपीए की केंद्र सरकार संक्ट में है।
पंजाब में सात सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि वेतन पेंशन के पैसे न दिये गए हों। लेकिन जब केंद्र में सरकार बदली तो पिछले साल वित्त मंत्री ने पंजाब सरकार को एक ख़त लिखा था। पंजाब ने आर्थिक मदद के लिए केंद्र को पत्र लिखा था मगर वित्त मंत्री जेटली ने नकार दिया। अपने पत्र में वित्त मंत्री जेटली ने न सिर्फ पंजाब सरकार को सलाह दी थी कि वे बिजली की सब्सिडी को थोड़ा बेहतर करें। जेटली ने यह भी लिखा कि पिछली सरकार ने भी पंजाब को उसके हिस्से से ज़्यादा पैसे दिये हैं। उस पत्र में जेटली ने गिना दिये थे कि कब कब केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार का कर्जा माफ किया है।
इस साल भी पंजाब के मुख्यमंत्री ने किसानों की मदद के लिए केंद्र को दो दो पत्र लिखे हैं। 24 अप्रैल और इसी महीने कि पंजाब का किसान भिखारी होने की स्थिति में पहुंच गया है। केंद्र सरकार किसानों पर बैंकों का जो बकाया है तुरंत माफ करे। मुख्यमंत्री बादल चाहते हैं कि मोदी सरकार 52 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का लोन माफ कर दे। क्या ये पत्र पंजाब के आर्थिक संकट को बताने के लिए काफी नहीं है। आए दिन पंजाब में प्रदर्शन हो रहे हैं। 22 सितंबर 2015 की ट्रिब्यून की ख़बर है कि मोहाली में पंजाब और केंद्र शासित कर्मचारी संघर्ष कमेटी ने एक रैली निकाली है। उनकी मांग थी कि राज्य सरकार ने 25 अप्रैल 2014 को मान लिया था कि छठे वेतन आयोग को लागू करेंगे।
सरकार नई भर्तियां भी नहीं कर रही है जबकि एक लाख से ज्यादा पद खाली हैं। यही नहीं जब पंजाब सरकार ने विज्ञापन निकाला कि डाक्टरों की भर्ती होगी मगर उन्हें तीन साल तक के लिए 15,600 रुपये ही महीने का वेतन मिलेगा तो काफी हंगामा हुआ था। विज्ञापन की प्रतियां जलाईं गईं। डाक्टरों के लिए 414 भर्तियां निकलीं लेकिन इंटरव्यू देने आए सिर्फ ढाई सौ डाक्टर। 90 डाक्टरों ने ही नौकरी ज्वाइन की। लाखों रुपये की फीस देकर डाक्टरी पढ़ने वाले छात्र तीन साल तक साढ़े पंद्रह हज़ार की फिक्स तनख्वाह पर कैसे काम कर सकते थे।
स्थायी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन तो मिल जा रहे हैं लेकिन टाइम्मस आफ इंडिया के रिपोर्टर रोहन दुआ ने लिखा है कि 2600 करोड़ रूपये के बिल ट्रेजरी में पेंडिंग है। पंजाब विश्वविद्यालय के तहत 4 कांस्टिट्युएंट कालेज हैं। इन चार कालेजों के वेतन के लिए राज्य सरकार 6 करोड़ रुपये देती है। पंजाब विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने कहा है कि राज्य सरकार ने इस बार के अपने बजट में 6 करोड़ की मंज़री नहीं दी है।
वैसे यूजीसी ने भी सैलरी के लिए दिया जाने वाला पैसा नहीं दिया है जिसे लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है। क्या ये सब पंजाब के आर्थिक संकट की तरफ इशारा नहीं करते हैं। पंजाब में 2007 से अकाली बीजेपी की सरकार है। लेकिन क्या सिर्फ पंजाब ही कर्ज में है। 12 मई 2015 को भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एक रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में दिखाया गया है कि किस राज्य पर कितना कर्ज़ा है। राज्यों की इस सूची में पंजाब दसवें नंबर पर है जबकि सबसे औद्योगिक माना जाने वाला राज्य महाराष्ट्र पहले नंबर पर है।
- महाराष्ट्र पर कर्ज़े का बोझ 3,38,730 करोड़ है।
- दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है। जिस पर 2,93,620 करोड़ का बोझ है।
- तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है। जिसका कर्जा 2,80,440 करोड़ है।
- पंजाब का कर्ज़ा है 1, 13070 करोड़ रुपया है।
- इस सूची में छह राज्य ऐसे हैं जिन पर एक से डेढ़ लाख करोड़ का कर्ज़ है।
महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल निश्चित रूप से पंजाब से बड़े राज्य हैं। लेकिन क्या पंजाब सरकार की सामाजिक योजनाओं के कारण स्थिति खराब है। लोकलुभावन योजनाओं पर सब्सिडी बिल ने सरकार की कमर तोड़ दी है। यह भी खबरें मिल रही हैं कि कई सामाजिक योजनाओं के बजट में कटौती की जा रही है। केंद्र ने अपने हिस्से का पैसा तो दे दिया है मगर राज्य सरकार नहीं दे पा रही है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार-
- सिंचाई के लिए मुफ़्त बिजली योजना ने भारी बोझ डाला है।
- केंद्र सरकार की स्कीम के अलावा बीपीएल के लिए अपनी भी मुफ़्त आटा-दाल स्कीम शुरू की जो इन दिनों पैसे की कमी के कारण मुश्किल में।
- ये भी आरोप लगता है कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल संगत दर्शन के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर देते हैं।
- ऊपर से सरकारी कर्मचारियों का बोझ... जानकारों के मुताबिक देश के अधिकतर राज्यों के मुक़ाबले पंजाब के सरकारी कर्मचारियों की तनख़्वाह कहीं ज़्यादा है।
- इस सबके आधार पर बादल सरकार पर आरोप है कि वो अधिकतर पैसा ग़ैर ज़रूरी और अनुत्पादक खर्चों में इस्तेमाल करती है यानी Unproductive use...
शुक्रवार को स्क्रोल डाट इन पर एम राजशेखर ने पंजाब के उद्योगों पर एक लंबी रिपोर्ट की है। राजशेखर ने लिखा है कि पंजाब में बंद होने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई कंपनियां राज्य छोड़ कर भी जा रही हैं। काटन से लेकर साइकिल उद्योग राज्य से पलायन कर रहे हैं। लुधियाना में इनका गढ़ हुआ करता था मगर अब यहां के उद्योगपति अपना विस्तार दूसरे राज्यों में कर रहे हैं। इन पर निर्भर रहने वाली छोटी फैक्ट्रियां भी बंद होने के कगार पर हैं। राजशेकर ने एक रीयल इस्टेट कंपनी के मालिक अमरजीत सिंह के हवाले से लिखा है कि लुधियाना इंडस्ट्रीयल एरिया में सिर्फ 40 फीसदी कंपनियां ही बची हैं। 30 प्रतिशत कंपनियों ने अपने कारखाने किराये पर दे दिये हैं।
30 प्रतिशत के करीब बंद हो गई हैं। जालंधर के खेल उद्योग की हालत भी खराब चल रही है। उद्योंगों के बंद होने के अंतराष्ट्रीय कारण भी होते हैं। लेकिन मेक इन इंडिया के दौर में लुधियाना जालंधर और मंडी गोबिंदगढ़ के कारखाने बंद हो रहे हैं । चीन से सस्ता आयात, अंतराष्ट्रीय स्तर पर मांग में कमी तो कारण है लेकिन आतंरिक राजनीतिक कारण भी हैं। कंपनियों का कहना है कि बिजली और टैक्स की दरें पंजाब में बढ़ती ही जा रही हैं।
राजशेकर की रिपोर्ट यह भी बताती है कि पंजाब की कंपनियों पर अपना मुनाफा राजनीतिक दलों के साथ साझा करने का भी दबाव रहता है। पंजाब रोडवेज की हालत खराब है। इसकी वजह राजनीतिक बताई जाती है। विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि सत्तारूढ पार्टी के नेता अपनी अपनी बस कंपनियां चला रहे हैं। क्या पंजाब की आर्थिक हालत ख़राब है। क्या यह सही नहीं है कि पंजाब सरकार केंद्र से बेल आउट पैकेज मांग रही है। सितंबर 2014 की हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर है कि पंजाब ने केंद्र से एक लाख करोड़ से ज्यादा का बेलआउट पैकेज मांगा है।