विज्ञापन
This Article is From Jun 30, 2015

धौलपुर महल पर जारी है महाभारत

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जुलाई 01, 2015 11:55 am IST
    • Published On जून 30, 2015 21:24 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 01, 2015 11:55 am IST
नमस्कार मैं रवीश कुमार, हालांकि इसका राजस्थान के धौलपुर हाउस से कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन उत्तराखंड से हमारे सहयोगी दिनेश मानसेरा ने जो जानकारी भेजी है, उसे जान लेने से हमारी जान नहीं अटक जाएगी। मुआमला यह है कि राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री हैं जो इस वक्त सांसद बने हुए हैं, लेकिन इसके बाद भी वे राज्य सरकार से पूर्व मुख्यमंत्री को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं।

नैनिताल से बीजेपी सांसद भगत सिंह कोशियारी को देहरादून में पूर्व मुख्यमंत्री के नाते एक सरकारी मकान मिला हुआ है। इस बंग्ले की साज सज्जा, बिजली टेलिफोन बिल, माली बागवानी गार्ड कार पर राज्य सरकार साल में लाखों रुपये खर्च करती है। पूर्व मुख्यमंत्री के नाते इन्हें तीन सहायक रखने के लिए हर महीने 85 हज़ार रुपये मिलते हैं। गुरविंदर सिंह चड्‌ढा ने आरटीआई से जानकारी हासिल की है कि एक साल में उत्तराखंड जैसा छोटा राज्य एक पूर्व मुख्यमंत्री के आवास और सुरक्षा सुख सुविधा पर साल में चालीस लाख रुपया खर्च कर देता है। इसी तरह से ये हरिद्वार से बीजेपी सांसद रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक का बंगला है। निशंक का देहरादून में अपना निजी मकान है लेकिन नियम के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री के नाते इन्हें ये बंगला मिला हुआ है।

आरटीआई की जानकारी बताती है कि 2010 से 2011 के बीच यानी एक साल में पूर्व मुख्यमंत्री के नाते निशंक को मिली सरकार कार UK07GA0777 के पेट्रोल और रखरखाव पर 22 लाख रुपया खर्च हुआ है। पौड़ी गढ़वाल से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी को भी पूर्व मुख्यमंत्री के नाते बंगला मिला हुआ था जो उन्होंने हाल ही में वापस कर दिया है। नारायण दत्त तिवारी के पास दो-दो राज्य में पूर्व सीएम के नाते बंगले और तमाम सुविधाएं मिली हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा उत्तराखंड से विधायक बनने के बाद भी दिल्ली में मिले सरकारी मकान को छोड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे नियम अन्य राज्यों में भी हैं लेकिन सरकारी संसाधन का आपसी बंटवारा इसी तरह होता रहा तो एक दिन राजधानी के सारे मकान पूर्व मुख्यमंत्रियों में प्रसाद की तरह बंट जाएगा। ठीक है कि कोई ऐसे सवालों को नहीं उठाता मगर क्या यह सवाल जायज़ नहीं है कि सासंद के तौर पर मकान और तनख्वाह मिल ही रहा है तो उसी समय में पूर्व मुख्यमंत्री के नाते ये सब क्यो ले रहे हैं। हमारे नेता हर काम देश के नाम पर करते हैं मगर देश के एक मकान और कार का मोह नहीं छोड़ पाते। इसी का लाभ उठाकर आपदा प्रबंधन के घोटालेबाज़ स्कूटर में डीज़ल भरवा देते हैं।

लेट्स गो टू राजस्थान। सवाल यह था कि वसुंधरा राजे ने भारत के खिलाफ जाकर, ललित मोदी के लंदन में बसने के लिए गुप्त हलफमाना देकर गुनाह किया या नहीं। मगर अब यह सवाल बहुत आसानी से सुषमा स्वराज के ट्रैवल डाक्यूमेंट दिलाने के मामले की तरह पीछे छूटता जा रहा है। हर दिन आने वाला एक नया आरोप वसुंधरा के लिए ढाल ही बन रहा है। नया मामला इतना उलझा हुआ है कि इसे अदालत ही सुलझा सकती है। धौलपुर पैलेस सरकार का है या वसुंधरा के बेटे और सांसद दुष्यंत सिंह का है।

