लोकसभा चुनाव 2019 : एग्ज़िट पोल पर चुनाव आयोग का विरोधाभासी रवैया

सोशल मीडिया के डिजिटल दौर में परंपरागत मीडिया पर सख्ती और राजनेताओं पर ढील से कई सवाल खड़े हो गए हैं.

लोकसभा चुनाव 2019 : एग्ज़िट पोल पर चुनाव आयोग का विरोधाभासी रवैया

सातवें और अंतिम चरण का मतदान रविवार, 19 मई को होने जा रहा है... (प्रतीकात्मक फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दावा किया है कि छठे चरण के मतदान के बाद ही BJP को पूर्ण बहुमत की सीटें हासिल हो गईं और आखिरी मतदान के बाद उनकी पार्टी 300 सीटों का आंकड़ा पार कर लेगी. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 ए के तहत चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद एग्ज़िट पोल या अन्य तरीके से परिणामों के पूर्वानुमान के प्रकाशन या प्रसारण पर प्रतिबंध है. इसका उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ-साथ दो साल की सज़ा का भी प्रावधान है. अंग्रेज़ी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर के अनुसार चुनाव आयोग ने तीन मीडिया हाउसों को ऐसे ही नियमों के उल्लंघन पर नोटिस जारी कर 48 घंटे के भीतर जवाब मांगा है. ख़बरों के अनुसार ट्विटर में भी एग्ज़िट पोल से जुड़े एक ट्वीट को हटाया गया है. वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पहले दौर की वोटिंग के बाद रिज़ल्ट के पूर्वानुमान प्रकाशित करने के लिए चुनाव आयोग ने हिन्दी दैनिक 'दैनिक जागरण' के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया था. सोशल मीडिया के डिजिटल दौर में परंपरागत मीडिया पर सख्ती और राजनेताओं पर ढील से कई सवाल खड़े हो गए हैं.

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हेतु चुनाव आयोग के पास वैधानिक अधिकार : स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को संवैधानिक अधिकार मिले हैं. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं -

  1. लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खर्च करने की सीमा, जिससे चुनाव में धनबल के प्रयोग को रोका जा सके, इसके लिए विशेष पर्यवेक्षकों की नियुक्ति.
  2. आपराधिक छवि या पृष्ठभूमि के लोगों को चुनाव लड़ने से हतोत्साहित करने के लिए अनेक नियम, शपथपत्र और चुनावी आचार संहिता.
  3. लोकतांत्रिक देश में स्वस्थ और निष्पक्ष तरीके से जनता मतदान कर सके, इसके लिए चुनाव के आखिरी 48 घंटे में सभी प्रकार के प्रचार पर रोक.

इस बार के चुनाव में कुल 60,000 करोड़ रुपये के खर्च का आकलन यदि सही है, तो इसका मतलब यह है कि खर्च और आपराधिकता के पहलुओं को नियंत्रित करने में चुनाव आयोग पूरी तरह विफल रहा है.

एग्ज़िट पोल पर प्रतिबंध हेतु कानून : संसद द्वारा सन 1951 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किए जाने के अलावा इस बारे में 1961 में विस्तृत चुनावी नियम भी बनाए गए. एग्ज़िट पोल के प्रकाशन और प्रसारण पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है, ताकि मतदान की निष्पक्षता को प्रभावित नहीं किया जा सके. इस बार एग्ज़िट पोल पर प्रतिबंध के लिए चुनाव आयोग ने 7 अप्रैल को नया नोटिफिकेशन जारी किया, जिसके अनुसार एग्ज़िट पोल पर 11 अप्रैल की सुबह से लेकर 19 मई की शाम 6:30 बजे तक प्रतिबंध रहेगा. इस आदेश से यह ज़ाहिर है कि 11 अप्रैल से पहले और 19 मई के बाद प्रकाशित समाचारों पर मीडिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.

