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This Article is From May 23, 2017

नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल - भारत-पाक संबंधों में बरकरार है तनाव...

Kadambini Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 25, 2017 18:44 pm IST
    • Published On मई 23, 2017 16:46 pm IST
    • Last Updated On मई 25, 2017 18:44 pm IST
अगर ऐतिहासिक तौर पर भारत के सबसे कठिन और उलझे हुए रिश्ते किसी देश से हैं तो वह है पाकिस्तान. चुनावी भाषणों में पाकिस्तान के खिलाफ तीखे हमले करने वाले नरेंद्र मोदी जब ज़बर्दस्त बहुमत पाकर सत्ता में आए, और उनके शपथग्रहण समारोह में उनके न्योते पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ अपने देश में हालात के असामान्य होने के बावजूद पहुंच गए, तो लगा कि शायद दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने का सेहरा मोदी के सिर ही बंधेगा. लेकिन पिछले तीन साल में शायद मोदी सरकार को भी यह एहसास हुआ है कि रिश्तों का कोई भी सामान्य नियम पाकिस्तान पर लागू नहीं होता, और सबसे खतरनाक यह है कि कश्मीर में कई स्तरों पर उसकी दखलअंदाज़ी है और वह कई ज़ुबानों में बोलता है...

'आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते' की राह पकड़ भारत चला ज़रूर, लेकिन बात करने ज़रूरत भी महसूस हुई. लेकिन जब बात शुरू करने की बारी आई, तो पाकिस्तान ने वही किया, जो वह हमेशा करता आया है. अगस्त, 2014 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की इस्लामाबाद में मुलाकात से पहले यहां दिल्ली में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की और बातचीत शुरू होने से पहले ही टूट गई. बासित ने कहा कि कश्मीर मामले पर अलगाववादी 'स्टेकहोल्डर' हैं और उनसे बातचीत करना कुछ नया नहीं है. इस बात पर बातचीत टूटने के कारण अलगाववादियों को ज़रूरत से ज्यादा तरज़ीह मिल गई, वहीं पाकिस्तान को भारत पर आरोप मढ़ने का मौका भी.

इसके बाद उम्मीद एक बार फिर बंधी, जब 25 दिसंबर, 2015 के बिना किसी पूर्व योजना के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काबुल से लौटते हुए लाहौर में रुक गए, प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकात की. हालांकि कुछ जानकार, जो हमेशा बातचीत के हिमायती रहे, उन्होंने इस औचक मुलाकात को ग़लत बताया, क्योंकि दोनों देशों के बीच कई अनसुलझे मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर पाकिस्तान एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा. लेकिन अधिकतर लोगों ने मोदी की इस कूटनीति को बहुत सराहा, कहा - इसमें (अटल बिहारी) वाजपेयी की झलक दिखी. लेकिन भारत-पाक के बीच, मौजूदा सरकार का अब तक का, यह आखिरी हाई-प्वाइंट था.

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2 जनवरी, 2016 के पठानकोट के एयरफोर्स स्टेशन पर आतंकवादी हमला हुआ. 5 जनवरी तक खिंचे एनकाउंटर में पांच आतंकवादी मारे गए और तीन सुरक्षाकर्मी शहीद हुए. हमलावरों के तार पाकिस्तान से जुड़े मिले. लेकिन पाक की जो टीम यहां आकर जांच कर गई, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि खुद भारत ने यह हमला करवाया. इसके बाद जो घटनाक्रम चला, उसमें एक बार फिर जून, 2016 में भारत ने कहा कि जब तक पठानकोट मामले पर पाक एक्शन नहीं लेगा, बातचीत नहीं होगी. और फिर हुई सर्जिकल स्ट्राइक, जहां भारतीय सेना के जवानों ने पीओके में आतंकवादियों के लॉन्च पैड नष्ट किए, कई आतंकवादियों को मारा और खुलेआम यह भी स्वीकार किया कि यह सर्जिकल स्ट्राइक की गई है. पाकिस्तानी सेना, जिसका एक-सूत्री कार्यक्रम भारत के खिलाफ होना है, उसने इंकार तो किया इस स्ट्राइक से, लेकिन आज हालात क्या हैं...?

आज स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच कोई बातचीत नहीं है. सीमापार से फायरिंग पहले से कहीं ज्यादा हो रही है. जवानों के सिर कलम करने की घटनाएं भी फिर हुई हैं, जिनमें आतंकवादी और पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (BAT) के शामिल होने की बात सामने आई है. पाकिस्तान ज्यादा से ज्यादा आतंकवादियों को नियंत्रण रेखा के पार धकेलने लगा. कश्मीर में पत्थरबाज़ी की घटनाओं में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई. चीन अब पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त है, जो यूएन सुरक्षा परिषद में उसके लिए मसूद अज़हर के मामले में भारत को वीटो करता है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में सारा निवेश उसी का है और उसके सहयोग से भारत को घेरने में न सिर्फ पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में मदद मिल रही है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी.

वहां की चुनी सरकार अगर भारत से बात भी करना चाहे, तो कुलभूषण जाधव का मामला सामने आ जाता है, जिसके बारे में सूत्र बताते हैं कि खुद नवाज़ शरीफ तक को खबर नहीं थी. 16 बार मांगने पर भी उसे काउंसलर एक्सेस तक नहीं दिया गया, जासूस और आतंकवादी बताकर उसे फांसी की सज़ा सुना दी गई और अब डर यह है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत में इस मामले का इस्तेमाल पाकिस्तान कश्मीर राग अलापने के लिए करेगा.

ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार के सामने बड़ा सवाल यह है कि क्या कश्मीर में बिना अलगाववादियों से बात किए वहां की स्थिति सुधर सकती है...? सोचना यह है कि क्या पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश कामयाब हो रही है...? पाकिस्तान पर लगाम लगाने के लिए क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं...? पाकिस्तान से अगर बात भी की जाए, तो किससे - नवाज़ शरीफ से, या पाक सेना से...? पाकिस्तान में भी अगले साल चुनाव होने हैं, तो क्या पाकिस्तान का कोई भी नेता बात करने को तैयार होगा...? और बात करने के लिए भारत सरकार को अपने कड़े रुख से कितना पीछे हटना होगा...? और अगर इस रुख को बदलकर बात कर भी ली जाए, तो क्या उसका कुछ फायदा होगा...? ये सवाल ऐसे हैं, जिनका जवाब मोदी सरकार को अब तक मिला हो, ऐसा लगता नहीं है, लेकिन जिनका जवाब जल्द से जल्द खोजना बेहद ज़रूरी है.

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कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और फारेन अफेयर्स एडिटर हैं...

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