मीडिया में घनघोर चर्चा के बाद राज्य सभा में अगुस्ता वेस्टलैंड रिश्वतकांड पर चर्चा हुई। चर्चा से पहले इस तरह से समां बांधा गया कि एक से एक सबूतों के तीर चलेंगे। कभी इधर से कोई घायल होगा तो कभी उधर से घायल होगा। किसी के पास जवाब नहीं होगा और अदालत से पहले फैसला अभी और इसी वक्त हो जाएगा। जिन दर्शकों ने इस खबर के हर बारीक पहलू पर नज़र रखी है उन्हें राज्य सभा की साइट पर जाकर हर किसी का भाषण पढ़ना चाहिए यह देखने के लिए राज्य सभा में जब चर्चा हुई तो क्या नए तथ्य सामने रखे गए। क्या ऐसी बातें कही गईं जो मीडिया की चर्चा में नहीं कही गई। चर्चा की शुरुआत बीजेपी सांसद भूपेंद्र यादव ने की और तुरंत जवाब दिया कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने। इस मसले पर चर्चा इतनी देर तक चली कि सभी के भाषणों को समझ कर एक एक बिन्दु के हिसाब से तर्कों और तथ्यों को शायद हम पूरी तरह नहीं रख सकें लेकिन प्रयास करेंगे।
समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव, बसपा नेता मायावती और जेडीयू नेता शरद यादव की बातों से लगा कि वे इस चर्चा में अंपायर की भूमिका में रहना चाहते हैं। इनके रुख से कांग्रेस इस रूप में देख सकती है कि उसे सपा और बसपा दोनों का साथ मिला। मिला तो शरद यादव का भी साथ, लेकिन सख्त नसीहत के साथ कि कांग्रेस और बीजेपी के नेता इस मसले पर बयानबाज़ी बंद करें। रामगोपाल यादव ने कहा कि जांच से पहले इस तरह की बयानबाज़ी से रक्षा सौदों पर असर पड़ेगा और सैनिकों का मनोबल गिरता है। शरद यादव ने कहा कि जनता ने विपक्ष को गाल बजाने का मौका दिया है तो गाल हम बजाएंगे पर सरकार को तो काम करने का मौका दिया है। वो क्यों गाल बजा रही है। वो क्यों बयानबाज़ी कर रही है और कांग्रेस क्यों इस बयानबाज़ी में उलझी हुई है। इस मामले में कोई दम नहीं है। सरकार बताये कि वो दो साल से इस मामले में क्या कर रही है।
शरद यादव ने बीजेपी से कहा कि यूपीए काल में सदन में भ्रष्टाचार के मामले वे उठाते रहे लेकिन उनका दल छोटा था। इसलिए लोकसभा चुनाव में लाभ बीजेपी को मिला। अब सरकार बन गई है तो वो अपनी एजेंसियों को सक्रिय करे, दोषी को पकड़े लेकिन बरसों की कमाई राजनीतिक साख पर बिना किसी ठोस आधार के हमला न करे। इससे सूखा, महंगाई और बेरोज़गारी जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा नहीं हो पा रही है।
मायावती ने भी शरद यादव की लाइन पर चलते हुए सवाल उठा दिया कि जब भारत में जांच ही पूरी नहीं हुई है तो सदन में चर्चा कराना कहां तक उचित है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों आरोप लगा रहे हैं। दोनों एक दूसरे के तथ्य को गलत बता रहे हैं इसलिए ज़रूरी है कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो। क्या चर्चा से पहले हमारे पास सारे तथ्य उपलब्ध हैं। इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने के मायावती के प्रस्ताव को एनसीपी के सांसद माजिद मेमन ने भी कहा। बीजेपी जब विपक्ष में थी और अगुस्ता का मामला उठा तब वो भी यही कहती थी कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए। देखना होगा कि मोदी सरकार इसके लिए तैयार होती है या नहीं। कांग्रेस, बीजेपी