मेरी यह रोमांचक कहानी शुरू होती है मार्च के महीने में इस्तानबुल से बार्सिलोना जा रही मेरी फ्लाइट में। अभी हम बैठे ही थे कि अचानक से बम बम की फुसफुसाहट सुनाई देने लगी। मेरी सीट के आगे वाली सीट पर बैठे आदमी से एयरलाइन के कर्मचारी पूछताछ कर रहे थे। दरअसल किसी महिला ने उसकी शिक़ायत की थी। अब उनकी बातें तो मुझे समझ नहीं आई लेकिन बार बार इस डरावने शब्द को सुन कर मेरा दिल बैठने लगा। कुछ वक्त बाद उस शख्स को उसके सामान के साथ सुरक्षाकर्मी वहां से ले गए और एक बम दस्ता प्लेन में चढ़ा एक अजीबोग़रीब मशीन के साथ। यह मशीन मेरे ख्याल में रसायन की जांच के लिए थी। क्योंकि उन लोगों ने एक काग़ज़ के टुकड़े को उसकी सीट पर मल कर उस मशीन में डाला था। इसके बाद हर यात्री से अपने सामान की पहचान करने को कहा गया। इसके बाद आखिरकार हमने टेक ऑफ किया, लेकिन वह आदमी लौट कर नहीं आया।
बार्सिलोना पहुंचते ही मैं इस घटना को भुला बैठी....एक बुरे सपने की ही तरह। मुझे उस ख़ूबसूरत शहर से प्यार हो गया था। मैं दिनभर पुराने शहर की गलियों की ख़ाक छानती और रात को बार्सिलोना के बाशिंदो के साथ वाइन और लोकल खाने का मज़ा लेती। लेकिन इस शहर के साथ मेरी मुहब्बत अभी परवान भी नहीं चढ़ी थी की बुरा सपना नंबर दो हक़ीकत में तब्दील हुआ। बार्सिलोना के एक मशहूर बाज़ार में किसी माहिर चोर ने मेरा बैग खोल कर उसमें से मेरा वॉलेट चुरा लिया। उस वॉलेट में न सिर्फ मेरे सारे पैसे थे, बल्कि क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और लाइसेंस, पैन कार्ड जैसे सारे आईडी भी थे। अपने खोए हुए पैसों और कार्ड्स का मातम मनाने का वक्त मेरे पास नहीं था, मुझे यह चिंता सता रही थी कि मेरे पास खाने के लिए एक यूरो तक नहीं था। ऐसे में मेरे दोस्तों और अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रांसफर की मदद से किसी तरह मेरे पास 300 यूरो पहुंचे। इधर मैं शुक्र मना रही थी कि चलो मेरा पासपोर्ट बच गया। आखिर किसी अनजान देश में आपके वजूद का सबसे बड़ा गवाह होता है आपका पासपोर्ट। और फिर मेरे पासपोर्ट में मेरा अगला वीज़ा भी तो था......क्यूबा का।
चलिए यह सब भी भुला कर मैं बार्सिलोना से क्यूबा की तरफ निकल पड़ी। 11 घंटे की फ्लाइट के बाद जब मैं क्यूबा की राजधानी हवाना पहुंची तो इमिग्रेशन काउंटर पर बैठी महिला ने मेरा पासपोर्ट देखा और इशारे से सादे कपड़ों में मौजूद सुरक्षाकर्मी को बुला दिया। उस आदमी ने मेरा पासपोर्ट लिया और मुझे अपने साथ आने को कहा। धड़कते दिल के साथ मैं उसके पीछे पीछे चली गई। और फिर शुरू हुआ सवाल जवाब का सिलसिला; मैं कौन हूं? यहां क्यों आई हूं? क्या काम करती हूं? मेरे पास कितने पैसे हैं? मैं कहां कहां जाऊंगी? कहां रहूंगी? क्या मेरे पास कैमरा है? क्या मेरे पास क्रेडिट कार्ड हैं? ये सारे सवाल चंद घंटों पहले मेरी दोस्त, जो मेरे साथ छुट्टी मनाने वाली थी, उससे भी पूछे गए थे अलग ले जा कर। उसने मुझे पहले ही मैसेज कर के आगाह कर दिया कि अपनी ग़रीबी की दास्तान इनके सामने मत रो देना और अपने काम को लेकर कुछ ज़्यादा मत बताना। अब था तो यह मुश्किल, क्योंकि झूठ भले ही नहीं...लेकिन आधा सच बोलना था। मैंने किसी तरह सारे जवाब दिए और उन्हें समझाया कि मैं एक टीवी चैनल में हेल्थ शो की होस्ट हूं और मेरे पास 500 यूरो हैं। असलियत यह थी की मेर पास महज़ 100 यूरो थे और एक भी कार्ड नहीं था। लेकिन जब आपका पासपोर्ट किसी कम्यूनिस्ट देश के सुरक्षाकर्मी की ग़िरफ्त में हो तो आप कुछ भी बोलने के लिए तैयार हो सकते हैं। खैर, वो मान गए और 10 दिन के लिए मुझे क्यूबा के कोने कोने में घूमने के लिए छोड़ दिया।
इस ख़ूबसूरत देश की संस्कृति और यहां के आंदोलनकारी इतिहास में पूरी तरह रम जाने के बाद जब मैं एक बार फिर वापस लौटने के लिए एयरपोर्ट पहुंची तो हद ही हो गई। एक बार फिर मुझे रोक लिया गया। मेरा पासपोर्ट फिर एक घंटे के लिए न जाने किन दफ्तरों में ठोकर खाने लगा। कोई पूछताछ तो नहीं हुई लेकिन थोड़ी देर बाद 3 और हिंदुस्तानी मुझे एक कोने में खड़े दिखाई दिए। उन्होंने बताया उनका भी पासपोर्ट ले गए हैं और आते वक्त उनसे भी पूछताछ हुई। मैं समझ गई....यहां के कम्यूनिस्ट हिंदुस्तानियों को नहीं जानते और हर आने वाले हिंदुस्तानी को रोकते हैं।
चाहे जो भी हुआ हो लेकिन यह छुट्टी मेरी सभी छुट्टियों से ज़्यादा रोमांचक निकली। और फिर मैं अपनी यादों के साथ-साथ छिपा कर क्यूबन सिगार भी तो ले आई। अब अगली छुट्टी की प्लानिंग शुरू कर दी है, देखें अब इससे ज़्यादा रोमांचक जगह कौन सी हो सकती है।
अंजिली इस्टवाल NDTV में एसोसिएट एडिटर एवं एंकर हैं।
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