मध्य प्रदेश में इन दिनों स्थानीय निकाय चुनावों की सरगर्मी तेज है। मध्य प्रदेश के सतना जिले में 28 तारीख को पार्षद और महापौर चुनने के लिए वोट डाले जाएंगे।
सतना की दीप्ति इस बात से परेशान हैं कि पड़ोस की ठकुराइन को महापौर के चुनाव के लिए टिकट नहीं मिला। अब यदि भविष्य की महापौर जीत गईं, तो दीप्ति अपनी महिला मंडली में उन्हें जानने का दंभ नहीं भर पाएंगी।
वहीं उनके पति तो बस इतना चाहते थे कि वह लड़तीं और जीत जातीं, तो उन्हें घर का पता बताने में आसानी हो जाती। कोई पूछता और वह तपाक से कहते, अरे महापौर के बगल वाला घर है मेरा।
ठकुराईन के समर्थक कह रहे हैं, 'मम्मा साहब' का नाम तो लगातार अखबारों में छपता रहा और उनके ससुर सांसद भी रह चुके थे। बड़ी तैयारी थी लेकिन ऐन वक्त पर एक बाभन (ब्राह्मण) को टिकट देकर बेड़ा गर्ग कर दिया।
ठंड में सुबह-सुबह धूप सेंक रहे एक बुजुर्ग का कहना है कि जैसे आप मोदी के साथ हो या मोदी के खिलाफ हो, तीसरा कोई विकल्प नहीं है। ठीक ऐसे ही हमारे इलाके में आप बाभन या ठाकुर के साथ हो, या उसके खिलाफ हो। वह कहते हैं, "स्थानीय चुनाव में भी 'सबका साथ सबका विकास' का नारा लग रहा है… भांड़ में गया सबका साथ… बाभन का विकास ठाकुर का विकास कैसे हो सकता है, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने बाभन को टिकट दे दिया है, ये तो ठाकुरों के साथ अन्याय है।"
वहीं सतना जिले के ऊंचेहरा कस्बे में इस बार नगरपालिक अध्यक्ष की सीट हरिजन महिला के लिए आरक्षित है। ऐसे में मंजू साकेत नाम की एक उम्मीदवार चर्चा में है। उसकी शादी के वक्त काफी विरोध हुआ था। उसके पति पिछड़ा वर्ग से हैं और वह हरिजन। अब उसके पोस्टरों पर लिखा है, 'हरिजन की बेटी पिछड़ा वर्ग की बहू'…
सियासत हमेशा तोड़ती नहीं जोड़ती भी है, लेकिन दोनों ही सूरत में गणित जीत की उम्मीद जगाने वाला होना चाहिए। जहां दो अगड़ी जातियां आमने-सामने हो सकती हैं, वहीं हरिजन की बेटी को जीत के लिए सबसे बड़ा सहारा पिछड़े की बहू होना है। लेकिन नतीजे बताएंगे कि लोगों के पूर्वाग्रह कितने गहरे हैं, दूसरी जाति में शादी के बाद बेटी अपनी ही मानी जाती है या पराई हो जाती है और ससुराल पक्ष से जुड़ा समुदाय क्या पूरे मन से दूसरी जाति की बहू को स्वीकार कर पाता है।