की तरफ से सच्चाई के दावे किये गए। इस सच्चाई के बाद भी मामले को अदालत में ही साबित होना है जिसकी मांग सबने की। कांग्रेस ने कहा कि सरकार सदन में दस्तावेज़ों की प्रमाणिक कॉपी रखे। सत्ता पक्ष से आवाज़ आई कि पहले कांग्रेस के लोग अपने सबूतों को सत्यापित करें। अधिकृत दस्तावेज़ तो सरकार के ही पास होते हैं। कायदे से उसके ही सत्यापन की मान्यता होती लेकिन बात आगे बढ़ गई। बीजेपी की तरफ से सुब्रमण्यिन स्वामी ने सीएजी की रिपोर्ट, ए के एंटनी के बयान और इटली की अदालत के फैसले के अधार पर कहा कि पहले हमें देखना होगा कि इस मामले में स्वीकृत तथ्य क्या हैं। उन तथ्यों के आधार पर आपराधिक मामले क्या बनते हैं \ और जो हम जानते हैं उसके आधार पर कैसे आगे बढ़ें।
2013 में सदन में सीएजी की रिपोर्ट रखी गई थी जिसमें कहा गया था कि यह सही है कि एन डी ए के समय वीवीआईपी के लिए आठ हेलिकाप्टर खरीदने का फैसला हुआ था ताकि वी वी आई पी दूर दराज़ के इलाकों और सियाचिन जैसी जगहों पर जा सकें। इसलिए उनके हेलिकाप्टर को 6000 मीटर से ऊपर उड़ना चाहिए। एयरफोर्स का भी यही मत था कि 6000 मीटर से ऊपर उड़े ताकि कंधे पर राकेट लांचर रखकर कोई निशाना न लगा दे। जब यह पता चला कि अगुस्ता वेस्टलैंड तो 4000 मीटर से ऊपर नहीं उड़ सकता तो कम ऊंचाई पर उड़ने वाली शर्तों को लाया गया ताकि अगुस्ता को फायदा हो सके। स्वामी ने कहा कि कांग्रेस का यह कहना कि उड़ान की ऊंचाई कम करने का काम एन डी ए के समय हुआ और वो भी तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने किया, बिल्कुल गलत है।
जनवरी 2004 में राज्य सभा में पूछा गया था कि क्या यह सही है कि वायु सेना ने सुझाव दिया था कि वीवीआईपी हेलिकाप्टर के उड़ने की ऊंचाई 6000 मीटर होनी ही चाहिए। इसे बदला गया है। तो तब के रक्षा मंत्री ने कहा था कि हां यह सही बात है। 8 फरवरी 2010 को 12 वीवीआईपी हेलिकाप्टर खरीदने का करार अगुस्ता वेस्टलैंड के साथ हुआ है। तकनीकि शर्तों में बदलाव किये गए हैं लेकिन तमाम पक्षों के साथ बातचीत के बाद ही।
हमने 11 दिसबंर 2013 को राज्य सभा में दिये गए जवाब की कॉपी भी देखी। स्वामी की बात सही है। इस लिखित जवाब में ए के एंटनी ने कहा कि तकनीकि शर्तों में बदलाव इसलिए भी किया गया है ताकि कई वेंडर इस प्रक्रिया में शामिल हो सकें। स्वामी इस तथ्य के सहारे यह साबित करना चाहते थे कि एंटनी यह मान रहे हैं कि उड़ान की ऊंचाई का निर्धारण एन डी ए के समय में नहीं बल्कि यूपीए के समय में हुई। स्वामी ने यह भी कहा कि कांग्रेस के लोग आरोप लगाते हैं कि महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ने भी अगुस्ता से हेलिकाप्टर लिये हैं। लेकिन वहां पर दुश्मन का खतरा नहीं है, जैसा सियाचिन में है। वहां कम ऊंचाई पर उड़ान भरने से कोई कंधे पर मिसाइल रखकर दाग सकता है। सियाचिन में 2003 में पाकिस्तान के साथ हुए सीज़ फायर के बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन उससे पहले राकेट दागे गए हैं।