एग्ज़िट पोल के साथ ज्योतिष, टैरो कार्ड और चुनावी आकलन पर भी प्रतिबंध : आरपी एक्ट की धारा 126 के तहत एग्ज़िट पोल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और प्रसारण को कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार एग्ज़िट पोल में मतदाताओं द्वारा मतदान के पैटर्न का आकलन कर चुनावी परिणाम का सर्वे किया जाता है. 'इंडियन एक्सप्रेस' ने चुनाव आयोग की प्रवक्ता से बातचीत के बाद जो समाचार प्रकाशित किया है, उसके अनुसार एग्ज़िट पोल के दायरे का इस बार विस्तार किया गया है. इसके अनुसार एग्ज़िट पोल के साथ अब ज्योतिष, टैरो कार्ड और चुनावी आकलन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चुनावी आचार संहिता : वित्तमंत्री और वरिष्ठ न्यायविद अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग के माध्यम से कहा है कि चुनावी आचार संहिता से राजनेताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं किया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मीडिया को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के अनेक आदेशों से मान्यता भी मिली है. सभी दलों के नेताओं ने चुनावी प्रचार और भाषणों से कानून और आचार संहिता की सभी सीमाओं को तोड़ दिया और चुनाव आयोग लाचार है. एग्ज़िट पोल को कानून में परिभाषित किया गया है, तो फिर उसके दायरे में चुनावी आकलन या ज्योतिषीय गणना को बेवजह क्यों शामिल किया जा रहा है...? वरिष्ठ नेताओं द्वारा इंटरव्यू में सीटों के जीतने और हारने का विस्तृत विश्लेषण दिया जा रहा है, तो फिर पत्रकारों और राजनीतिक विशेषज्ञों को उनके विश्लेषण के अधिकार से कैसे वंचित किया जा सकता है...?

चुनाव आयोग का अतिरेक, असंतुलन और अप्रासंगिकता : मुक्त अर्थव्यवस्था के पूंजीवादी दौर में डिजिटल क्रांति आ गई, लेकिन चुनाव आयोग अब भी लकीर का फ़कीर बना हुआ है. पार्टियों द्वारा TV चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से सभी नियमों को धता बताकर मतदान केंद्रों तक वोटरों को प्रभावित किया जा रहा है और चुनाव आयोग लाचार है. हाईटेक रोड शो और चार्टर्ड फ्लाइट्स के न्यू इंडिया में टूटते नियमों के दौर में चुनाव आयोग अब भी शादियों में चाय-पानी के खर्च की मुनीमी करने में जुटा है. सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले से खुलासा हुआ कि पिछले आम चुनाव में ज़ब्त अधिकांश नगदी को चुनाव आयोग ने वापस कर दिया है. चुनाव आयोग ने पिछले आम चुनाव से पहले सोशल मीडिया हेतु अक्टूबर, 2013 में नियमावली बनाई थी, जिसका इस बार के चुनाव में भी पालन नहीं हो रहा. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग ने इस बार सरगर्मी जताई. इस मंथर प्रवृति को देखते हुए सोशल मीडिया में केंद्रीय चुनाव आयोग को 'केंचुआ' की संज्ञा दे दी गई.

पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार को एक दिन पहले बंद करने के लिए चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत विशेष अधिकारों का इस्तेमाल किया है. उसी तर्ज़ पर आयोग द्वारा यदि सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्ती बरतने के साथ-साथ राजनीतिक दलों के साइबर वार रूम में छापेमारी की जाए, तो चुनावी प्रक्रिया काफी हद तक दुरुस्त हो सकती है. पार्टियों के बड़े खर्चे, नेताओं की बद्जुबानी, पेड न्यूज़ और आचार संहिता के संगठित उल्लंघन को रोकने में विफल चुनाव आयोग द्वारा, राजनीतिक विश्लेषण को रोकने का अतिरेकी प्रयास, आयोग की प्रभुसत्ता को और भी अप्रासंगिक बना देगा.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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