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This Article is From Jul 11, 2018

मुसलमानों के कितना साथ है कांग्रेस?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 11, 2018 19:41 pm IST
    • Published On जुलाई 11, 2018 19:41 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 11, 2018 19:41 pm IST
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उदारवादियों के एक समूह से चाय पर चर्चा की. यह एक दिलचस्प घटनाक्रम है क्योंकि हाल ही में कांग्रेस और मुसलमानों के रिश्तों को लेकर खासी टीका टिप्पणियां हुई हैं. खासतौर से यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान के बाद कई सवाल उठे. इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में सोनिया गांधी ने कहा था कि बीजेपी ने लोगों को यह भरोसा दिला दिया कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है. इसके बाद कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया गया. उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी में अधिकांश हिंन्दू हैं. कुछ मुसलमान भी हैं. इसीलिए उन्हें यह समझ में नहीं आया कि कांग्रेस पर मुस्लिम पार्टी होने का ठप्पा क्यों लगा दिया गया.

सोनिया गांधी के इस बयान को राहुल गांधी की मंदिर यात्राओं से जोड़ कर देखा गया. पूछा गया कि क्या गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी की ये मंदिर यात्राएं मुस्लिम पार्टी के इसी ठप्पे को मिटाने के लिए थीं. यहां तक कि जब राहुल के सोमनाथ मंदिर में जाने पर विवाद खड़ा हुआ तो कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने डंके की चोट पर कहा कि राहुल जनेऊधारी हिंदू हैं. उन्होंने राहुल के जनेऊ पहने फोटो भी जारी कर दिए. लेकिन तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस संसद में घिर गई. लोकसभा में पार्टी ने बिल का समर्थन किया लेकिन राज्यसभा में संशोधनों के नाम पर बिल को अटका दिया. माना गया कि कांग्रेस मुस्लिम कट्टरपंथियों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है.

आज की राहुल गांधी की मुलाकात में भी सोच-समझकर लोगों को बुलाया गया. बैठक में शामिल लोग बुद्धिजीवी और उदारवादी माने जाते हैं. उनकी पहचान मुस्लिम धर्मगुरु या कट्टरपंथी नेताओं के तौर पर नहीं होती. बैठक की रुपरेखा तय करने वाले एक नेता के मुताबिक इसका मकसद देश के हालात पर चर्चा करना है. खासतौर से बीजेपी देशभर में जो मुस्लिम विरोधी माहौल तैयार कर रही है, उसका सामना कैसे किया जाए. बुद्धिजीवीयों और उदारवादी चेहरों का चयन इसीलिए किया गया ताकि बीजेपी को यह बोलने का मौका न मिले कि राहुल की अगुवाई में कांग्रेस कैसे कट्टरपंथी मुसलमानों के हाथों में खेल रही है. कांग्रेस के नेता सवाल उठाते हैं कि आखिर इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है. राहुल इससे पहले छात्रों से मिले. वो युवाओं से मिल रहे हैं. पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों से भी उनकी चर्चा हुई है. देश की नब्ज़ भांपने के लिए सभी तबकों से मिलना ज़रूरी है.

मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उदारवादी व्यक्तियों से राहुल की मुलाकात का यह पहला दौर है. आज वे सच्चर कमेटी से जुड़े अबु सालेह शरीफ से मिले. पूर्व आईएएस एमएस फारुकी के अलावा रक्षंदा जलील, फराह नकवी, सुहैल अय्यूब, गजाला अमीन, इतिहासकार इरफान हबीब, आसिया ज़ैदी, ज़फरुद्दीन खान फैजान जैसी तमाम शख्सियतों से उनकी बात हुई.

फिर भी कुछ सवाल बच जाते हैं. समुदायों से संवाद बहुत अच्छी पहल है. खुद पीएम नरेंद्र मोदी पिछले चार साल में कई बार मुस्लिम धर्मगुरुओं से मिल चुके हैं. तीन तलाक बिल पर उनकी मुलाकात जमियत उलेमा ए हिंद के नेताओं से हुई जिसमें उन्होंने तीन तलाक मुद्दे का राजनीतिकरण से बचने और मुस्लिम समाज के भीतर सुधार करने के लिए कहा था.

लेकिन अब जबकि देश का सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ा जा रहा है. अफवाहें फैला कर लोगों को मार दिया जाता है. गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी होती है और देश के कई हिस्सों में मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है. ऐसे माहौल में खुद को देश की सबसे पुरानी पार्टी कहने वाली कांग्रेस कहां है? क्या कांग्रेस के नेता मुसलमानों के बीच गए ताकि उनका भरोसा कायम किया जा सके. या कांग्रेस केवल इस डर से मुसलमानों के बीच जाने से बच रही है कि कहीं बीजेपी उस पर एक बार फिर मुस्लिम समर्थक होने का ठप्पा न लगा दे. क्या वजह है कि तीन तलाक पर कांग्रेस का ढुलमुल रवैया मुस्लिम महिलाओं को आशंकित करता है. क्यों समलैंगिक संबंधों को आपराधिक बताने वाली दफा 377 पर कांग्रेस ने कोई स्टैंड नहीं लिया? क्या इसलिए कि वो मुस्लिम धर्मगुरुओं और कट्टरपंथियों को नाराज नहीं करना चाहती?

क्या वजह है कि देश भर में शरियत अदालतें स्थापित करने के ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दावे पर कांग्रेस चुप्पी साध जाती है. ऐसा क्यों होता है कि बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का बताते हैं लेकिन उन्हीं की सरकार की बनाई सच्चर कमेटी अपनी रिपोर्ट में कहती है कि मुसलमान दलित और आदिवासियों से भी गए गुजरे हैं. क्यों राहुल गांधी जेएनयू जाकर बीजेपी को यह आरोप लगाने का मौका दे देते हैं कि वे देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े हैं.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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