आप जानते हैं कि 2011 में सीएजी ने छत्तीसगढ़ में भी अगुस्ता हेलिकाप्टर की खरीद को लेकर अनियमितता के आरोप लगाए हैं। स्वामी ने यूपीए को घेरने के लिए 2013 की सीएजी रिपोर्ट का ज़िक्र तो किया मगर वे 2011 की रिपोर्ट का ज़िक्र करना शायद भूल गए होंगे। हमने छत्तीसगढ़ के जानकारों से अपने स्तर पर पता लगाया कि क्या वहां अगुस्ता जैसे हेलिकाप्टर के उड़ने पर कोई खतरा नहीं है। हमें बताया गया कि कंधे पर लांचर रखकर मिसाइल तो नहीं दागी गई है मगर मगर टेक आफ और लैंडिंग के समय दो बार वायु सेना के और एक बार सीमा सुरक्षा बल के हेलिकाप्टर को निशाना बनाया गया है। इसलिए स्वामी का यह कहना कि छत्तीसगढ़ में अगुस्ता जैसे हेलिकाप्टर को कोई खतरा नहीं है, सही नहीं है। वो यह भी भूल गए कि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नक्सल समस्या के कारण वहां भी युद्ध जैसी स्थिति बनी रहती है। स्वामी ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने जब खरीदा तब अगुस्ता वेस्टलैंड को ब्लैक लिस्ट नहीं किया गया था। अब सवाल यह पूछा जा सकता था कि जब 2011 में सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में हेलिकाप्टर की ख़रीद पर सवाल उठाया तब छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार और केंद्र की यूपीए सरकार ने क्या किया था। क्या कोई जांच हुई, क्या कोई बर्खास्त हुआ।
हर पक्ष अपनी अपनी पसंद के हिस्से को चुन कर बोल रहा था। बहस के दौरान तब के रक्षा मंत्री ए के एंटनी भी सदन में थे। स्वामी ने कहा कि जिस कमेटी ने उड़ान की ऊंचाई घटाने का फैसला किया उसने एंटनी को भी ओवररूल किया। हो सकता है कि ये किसी और के कहने पर हुआ हो। स्वामी ने इस मामले में मनमोहन सिंह को भी ईमानदार बताया मगर कहा कि उनकी एक ही कमी है दबाव में आ जाते हैं। उन्होंने मनमोहन सिंह से पूछा कि इटली की कोर्ट को दस्तावेज़ न देने का फैसला आपका था, कैबिनेट का था या किसका था आपको बताना चाहिए। सारी बहसों को सुनकर पेश करने का समय कम था इसलिए ध्यान नहीं है कि कांग्रेस या मनमोहन सिंह ने स्वामी के इस आरोप का जवाब दिया या नहीं लेकिन सदन में ए के एंटनी ने उड़ाई की ऊंचाई के मसले पर सफाई ज़रूर दी।
सरकार की तरफ से वक्ताओं ने उड़ान की ऊंचाई घटाने पर काफी ज़ोर दिया और इस आधार पर संदेह पैदा करने की कोशिश की यह सब अगुस्ता को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया। इटली की कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इसके प्रमाण नहीं मिलते कि त्यागी ने फ्लाइट सीलिंग की शर्तों को बदलकर अगुस्ता वेस्टलैंड को लाभ पहुंचाया। अब ऊंचाई को लेकर इटली की अदालत कुछ कह रही है और हमारे नेता कुछ और। फैसले का अनुवाद हुआ है या नहीं या इसकी कोई सार्वजनिक कॉपी उपलब्ध है या नहीं साफ नहीं है। स्वामी ने यह भी कहा कि सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार वीवीआईपी के लिए 8 हेलिकाप्टर लिये जाने थे मगर चार और जोड़ दिये गए। सीएजी ने कहा है कि 8 हेलिकाप्टर का ही उपयोग नहीं हो रहा था, चार और खरीदने का फैसला फिज़ूलखर्ची है। एंटनी ने कहा कि 12 हेलिकाप्टर खरीदे जाने थे। 8 वीआईपी के लिए और 4 गैर वीआईपी के लिए।
