7 years ago
केपटाउन में भारत की हार का विश्लेषण करने में दिक्कत आ रही है. यह पहला टैस्ट मैच था. अभी दो और खेलने हैं. इतना ही नहीं टी20 और वन डे भी खेलने हैं. इसलिए इस हार का विश्लेषण दक्षिण अफ्रीका दौरे में आगे की रणनीति बनाने के लिहाज से भी है.
मौके पर रणनीति बनाते चलने का खेल है क्रिकेट
आमतौर पर माना जाता है कि क्रिकेट इत्तेफाक का खेल ज्यादा है. और इसीलिए इसे हार जीत की संभावनाओं की बहुत बड़ी रेंज का खेल माना जाता है. लेकिन खिलाड़ियों के अपने कौशल और कप्तान और कोचों की रणनीतियों का भी उतना ही महत्व होता है. ये रणनीतियां भी इस खेल को रोमांचक बनाती हैं. बता दें कि केपटाउन में हमारी जो टीम खेल रही थी वह दुनिया में अपने चरमोत्कर्ष पर खेल रही टीम थी. केपटाउन के इस मैच में रैंकिंग के लिहाज से दुनिया की शीर्ष की दो टीमें आमने सामने थीं. उनके खिलाड़ी भी रैंकिंग के लिहाज से कमोबेश एक जैसे थे. यानी ऐसे मैचों में अगर पूर्वानुभान करना हो तो उसका आधार खेल की रणनीतियां ही हो सकती हैं. उस तरह की रणनीतियां जो पहले से तय तो हों ही, साथ ही वे भी जो खेल के दौरान ही सेशन दर सेशन बनानी पड़ती हैं. इस लिहाज़ से विश्लेषण करें तो पूरे मैच में दोनों टीमें लगभग बराबर के कौशल से खेलीं.आखिरी सेशन में भारत के सामने जीत का लक्ष्य सिर्फ 208 रन का था जो बताता है कि तब तक भारत ने पूरा मैच दक्षिण अफ्रीका से बेहतर खेला. हम हारे तो चौथी पारी में जीता हुआ दिखाई पड़ रहा मैच हार गए।
इस छोटे लक्ष्य का पीछा करने के कुछ तथ्य
दो सौ आठ रन बनाने थे. चौथा दिन था. चौथे दिन के दो सेशन यानी 60 ओवर और पांचवे दिन के 90 ओवर हमारे पास थे. हमारे पास यह अनुभव भी था कि पहली पारी में लगभग तबाह होते हुए भी हमने 209 रन बनाए थे. हमने ये रन तब बनाए थे जब हमें उस पिच पर बैंटिंग का अंदाज़ा नहीं था. हालांकि, इसी पिच पर हमने दक्षिण अफ्रीका को पहली पारी में 286 रन बनाते देखा था. वैसे पिच के मिजाज का यह अनुभव भारतीय गेंदबाजों और विकेट कीपर को ही सबसे ज्यादा हुआ था. यहीं पर यह जिक्र कर लेना चाहिए कि भारत की ढहती हुई पहली पारी को हमारे गेंदबाजों ने संभाला था. मसलन 93 रन बनाने वाले हार्दिक पंड्या और 86 गेंदों तक टिके रहने वाले भुवनेश्वर कुमार ने. बहरहाल लक्ष्य का पीछा करते समय एक और तथ्य हमारे सामने था कि हमने दक्षिण अफ्रीका को दूसरी पारी में 130 रन पर समेट कर पहली पारी का सारा घाटा बराबर कर लिया था बराबर ही नहीं बल्कि चमत्कारिक रूप से मुनाफा भी हासिल कर लिया था. यानी अगर कोई कहे कि भारत को पहली पारी का 77 रन का घाटा भारी पड़ गया, तो यह बेकार की बात है. जो बात भारी पड़ी वह सिर्फ एक ही है कि हम 208 रन का एक छोटा सा लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए.
