पिछले तीन-चार दिनों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दो बड़ी नियुक्तियां की हैं। मंगलवार रात केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के निदेशक के पद पर बिहार कैडर के अनिल सिन्हा की नियुक्ति की घोषणा की गई।
दूसरी ओर स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी के निदेशक पद पर गुजरात कैडर के विवेक श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया है। हालांकि श्रीवास्तव की पोस्टिंग की अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
अनिल सिन्हा की नियुक्ति से साफ है कि फिलहाल मोदी सरकार रंजीत सिन्हा के अंतिम कुछ महीनों में सीबीआई द्वारा महत्वपूर्ण जांचों को जिस 'दिशा' में ले जाने का प्रयास हो रहा था, उसकी निरंतरता बनाए रखना चाहती है।
सब जानते हैं कि निदेशक चाहें रंजीत सिन्हा हों या अनिल सिन्हा, फर्क सिर्फ नाम का हो सकता है, आईपीएस ज्वाइन करने के साल में अंतर हो सकता है, लेकिन दोनों अपने करियर में राजनीतिक आकाओं के खिलाफ जाने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाए। इसलिए अगर आप यह सोच रहे हैं कि सीबीआई की जांच और कार्यशैली में कोई आमूल-चूल परिवर्तन हो जाएगा, तो आपको निराशा ही हाथ लगने वाली है।
लेकिन सवाल है कि नरेंद्र मोदी ने अनिल सिन्हा को ही इस पद के लिए क्यों बेहतर समझा। दरअसल, मोदी सरकार की मजबूरी है कि आज की तारीख में वह चाहे अनिल अंबानी हों या कुमार मंगलम बिड़ला या गौतम अडानी या उनके सबसे विश्वासपात्र अमित शाह, सबके भविष्य सीबीआई जांच की दिशा पर तय होंगे। और अनिल सिन्हा वही करेंगे जो मोदी सरकार चाहेगी, मतलब वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे सरकार और खासकर नरेंद्र मोदी को कोई परेशानी हो। हालांकि यह भी तय है कि वह रंजीत सिन्हा की गलती को भी नहीं दोहराएंगे।
अनिल सिन्हा की यह विशेषता है कि वह किसी को नाराज रखने में विश्वास नहीं करते और बॉस को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जानकार मानते हैं कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस सिद्धांत पर चल रहे हैं कि "जानी-पहचानी बुराई, अनजाने शैतान से बेहतर होती है"...