सीएजी रिपोर्ट को आधार बनाकर स्वामी ने दलीलें तो पेश की लेकिन आनंद शर्मा जब बोलने के लिए उठे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान याद दिला दिया जो उन्होंने पीएम बनने के बाद गुजरात विधानसभा में हुए विशेष सत्र में कहा था। 22 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीएजी की रिपोर्ट का इस्तेमाल राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के लिए नहीं किया जाना चाहिए। ये जो रिपोर्ट होती है वो सुधार के सुझावों के लिए होती है। सरकारों को सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए। आनंद शर्मा ने कहा कि वित्त मंत्री का भी सीएजी के राजनीतिक इस्तेमाल न करने पर एक बयान है।
स्वामी ने एक और गंभीर आरोप लगाया कि हेलिकाप्टर का ट्रायल विदेशों में हुआ लेकिन जिस हेलिकाप्टर को खरीदा जाना था उसका ट्रायल नहीं हुआ। किसी और हेलिकाप्टर का ट्रायल हुआ उन्होंने नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों इशारों में साफ-साफ कह दिया कि सोनिया गांधी से भी पूछताछ होनी चाहिए। स्वामी ने वाजपेयी सरकार के सबसे ताकतवर नौकरशाह और भारत के प्रथम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भी नहीं बख्शा। ब्रजेश मिश्रा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब जिंदा थे तो वाजपेयी सरकार की आंख और कान थे। नाक भी। उनके रुतबे के सामने बड़े बड़े मंत्री और सांसद फीके पड़ जाते थे। बुधवार को जब स्वामी ने सदन में ब्रजेश मिश्रा पर टिप्पणी की तो कोई नहीं बोला जबकि बहुत से लोग ब्रजेश मिश्रा के समय भी बीजेपी की सरकार में मंत्री और सांसद थे।
स्वामी ने कहा कि मुझे हैरानी होती है कि आखिर किस सेवा के लिए यूपीए ने उन्हें इतना ऊंचा सम्मान दिया। आप जानते हैं कि यूपीए के समय में ब्रजेश मिश्रा को पद्म विभूषण दिया गया था। स्वामी ने कहा कि वे एक दिन ज़रूर पता कर लेंगे कि ब्रजेश मिश्रा को कैसे यह पुरस्कार मिला। ब्रजेश मिश्रा बीजेपी के सक्रिय सदस्य भी थे और पार्टी के विदेश नीति ईकाई के प्रमुख भी रहे हैं। वक्त क्या क्या खेल दिखाता है। स्वामी बोल सकें इसके लिए संसदीय कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने चार वक्ताओं को वापस ले लिया और उनका समय स्वामी को दे दिया। एक दिन स्वामी जी अटल बिहारी वाजपेयी की भी कॉपी चेक करने लगेंगे।
बीजेपी कहती रही कि एक ही कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव हुआ। कांग्रेस के नेता कहते रहे कि हर बार चार चार कंपनियों ने टेंडर में हिस्सा लिया। बल्कि वाजपेयी के समय से ही इस बात का ख्याल रखा गया कि टेंडर में सिर्फ एक कंपनी हिस्सा न ले। स्वामी ने आरोप लगाया था कि बाहर के मुल्कों में ट्रायल हुआ यह ठीक है मगर जिस हेलिकाप्टर को खरीदा जाना था उसकी जगह किसी और हेलिकाप्टर का हुआ। आनंद शर्मा ने साफ साफ कहा कि यह बात पूरी तरह से ग़लत है। यह वायुसेना को बदनाम करने वाली बात है। ट्रायल दोनों हेलिकाप्टर के हुए। सचमुच यह गंभीर आरोप है। वायुसेना को भी साफ करना चाहिए कि क्या ट्रायल दूसरे हेलिकाप्टर का हुआ। तभी पता चलेगा कि आनंद शर्मा सही बोल रहे हैं या स्वामी। ऐसा लग रहा था कि एक ही फाइल का एक पन्ना लेकर कांग्रेस आरोप लगा रही है। दूसरा पन्ना फाड़कर बीजेपी आरोप लगा रही है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के जवाब का सबका इंतज़ार था। उन्होंने कहा था कि इटली की अदालत के पेपर में जो जो नाम आए हैं हमारी जांच उस पर केंद्रित होगी। इससे देश की छवि को धक्का पहुंचा है। पर्रिकर ने भी कहा कि प्रक्रिया में बदलाव एक ही कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।