हम क्या कर रहे थे उस हालत में
हम जल्दी से यानी चौथे दिन ही लक्ष्य हासिल करने में लगे दिखे. हम उत्साह में हम भूल गए कि वह स्थिति ठंडा करके खाने वाली थी. ऐसी सुखद स्थिति थी कि अगर यह नियम बना लेते कि शुरू के दस बीस ओवर में रन बनाना ही नहीं है और सिर्फ विकेट बचाना है तो कोई फर्क नहीं पड़ना था क्योंकि समय की किसी तरह की कोई चिंता थी ही नहीं. हमारी रणनीति सिर्फ गेंदबाजों को थकाने की बननी थी. इसके लिए चाहे विराट कोहली और साहा को ही ओपन करने क्यों न आना पड़ता. धोनी तो खैर सन्यास ले चुके हैं लेकिन इस मौके पर खुद और दूसरे खिलाड़ियों को सलाह देने के काम के लिए उन्हें भी याद कर लेने में हर्ज नहीं है. वैसे अगर टैस्ट क्रिकेट में अपना दबदबा बनाए रखना है तो हमें सत्तर के दशक के खिलाड़ी एकनाथ सोलकर, मोहिंदर अमरनाथ, जीआर विश्वनाथ और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों की पुरानी वीडियो रिकार्डिंग्स को बार-बार देखकर जानने की जरुरत आज भी है।
क्रिकेट की शास्त्रीयता को याद दिलाया इस मैच ने
पूरे मैच में कोई भी विशेषज्ञ ठोककर यह नहीं कह पाया कि पिच में कोई जिन्न था. पहली गेंद से लेकर आखिर तक गेंदबाजों के अनुशासन और शास्त्रीयता की तारीफ होती रही. पहली पारी में दक्षिण अफ्रीका के कुछ बल्लेबाजों के शास्त्रीय खेल की बदौलत ही वे पौने तीन सौ से ज्यादा रन बना पाए. वैसे कुल मिलाकर यह मैच इशारा कर रहा है कि बल्लेबाजों के प्रभुत्व वाला दौर उतार पर है. कम से कम इस मैच में दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाजों ने यह संकेत दे दिया है. सधी हुई लाइन पर हवा में मनमर्जी की स्विंग कराकें उन्होंने जो शास्त्रीय प्रदर्शन किया वह बता रहा है कि टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजों को अपने जीव वैज्ञानिक रिफ्लेक्स और मनोवैज्ञानिक व्युतपन्नमति यानी हाजिर दिमागी बढ़ाने पर अलग से काम करना पड़ेगा. तीन दिन में निपटे इस विलक्षण टेस्ट मैच में जितनी बार क्रिकेट के शास्त्रोचित कॉपीबुक स्टाइल को देखने के मौके मिले, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि दर्शकों में विकेट बचाने के शास्त्रीय खेल देखने की रूचि भी विकसित हुई होगी.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
मौके पर रणनीति बनाते चलने का खेल है क्रिकेट
आमतौर पर माना जाता है कि क्रिकेट इत्तेफाक का खेल ज्यादा है. और इसीलिए इसे हार जीत की संभावनाओं की बहुत बड़ी रेंज का खेल माना जाता है. लेकिन खिलाड़ियों के अपने कौशल और कप्तान और कोचों की रणनीतियों का भी उतना ही महत्व होता है. ये रणनीतियां भी इस खेल को रोमांचक बनाती हैं. बता दें कि केपटाउन में हमारी जो टीम खेल रही थी वह दुनिया में अपने चरमोत्कर्ष पर खेल रही टीम थी. केपटाउन के इस मैच में रैंकिंग के लिहाज से दुनिया की शीर्ष की दो टीमें आमने सामने थीं. उनके खिलाड़ी भी रैंकिंग के लिहाज से कमोबेश एक जैसे थे. यानी ऐसे मैचों में अगर पूर्वानुभान करना हो तो उसका आधार खेल की रणनीतियां ही हो सकती हैं. उस तरह की रणनीतियां जो पहले से तय तो हों ही, साथ ही वे भी जो खेल के दौरान ही सेशन दर सेशन बनानी पड़ती हैं. इस लिहाज़ से विश्लेषण करें तो पूरे मैच में दोनों टीमें लगभग बराबर के कौशल से खेलीं.आखिरी सेशन में भारत के सामने जीत का लक्ष्य सिर्फ 208 रन का था जो बताता है कि तब तक भारत ने पूरा मैच दक्षिण अफ्रीका से बेहतर खेला. हम हारे तो चौथी पारी में जीता हुआ दिखाई पड़ रहा मैच हार गए।
इस छोटे लक्ष्य का पीछा करने के कुछ तथ्य
