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This Article is From Apr 13, 2016

कर्ज़खोरों के खुलासे पर सरकार, आरबीआई की गैरकानूनी दलील

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 13, 2016 16:16 pm IST
    • Published On अप्रैल 13, 2016 13:40 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 13, 2016 16:16 pm IST
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा है, "कुछ हज़ार रुपये कर्ज़ लेने वाले किसानों से वसूली के लिए सख्ती की जाती है, पर हज़ारों करोड़ का कर्ज़ लेने वाले कॉरपोरेट मौज करते हैं..." 500 करोड़ रुपये से अधिक के बड़े कर्ज़दारों के नाम सार्वजनिक करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख सॉलिसिटर जनरल ने विरोध करते हुए कहा, "ऐसा करने से अनुबंध का उल्लंघन होगा और इससे इकोनॉमी को भी नुकसान हो सकता है..." क्या सरकार की दलीलें गैरकानूनी हैं...?

छोटे कर्ज़दारों और गारंटरों के नाम क्यों सार्वजनिक होते हैं - पिछले हफ्ते एक राष्ट्रीय दैनिक में बैंक से लिए कर्ज़ का भुगतान न होने पर गारंटरों की फोटो छापकर उनके खिलाफ नोटिस जारी किया गया था। अगर गारंटरों के विवरण और फोटो अखबारों में छापे जा सकते हैं, तो फिर बड़े लोन के बकायादारों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं हो सकते...? आरबीआई की यह दलील थोथी है कि नाम सार्वजनिक करने से अनुबंध का उल्लंघन होगा। सच यह है कि कर्ज़ भुगतान में विफल बड़े कर्ज़दारों तथा गारंटरों के खिलाफ बैंक पब्लिक नोटिस जारी करने और आपराधिक कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।

'नेम एंड शेम' पर सुप्रीम कोर्ट की लग चुकी है मुहर - ज़मीन तथा मकान की किस्तों का भुगतान न करने पर बकायादारों को पब्लिक नोटिस से चेतावनी दी जाती है, जिससे बकाया रकम की वसूली में मदद मिलती है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने निजी ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के डायरेक्टरों को पब्लिक अथॉरिटी माना है, फिर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक किस आधार पर गोपनीयता का दावा कर सकते हैं...? सुप्रीम कोर्ट में अन्य फैसलों में 'नेम एंड शेम' पर मुहर लगाई है। देश के बैंकों में लगभग 80 लाख करोड़ रुपये की जमा पूंजी है, जिसमें 75 फीसदी राशि छोटे बचतकर्ताओं की है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत बकायादारों की जानकारी लेने का संवैधानिक अधिकार है।

कर्ज़दारों का नाम सार्वजनिक करने के कानूनी प्रावधान एवं श्वेतपत्र - बैंकों के कर्ज़ों का 14.1 फीसदी, जो लगभग आठ लाख करोड़ रुपये हैं, स्ट्रेस लोन (ऐसा कर्ज़, जो संकट में हो) की श्रेणी में है, फिर इससे बड़ा खतरा इकोनॉमी को और क्या हो सकता है...? सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) जनता के पैसे से चलते हैं, फिर किस आधार पर बकायादारों की जानकारी देने की आरटीआई को रिजर्व बैंक ने रिजेक्ट कर दिया था...? सरकार द्वारा 2013-15 के दौरान इन बैंकों की 1.14 लाख करोड़ की रकम बट्टेखाते में डाल दी गई, जिसका विवरण भी आरटीआई में नहीं दिया जा रहा है। इस साल के बजट में बैंकों के लिए 25,000 करोड़ रुपये की पूंजी का प्रावधान किया गया है। जनता के पैसे को डूबते बैंकों में डालने से पहले क्या सरकार को विस्तृत श्वेतपत्र जारी नहीं करना चाहिए...?

कर्ज़दारों के विवरण को सभी बैंकों से साझा करने के लिए मोबाइल ऐप क्यों नहीं - केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया के तहत एक क्लिक में सभी सूचनाएं और कार्रवाई का दावा किया जा रहा है। कर्ज़दारों का विवरण अगर मोबाइल ऐप में आ जाए, तो एक ही संपत्ति की गारंटी पर कई बैंकों से लोन लेने का फर्जीवाड़ा रुक जाएगा। इससे दिवालिया उद्योगपतियों द्वारा सरकार के साथ निवेश के खोखले वादों पर अंकुश लगने के अलावा आम जनता भी ठगे जाने से बच सकेगी, जिसके लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत सरकार की जवाबदेही भी है।

विजय माल्या विदेश में हैं, लेकिन अन्य बकायादारों के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं - विजय माल्या ने विदेश पहुंचने के बाद कहा कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है और अन्य बड़े कर्ज़दारों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो रही, जो भारत में ही मौजूद हैं। मोदी सरकार में एक मंत्री के विरुद्ध कर्ज़ न चुकाने पर अदालत द्वारा वारंट जारी किया गया है। बकायादारों के नाम सामने आने पर राजनीति और उद्योग जगत का आपराधिक रिश्ता उजागर होगा, जिसके विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई से ही आम जनता के अच्छे दिन आएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में आर्थिक अपराधियों को देश का दुश्मन बताया था, जिनका खुलासा करने की बजाए बैंकों को कॉरपोरेट के हवाले करने की साजिश हो रही है, जिसके खिलाफ 25 मई को बैंककर्मियों की हड़ताल प्रस्तावित है। बैंकिंग संकट के जिम्मेदार लोगों का खुलासा करके, क्या सरकार देश की जनता के प्रति अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व को पूरा करेगी...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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