आज के उपचुनाव से विपक्ष और बीजेपी के लिए हैं ये सबक

कैराना की सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी और यहां से बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था. गोरखपुर, फूलपूर और अब कैराना तीन लोकसभा की सीट तीनों एक के बाद एक करके बीजेपी के हाथ से निकल गई. 

आज के उपचुनाव से विपक्ष और बीजेपी के लिए हैं ये सबक

प्रतीकात्मक फोटो.

कैराना लोकसभा उपचुनाव में आरएलडी की जीत की संभावना तो पहले से थी मगर अब यह पक्का हो गया है कि संगठन में ही शक्ति है. यहां का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह चुनाव समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिल कर चुनाव लड़ा था और बीजेपी से उसकी सीट छीन ली. 

कैराना की सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी और यहां से बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था. गोरखपुर, फूलपुर और अब कैराना तीन लोकसभा की सीट तीनों एक के बाद एक करके बीजेपी के हाथ से निकल गई. 

उसी तरह भंडारा-गोंदिया की सीट भी बीजेपी के हाथ से निकल गई. यहां से कांग्रेस और एनसीपी ने साझा उम्मीदवार खड़ा किया था. यानि यहां भी यह साबित हुआ है कि इकट्ठा मिलकर यदि विपक्ष चुनाव लड़ता है तो बीजेपी के लिए दिक्कत खड़ी हो सकती है. दूसरी सबसे बड़ी सीख इन उपचुनावों से यह है कि समझौता केवल दलों के बीच होने से बात नहीं बनती बल्कि समझौता जमीनी स्तर पर जातियों के बीच भी होना जरूरी होता है. 

सबकी निगाहें कैराना पर इसलिए भी थी कि लोगों को इस पर पक्का भरोसा नहीं था कि जाट और मुसलमान इकट्ठा एक साथ क्या वोट करेंगे. सबको लगता था कि मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ उसके बाद शायद यह संभव नहीं हो पाएगा. मगर इस उपचुनाव में जाट और मुसलमान साथ आए और बीजेपी का पासा पलट दिया. जाटों ने जाट प्रतिनिधि को छोड़कर मुसलमान प्रत्याशी को वोट देकर जीता दिया. यही नहीं बीजेपी बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट भी हार गई है यानि उत्तर प्रदेश से संकेत साफ है कि बीजेपी को अब संभल जाना चाहिए क्योंकि अक्सर उपचुनावों में जिस पार्टी की सरकार होती है उसी का उम्मीदवार जीतता है. 

यही हाल बिहार का है. जोकीहाट की सीट पर जेडीयू चुनाव हार गई है. नीतीश कुमार ने यहां प्रचार भी किया था जबकि आरजेडी की तरफ से लालू यादव के जेल में बंद होने की वजह से तेजस्वी यादव ने कमान संभाल रखी थी और एक राजनीति में नौसिखिए ने नीतीश कुमार को पटखनी दे दी. तेजस्वी ने इसे अवसरवाद की राजनीति पर लालूवाद की जीत बताया है. ये बात सच भी है कि जोकीहाट में नीतिश कुमार ने अपनी पूरी कैबिनेट को काम पर लगा रखा था. 

बाकी विधानसभा उपचुनाव की बात करें तो अधिक उलटफेर नहीं है सिवाय बीजेपी की सीटों को छोड़कर. पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने अपनी सीट बचा ली है जबकि केरल में सीपीएम और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भी अपनी सीट बचा ली है. झारखंड में जेएमएम ने गोमियो और सिल्ली की विधानसभा सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है. बीजेपी को इस बात से संतोष होगा कि उत्तराखंड की थराली सीट पर उन्होंने अपना कब्जा बरकरार रखा है. 

कुल मिला कर इस चुनाव से मिलने वाले संकेत साफ है कि बीजेपी के लिए 2019 की राह बहुत आसान नहीं है. उसे भी अपनी रणनीति बदलनी होगी ठीक उसी तरह जैसे बीजेपी ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में किया था जब हरेक जातियों के पार्टियों के साथ गठबंधन किया था और विपक्ष के लिए भी सबसे बड़ी सीख ये है कि मिल जाओ तो किसी को भी टक्कर दी जा सकती है.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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