तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन दो दिन के भारत दौरे पर हैं. लेकिन भारत पहुंचने के पहले उन्होंने एक भारतीय टीवी चैनल को इंटरव्यू में ये कहकर सनसनी फैला दी कि कश्मीर मसले को हमेशा के लिए सुलझाने के लिए कई पक्षीय बातचीत होनी चाहिए. भारत हमेशा कहता आया है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय समस्या है और बातचीत भी सिर्फ दो पक्षों के बीच ही होगी. एर्दोगन के बयान को लेकर हालांकि यहां पर नाराज़गी दिखी लेकिन इस पर अचरज करना बेकार है. जगज़ाहिर है कि तुर्की और पाकिस्तान में पुराने और गहन रिश्ते हैं. तुर्की और पाकिस्तान दोनों ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोर्पोरेशन के सदस्य हैं और इनकी 57 सदस्यों की बैठकों में हमेशा ही कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया गया है और वहां पर जनमत संग्रह कराने की वकालत भी.
लेकिन ये भी सच है कि भारत और तुर्की के बीच ऐतिहासिक रिश्ते हैं. यहां तक कि भारत ने 1920 में तुर्की की आज़ादी की लड़ाई को भी समर्थन दिया था और खुद महात्मा गांधी ने पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के वक्त तुर्की पर अन्याय की बात की थी. लेकिन वक्त बदला है और आज तुर्की पाकिस्तान के ज्यादा करीब खड़ा नज़र आता है. हालंकि इस इंटरव्यू पर भारत की तरफ से कोई बयान नहीं आया है.
दिल्ली में हैदराबाद हाउस में जब प्रधानमंत्री मोदी और तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन ने जब बयान दिया तो न कश्मीर का नाम आया न ही पाकिस्तान का. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया के सभी देशों को एक होकर आतंकी नेटवर्कों, उनको आर्थिक मदद देने वालों को रोकना होगा और सरहदों के पार जाने वाले आतंकवादियों को रोकना होगा. इन सभी देशों को उनके खिलाफ भी खड़े होना होगा और कार्रवाई करनी होगी जो आतंकवादी बनाते, उनकी मदद करते, शरण देते और आतंकवाद फैलाते हैं. सीधा इशारा पाकिस्तान की तरफ था.
उधर एर्दोगन ने ये तो ज़रूर कहा कि तुर्की आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है, और 24 अप्रैल को हुए आतंकी हमले की निंदा करता है - यानी सुकमा में नक्सली हमले की निंदा - लेकिन पाकिस्तान की तरफ से भारत में जो आतंक फैलाया जा रहा है उस पर खामोश रहे. हालांकि कश्मीर पर भी कुछ नहीं कहा. जब ये बयान चल रहे थे, उसी वक्त ये भी खबर आ रही थी कि पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा पर सीमा पार से फायरिंग में न सिर्फ हमारे दो जवान शहीद हुए है बल्कि पाकिस्तान की BAT team यानी बॉर्डर एक्शन टीम ने इन दोनों के शवों के साथ बर्बरता भी की है. हालांकि जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले से पूछा गया कि क्या कश्मीर पर कोई बात हुई तो उन्होंने जानकारी दी कि भारत ने एर्दोगन के सामने साफ कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद की समस्या है और उस पर द्विपक्षीय बातचीत ही होगी, और तुर्की पक्ष ने पूरी गंभीरता से ये बात सुनी.
अब सवाल ये उठता है कि आखिर कश्मीर के मुद्दे पर ठीक भारत आने के पहले इस बयान का मतलब क्या है. एर्दोगन 150 सदस्यीय बिज़नेस डेलीगेशन लेकर भारत आए हैं. तुर्की और भारत के बीच व्यापार 2010 के 4016 मिलियन डॅालर से बढ़कर 2015 में 6264 मिलियन डॅलर हो चुका है, जबकि तुर्की और पाकिस्तान के बीच व्यापार 2010 के 998 मिलियन डॅालर से घटकर 2015 में 599 मिलियन डॅालर हो गया. तो क्या एर्दोगन के बयान का असल लक्ष्य बाकी के OIC देश थे जिनसे व्यापार और भी बड़ा है और धर्म का रिश्ता भी जिसके ज़रिए अतातुर्क के आधुनिक तुर्की से धीरे-धीरे अलग होते हुए वो एक इस्लामिक रिपब्लिक बन सके जहां सिर्फ उनके नाम की तूती बोले.
(कादंबिनी शर्मा एनडीटीवी इंडिया में एंकर और एडिटर फारेन अफेयर्स हैं)
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This Article is From May 01, 2017
कश्मीर पर तुर्की के राष्ट्रपति के बयान पर अचरज करना बेकार
Kadambini Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मई 01, 2017 23:39 pm IST
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Published On मई 01, 2017 23:39 pm IST
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Last Updated On मई 01, 2017 23:39 pm IST
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