दो सौ आठ रन बनाने थे. चौथा दिन था. चौथे दिन के दो सेशन यानी 60 ओवर और पांचवे दिन के 90 ओवर हमारे पास थे. हमारे पास यह अनुभव भी था कि पहली पारी में लगभग तबाह होते हुए भी हमने 209 रन बनाए थे. हमने ये रन तब बनाए थे जब हमें उस पिच पर बैंटिंग का अंदाज़ा नहीं था. हालांकि, इसी पिच पर हमने दक्षिण अफ्रीका को पहली पारी में 286 रन बनाते देखा था. वैसे पिच के मिजाज का यह अनुभव भारतीय गेंदबाजों और विकेट कीपर को ही सबसे ज्यादा हुआ था. यहीं पर यह जिक्र कर लेना चाहिए कि भारत की ढहती हुई पहली पारी को हमारे गेंदबाजों ने संभाला था. मसलन 93 रन बनाने वाले हार्दिक पंड्या और 86 गेंदों तक टिके रहने वाले भुवनेश्वर कुमार ने. बहरहाल लक्ष्य का पीछा करते समय एक और तथ्य हमारे सामने था कि हमने दक्षिण अफ्रीका को दूसरी पारी में 130 रन पर समेट कर पहली पारी का सारा घाटा बराबर कर लिया था बराबर ही नहीं बल्कि चमत्कारिक रूप से मुनाफा भी हासिल कर लिया था. यानी अगर कोई कहे कि भारत को पहली पारी का 77 रन का घाटा भारी पड़ गया, तो यह बेकार की बात है. जो बात भारी पड़ी वह सिर्फ एक ही है कि हम 208 रन का एक छोटा सा लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए.
हम क्या कर रहे थे उस हालत में
हम जल्दी से यानी चौथे दिन ही लक्ष्य हासिल करने में लगे दिखे. हम उत्साह में हम भूल गए कि वह स्थिति ठंडा करके खाने वाली थी. ऐसी सुखद स्थिति थी कि अगर यह नियम बना लेते कि शुरू के दस बीस ओवर में रन बनाना ही नहीं है और सिर्फ विकेट बचाना है तो कोई फर्क नहीं पड़ना था क्योंकि समय की किसी तरह की कोई चिंता थी ही नहीं. हमारी रणनीति सिर्फ गेंदबाजों को थकाने की बननी थी. इसके लिए चाहे विराट कोहली और साहा को ही ओपन करने क्यों न आना पड़ता. धोनी तो खैर सन्यास ले चुके हैं लेकिन इस मौके पर खुद और दूसरे खिलाड़ियों को सलाह देने के काम के लिए उन्हें भी याद कर लेने में हर्ज नहीं है. वैसे अगर टैस्ट क्रिकेट में अपना दबदबा बनाए रखना है तो हमें सत्तर के दशक के खिलाड़ी एकनाथ सोलकर, मोहिंदर अमरनाथ, जीआर विश्वनाथ और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों की पुरानी वीडियो रिकार्डिंग्स को बार-बार देखकर जानने की जरुरत आज भी है।
क्रिकेट की शास्त्रीयता को याद दिलाया इस मैच ने
पूरे मैच में कोई भी विशेषज्ञ ठोककर यह नहीं कह पाया कि पिच में कोई जिन्न था. पहली गेंद से लेकर आखिर तक गेंदबाजों के अनुशासन और शास्त्रीयता की तारीफ होती रही. पहली पारी में दक्षिण अफ्रीका के कुछ बल्लेबाजों के शास्त्रीय खेल की बदौलत ही वे पौने तीन सौ से ज्यादा रन बना पाए. वैसे कुल मिलाकर यह मैच इशारा कर रहा है कि बल्लेबाजों के प्रभुत्व वाला दौर उतार पर है. कम से कम इस मैच में दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाजों ने यह संकेत दे दिया है. सधी हुई लाइन पर हवा में मनमर्जी की स्विंग कराकें उन्होंने जो शास्त्रीय प्रदर्शन किया वह बता रहा है कि टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजों को अपने जीव वैज्ञानिक रिफ्लेक्स और मनोवैज्ञानिक व्युतपन्नमति यानी हाजिर दिमागी बढ़ाने पर अलग से काम करना पड़ेगा. तीन दिन में निपटे इस विलक्षण टेस्ट मैच में जितनी बार क्रिकेट के शास्त्रोचित कॉपीबुक स्टाइल को देखने के मौके मिले, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि दर्शकों में विकेट बचाने के शास्त्रीय खेल देखने की रूचि भी विकसित हुई होगी.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.