जब इटली की अदालत का फैसला आया था तब मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि फैसले का अनुवाद हो रहा है क्योंकि इतालवी भाषा में लिखा गया है। अनुवाद करने में हफ्ता लग सकता है। यह साफ नहीं है कि फैसले का अनुवाद हुआ है या नहीं। स्वामी ने तो दावा किया कि उन्होंने फैसले की पूरी कॉपी पढ़ी है। रक्षा मंत्री ने ऐसा कोई दावा किया या नहीं, मैं नहीं कह सकता। अगर हो गया है तो उसकी कॉपी सार्वजनिक होनी चाहिए। यह सारी बहस इस बुनियाद पर सदन तक पहुंची कि इसमें सोनिया गांधी की भूमिका नज़र आती है। सदन में सोनिया गांधी का नाम नहीं लिया गया। सुब्रम्णियन स्वामी ने तो इशारे में कह दिया कि पूछताछ होनी चाहिए मगर पर्रिकर ने ऐसा कोई नाम नहीं लिया न इशारा किया। उन्होंने ज़रूर कहा कि किसी को नहीं छोड़ेंगे। रिश्वत दी गई तो पता लगायेंगे।
इटली की जिस कोर्ट ने फैसला दिया है उसके जज मार्को मारिया मैगा ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा है कि मेरा जो फैसला है वो भारतीय राजनेताओं को क्लिन चिट नहीं देता है। अब भारत पर निर्भर करता है कि वो अपने राजनेताओं की भूमिका के बारे में कैसी जांच करता है। जब ये पूछा गया कि इटली की जांच के दौरान सोनिया गांधी का नाम भी सामने आया है तो जज ने कहा कि हमारे पास सबूत नहीं हैं। नेताओं के शामिल होने के कुछ संकेत भर हैं। उनका अलग-अलग मतलब निकाला जा सकता है। ये संकेत हैं कि दलाल मिशेल का कुछ और लोगों से संबंध रहा होगा। हश्के के ब्राइबरी नोट में जिन लोगों को रिश्वत दी गई उनमें AP ( भारत एक अहम नेता) का नाम है। जज ने कहा कि जब हैश्के से पूछा गया कि एपी का मतलब क्या है तो हैश्के का जवाब बड़ा ही अस्पष्ट था। उसने कहा कि याद नहीं है कि एपी किसके लिए लिखा था। जज ने यह ज़रूर कहा कि जो भी एपी है उसे रिश्वत मिली है। जज मार्को मारिया मैगा के मुताबिक यूपीए सरकार ने हमें सिर्फ़ तीन दस्तावेज़ दिए जिनसे केस कमज़ोर हो गया। त्यागी परिवार के अलावा मैं भारत के किसी और अधिकारी और नेता के बारे में कुछ नहीं कह सकता। हम जानते हैं कि त्यागी परिवार ने अगुस्ता वेस्टलैंड की मदद की। दस्तावेज़ ये साफ़ करते हैं। जज ने यह भी कहा कि वायु सेना के पूर्व प्रमुख के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलते हैं। आप ये इंटरव्यू एनडीटीवी डॉटकॉम पर पूरा पढ़ सकते हैं। बरखा दत्त और नुपूर तिवारी ने ये इंटरव्यू किए हैं।
This Article is From May 04, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : राज्यसभा में अगुस्ता पर बहस में एक-दूसरे पर आरोप
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 04, 2016 21:26 pm IST
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Published On मई 04, 2016 21:24 pm IST
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Last Updated On मई 04, 2016 21:26 pm IST
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