आगरा वाले चाहें तो मात्र 46 किमी की दूरी तय कर धौलपुर के इस राजनिवास पैलेस पहुंच सकते हैं। ये राजस्थान के खूबसूरत हेरिटेज होटलों में गिना जाता है। धौलपुर रियासत 1779 से ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश हुकूमत के संरक्षण में रही है। 1949 में आज़ाद भारत में विलय के कुछ समय बाद इसका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया और 1977 से ये सरकारी संपत्ति है। ये इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है कि दुष्यंत सिंह की कंपनी ने अपने बहिखाते में इसे निजी संपत्ति के रूप में दावा किया है और इसी के आधार पर वे अपनी कंपनी को इस लायक बताते हैं कि कोई ललित मोदी जैसा कारोबारी 10 रुपये का शेयर 96 हज़ार में खरीदता है। कांग्रेस पार्टी 10 दस्तावेज़ों के सहारे यह साबित करने में लगी है कि यह धौलपुर हाउस सरकार की संपत्ति है। इसे निजी संपत्ति बताकर दुष्यंत सिंह की कंपनी ने अपराध किया है।

जयराम रमेश तो कहते हैं कि जब तक वसुंधरा का इस्तीफा नहीं होगा ऐसे दस्तावेज़ निकलते रहेंगे। इसके लिए कांग्रेस नेशनल आक्राइव से 1949 के दस्तावेज़ निकाल लाई दिखाने के लिए कि धौलपुर हाउस सरकार की संपत्ति है। कांग्रेस ने आज 2010 का राजस्थान सरकार का एक दस्तावेज़ दिखा कर बताया कि धौलपुर हाउस की ज़मीन की मालिक सरकार है।

लेकिन जब 2010 में इसका नेशनल हाईवे अथारिटी ने अधिग्रहण किया तो इसका मुआवज़ा दुष्यंत सिंह ने लिया। वो भी दो करोड़। जयराम रमेश का कहना है कि 10 अप्रैल 2013 को दो लोगों ने सीबीआई से शिकायत की थी कि दुष्यंत सिंह मालिक नहीं हैं तो मुआवज़ा कैसे ले लिया। जयराम रमेश ने बताया कि यह अपने आप में एक फ्राड है जिसकी सीबीआई रिपोर्ट का आज भी इंतज़ार है। इसके अलावा 17 मई 2007 का भरतपुर के अतिरिक्त ज़िला जज का आदेश भी दिखाया गया जिसके आधार पर उनका दावा है कि कोर्ट ने दुष्यंत को कहा कि वे धौलपुर महल में रखी अचल संपत्ति को ले जा सकते हैं। इन सब दलीलों से पार्टी साबित करती रही कि धौलपुर पैलेस दुष्यंत सिंह की निजी संपत्ति नहीं है।

बीजेपी कहती है कि 1949 का दस्तावेज़ सही है लेकिन 1959 में केसर बाग पैलेस देकर दुष्यंत सिंह ने धौलपुर पैलेस ले लिया था। बीजेपी ने भी ब़ड़ा भारी प्रेस कांफ्रेंस किया लेकिन कांग्रेस की तरह कोई भी दस्तावेज़ पत्रकारों को नहीं पकड़ाये मगर अपने पक्ष में दस्तावेज़ों को दिखाया ज़रूर।

बीजेपी का कहना है कि 2010 में दुष्यंत सिंह को दो करोड़ का मुआवज़ा मिला तब तो दिल्ली और जयपुर दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। जब 10 अप्रैल 2013 को दो लोगों ने सीबीआई से शिकायत की तब कांग्रेस ने जांच क्यों नहीं की। बीजेपी कहती है कि 17 मई 2007 के आदेश से दुष्यंत सिंह के पक्ष में चल अचल संपत्ति आई है। हमारी सहयोही हर्षा कुमारी सिंह ने भी कहा है कि इस आदेश को पूरा पढ़ने पर यही लगता है कि धौलपुर पैलेस दुष्यंत सिंह को मिला हुआ है। बीजेपी ने उसी आदेश का एनेक्सचर 9 पढ़कर सुनाया जिसमें लिखा है कि वारिस को धौलपुर सिटी पैलेस पर हक बनता है। 2009 का गजट नोटिफिकेशन कहता है कि धौलपुर पैलेस एक निजी संपत्ति है।

1980 में धौलपुर कोर्ट में हेमंत सिंह ने बयान दिया था कि घौलपुर पैलेस उन्हें पूरे जीवनकाल के लिए मिला है लेकिन केसरबाग के बदले इसे उन्हें परिवार को दे दिया गया। तो क्या कांग्रेस दस्तावेज़ों के कुछ हिस्सों को लीक कर रही है जो उसे सूट कर रहा है या बीजेपी उन हिस्सों को लीक कर रही है उसे सूट कर रहा है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
वसुंधरा राजे, दुष्यंत सिंह, धौलपुर पैलेस, ललित मोदी, Vasundhara Raje, Dushyant Singh, Dhaulpur Palace, Lalit Modi, Prime Time Intro, प्राइम टाइम इंट्रो
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com