ख़ुशी मनाइये कि कर्नाटक में चुनाव हैं वर्ना पेट्रोल का दाम 90 रुपये तक चला गया होता. पिछले 13 दिनों से पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल का दाम बढ़ता ही जा रहा है. यह जादू कैसे हो रहा है? जबकि पिछले जून में सरकार ने कहा कि अब से तेल कंपनियां रोज़ के भाव के हिसाब से दाम तय करेंगी. खूब तारीफ हुई. अंदर अंदर यह कहा गया कि रोज़ कुछ न कुछ बढ़ता रहेगा तो जनता को पता नहीं चलेगा. बिजनेस स्टैंडर्ड के शाइन जैकब की पहली स्टोरी आप पढ़ लीजिएगा. इंडस्ट्री के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि गुजरात चुनावों में भी दाम बढ़ाने नहीं दिया गया, कर्नाटक चुनावों के कारण भी रोक दिया गया है. यानी रोज दाम तय करने की आज़ादी बकवास है. दाम अभी भी सरकार के हिसाब से घट बढ़ रहे हैं. सोचिए अगर इस दौरान कोई चुनाव नहीं होता तब पेट्रोल का दाम कहां तक पहुंच गया होता.
शाइन जैकब ने तेल कंपनियों के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि दाम नहीं बढ़ाने के कारण उनके मुनाफे का मार्जिन कम होता जा रहा है. 1 अप्रैल को उनका औसत मार्जिन प्रति लीटर 3 रुपये था जो 1 मई को घट कर दो रुपये से भी कम हो गया है. मार्जिन में 45 प्रतिशत की कमी आई है. तेल कंपनियां काफी दबाव में हैं. सरकार ने 23 अप्रैल से दामों को बढ़ना रोक दिया है. दिल्ली में 74.63 प्रति लीटर प्रेट्रोल और 65.93 रु प्रति लीटर डीजल है. मुंबई में तो 82 रुपया प्रति लीटर पहुंच गया है.
मनरेगा के लाखों मज़दूरों को काम करने के बाद भी छह छह महीने से वेतन नहीं मिला है. मीडिया किस हद तक जनविरोधी हो गया है आप देखिए. किसी मज़दूर को 2000 नहीं मिला तो किसी को 500. इन पैसों के न होने से उन पर क्या बीत रही होगी. उनका घर कैसे चलता होगा. कायदे से इस बात के लिए देश में हंगामा मच जाना चाहिए. जिस मुख्यधारा की मीडिया के लिए आप पैसे देते हैं, उसने इस तरह का काम लगभग बंद कर दिया है. indiaspend नाम की नई वेबसाइट है, इसने रिसर्च कर बताया है कि सरकार के ही आंकड़े कहते हैं कि 1 अप्रैल 2018 तक लाखों मनरेगा मज़दूरों को पैसे नहीं मिले हैं. 2018-19 के लिए सरकार ने मनरेगा का बजट 14.5 प्रतिशत बढ़ाया था तब फिर पैसे क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? मनरेगा के लिए सरकार का बजट 55000 करोड़ है. 57 प्रतिशत मज़दूरी का भुगतान नहीं हुआ है.
बैंक कर्मचारी मायूस हैं. पांच साल बाद सैलरी बढ़ने की बारी थी मगर कुछ अता-पात नहीं है. मुंबई में बैंकों के प्रबंधन के समूह और कर्मचारी यूनियन के बीच बातचीत हुई. इस बातचीत में सिर्फ 2 प्रतिशत सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया जिससे कर्मचारी आहत हो गए. इस महंगाई में 2 प्रतिशत तो कुछ नहीं. यह बता रहा है कि बैंक अब भीतर से चरमरा गए हैं. बैंक कर्मचारियों की सैलरी वाकई बहुत कम है. इतनी कम कि वे उस सैलरी में महानगर तो छोड़िए किसी कस्बे में नहीं रह सकते हैं. अभी भी कई बैंकरों को लगता है कि नोटबंदी के समय उन्होंने कोई राष्ट्रीय योगदान दिया था जिसका इनाम मिलना चाहिए था. आज न कल उन्हें सबसे पहले यही समझना होगा कि नोटबंदी कभी न साबित होने वाला एक गंभीर फ्रॉड था. अब सरकार भी इसके फायदे की बात नहीं करती है. प्रधानमंत्री भी इससे किनारा कर चुके हैं. उसी नोटबंदी के कारण भी बैंकों की हालत खराब हुई है. फिर भी बैंकरों को जो काम दिया गया उसे उन्होंने दिन रात लगाकर निभाया. अपनी जेब से हर्जाना भरा.
बग़ैर नैतिक बल और एकजुटता के आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. कर्मचारियों को उन बैंकरों को खुद एक्सपोज़ करना चाहिए जिन्होंने ग़लत तरीके से पैसे कमाए हैं. इन चोरों की वजह से जनता भी आम बैंकरों के प्रति सहानुभूति नहीं रखती है. इनकी वजह से बाकी लोग नौकरी में रहते हुए भूखमरी के कगार पर हैं. बैंकरों को ही खुद बताना पड़ेगा कि बैंकों की हालत ऐसी क्यों हैं. कर्मचारी इतने कम हैं कि वे ग्राहकों की सेवा नहीं कर पा रहे हैं. उन पर ग्राहक को छोड़ सरकारी योजनाओं को येन केन प्रकारेण बिकवाने का दबाव है.
बैंकरों की इस लड़ाई में मीडिया साथ नहीं देगा. सभी बैंकरों को आज ही अपने घर से केबल टीवी का कनेक्शन कटवा देना चाहिए और अखबार बंद कर देना चाहिए. जब उनका ही जीवन नहीं बदल रहा है तो अखबार पढ़ कर क्या करेंगे. जब मीडिया उनका साथ नहीं देता तो वे अखबार और केबल टीवी पर 400 से 600 रुपये क्यों ख़र्च कर रहे हैं? अगर वे इस लेवल के मूर्ख हैं, तो उनका भगवान ही मालिक है. बैंकरों को शर्म आनी चाहिए कि वे अखबार खरीदते हैं. बीस लाख के करीब बैंकर हैं. उनके परिवारों को मिला लें तो एक करोड़ की संख्या है. अगर एक करोड़ की संख्या वाले समूह की ये औकात है, उसकी नागरिकता का मोल शून्य हो गया है तो उसे यह सब करना चाहिए. जब तक आप अपनी नागरिकता और जनता होने के अधिकार को हासिल नहीं करेंगे तब तक आपकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं देगा.
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This Article is From May 06, 2018
यहां से भारत को देखो, बैंकर मायूस, मनरेगा के मज़दूर भूखे और तेल के दाम का खेल देखो...
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 06, 2018 19:49 pm IST
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Published On मई 06, 2018 19:49 pm IST
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Last Updated On मई 06, 2018 19:49 pm IST
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